ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 14/ मन्त्र 4
अ॒ग्निर्जा॒तो अ॑रोचत॒ घ्नन्दस्यू॒ञ्ज्योति॑षा॒ तमः॑। अवि॑न्द॒द्गा अ॒पः स्वः॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः । जा॒तः । अ॒रो॒च॒त॒ । घ्नन् । दस्यू॑न् । ज्योति॑षा । तमः॑ । अवि॑न्दत् । गाः । अ॒पः । स्वः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्जातो अरोचत घ्नन्दस्यूञ्ज्योतिषा तमः। अविन्दद्गा अपः स्वः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः। जातः। अरोचत। घ्नन्। दस्यून्। ज्योतिषा। तमः। अविन्दत्। गाः। अपः। स्व१रिति स्वः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरग्निविषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! राजा यथा जातोऽग्निर्ज्योतिषां तमो घ्नन्नरोचत गा अपः स्वश्चाऽविन्दत् तथा जातविद्याविनयो दस्यून् घ्नन् न्यायेनाऽन्यायं निवार्य्य विजयं कीर्तिं च लभेत ॥४॥
पदार्थः
(अग्निः) पावकः (जातः) प्रकटः सन् (अरोचत) प्रकाशते (घ्नन्) (दस्यून्) दुष्टाँश्चोरान् (ज्योतिषा) प्रकाशेन (तमः) अन्धकाररूपां रात्रिम् (अविन्दत्) लभते (गाः) किरणान् (अपः) अन्तरिक्षम् (स्वः) आदित्यम् ॥४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथाग्निरन्धकारं निवार्य्य प्रकाशते तथा राजा दुष्टान् चोरान् निवार्य्य विराजेत ॥४॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर अग्निविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! राजा जैसे (जातः) प्रकट हुआ (अग्निः) अग्नि (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमः) अन्धकाररूप रात्रि का (घ्नन्) नाश करता हुआ (अरोचत) प्रकाशित होता और (गाः) किरणों (अपः) अन्तरिक्ष और (स्वः) सूर्य्य को (अविन्दत्) प्राप्त होता, वैसे प्राप्त हुए विद्या विनय जिसको वह (दस्यून्) दुष्ट चोरों का नाश करते हुए और न्याय से अन्याय का निवारण करके विजय और यश को प्राप्त हो ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि अन्धकार का निवारण करके प्रकाशित होता है, वैसे राजा दुष्ट चोरों का निवारण करके विशेष शोभित होवें ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नी अंधकार नष्ट करून प्रकाश करतो. तसे राजाने दुष्ट चोरांचे निवारण करावे व विशेष शोभून दिसावे. ॥ ४ ॥
English (1)
Meaning
Agni, lighted, raised and manifesting, rises radiant and, destroying the negativities, dispelling the darkness and driving away the wicked with its blazing light, reaches over the earth and rays of the sun, waters in the middle regions of the skies and touches the lights of heaven.
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