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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 19/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वव्रिरात्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    क्रीळ॑न्नो रश्म॒ आ भु॑वः॒ सं भस्म॑ना वा॒युना॒ वेवि॑दानः। ता अ॑स्य सन्धृ॒षजो॒ न ति॒ग्माः सुसं॑शिता व॒क्ष्यो॑ वक्षणे॒स्थाः ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्रीळ॑न् । नः॒ । र॒श्मे॒ । आ । भु॒वः॒ । सम् । भस्म॑ना । वा॒युना॑ । वेवि॑दानः । ताः । अ॒स्य॒ । सन् । धृ॒षजः॑ । न । ति॒ग्माः । सुऽसं॑शिताः । व॒क्ष्यः॑ । व॒क्ष॒णे॒ऽस्थाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्रीळन्नो रश्म आ भुवः सं भस्मना वायुना वेविदानः। ता अस्य सन्धृषजो न तिग्माः सुसंशिता वक्ष्यो वक्षणेस्थाः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्रीळन्। नः। रश्मे। आ। भुवः। सम्। भस्मना। वायुना। वेविदानः। ताः। अस्य। सन्। धृषजः। न। तिग्माः। सुऽसंशिताः। वक्ष्यः। वक्षणेऽस्थाः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे रश्मे रश्मिवद्वर्त्तमान विद्वन् ! यथा विद्युदग्निर्भस्मना वायुना वेविदानस्ता अस्य धृषजो न तिग्माः सुसंशिता वक्ष्यो वक्षणेस्था वहन् सन् सुखं सम्भावयति तथा क्रीळन्नोऽस्मान् सुखकार्या भुवः ॥५॥

    पदार्थः

    (क्रीळन्) (नः) अस्मान् (रश्मे) रश्मिवद्वर्त्तमान (आ) (भुवः) भवेः (सम्) (भस्मना) (वायुना) पवनेन (वेविदानः) विज्ञापयन् (ताः) (अस्य) (सन्) (धृषजः) धार्ष्ट्याज्जातान् (न) इव (तिग्माः) तीव्राः (सुसंशिताः) सुष्ठु प्रशंसिताः (वक्ष्यः) वोढ्यः (वक्षणेस्थाः) या वाहने तिष्ठन्ति ताः ॥५॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ । हे विद्वांसो ! यथा सूर्य्यस्य रश्मय सर्वत्र प्रसृताः सर्वान् सुखयन्ति तथैव सर्वत्र विहरन्त उपदिशन्तः सर्वानानन्दयन्त्विति ॥५॥ अत्र विद्वत्साध्योपदेशविषयवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनविंशं सूक्तमेकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (रश्मे) किरणों के सदृश वर्त्तमान विद्वन् ! जैसे बिजुलीरूप अग्नि (भस्मना) भस्म और (वायुना) पवन से (वेविदानः) जनाता अर्थात् अपने को प्रकट करता हुआ (ताः) उन (अस्य) इसकी (धृषजः) धृष्टता से उत्पन्न हुओं के (न) सदृश (तिग्माः) तीव्र (सुसंशिताः) उत्तम प्रकार प्रशंसित (वक्ष्यः) ले चलनेवाली और (वक्षणेस्थाः) वाहन में स्थिर ऐसी लपटों को धारण करता (सन्) हुआ सुख की (सम्) संभावना कराता है, वैसे (क्रीळन्) क्रीड़ा करते हुए आप (नः) हम लोगों के सुखकारी (आ, भुवः) हूजिये ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे विद्वानो ! जैसे सूर्य की किरणें सर्वत्र फैली हुई सब को सुख देती हैं, वैसे ही सब स्थानों में भ्रमण तथा उपदेश करते हुए आप सब को आनन्द दीजिये ॥५॥ इस सूक्त में विद्वानों के सिद्ध करने योग्य उपदेश विषय का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उन्नीसवाँ सूक्त और ग्यारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    वायु से धौंके हुए अग्नि के तुल्य । नायक की बलवान् सहयोगी से वृद्धि ।

    भावार्थ

    भा०-जिस प्रकार अग्नि ( भस्मना वायुना ) भस्म अर्थात् प्रकाश और वायु से ( सं वेविदानः ) अच्छी प्रकार आत्मलाभ करता हुआ, ( क्रीडन् आभुवः ) खेलता सा है । ( वक्षणे स्थाः वक्ष्यः तिग्माः न ) उसके बीच में स्थित ज्वालाएं जिस प्रकार तीखी होती हैं उसी प्रकार हे (रश्मे ) किरणवत् वा सूर्यवत् प्रकाशक तेजस्विन् ! हे रस्से के समान दुष्टों के दमन, राज्य का प्रबन्ध करने हारे ! तू भी ( भस्मना ) अति तेजस्वी ( वायुना ) ज्ञान युक्त वा वायुवत् वेगयुक्त सैन्य से ( सं-वेविदानः ) अच्छी प्रकार बल प्राप्त करके ( नः ) हमारे बीच ( क्रीड़न ) आनन्द विनोद करता हुआ वा हमारे लिये युद्धक्रीड़ा करता हुआ ( आ भुवः ) आदरयुक्त हो । ( अस्य ) इस नायक के ( ताः ) वे नाना ( वक्षणे-स्थाः ) आज्ञा और राज्य भार को धारण करने के कार्य में स्थित ( वक्ष्यः ) सेनाएं ( सु-संशिताः ) अच्छी प्रकार तीक्ष्ण, ( तिग्माः ) तीखी ज्वालाओं के समान ही ( धृषजः ) शत्रुओं को घर्षण करने में समर्थ एवं प्रसिद्ध (सन् ) हों । इत्येकादशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वव्रिरात्रेय ऋषिः । अग्निर्देवता ॥ छन्दः -१ गायत्री । २ निचृद्-गायत्री । ३ अनुष्टुप् । ४ भुरिगुष्णिक् । ५ निचृत्पंक्तिः ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे विद्वानांनो ! जशी सूर्याची किरणे सर्वत्र प्रसृत होऊन सर्वांना सुखी करतात तसे सर्व स्थानी भ्रमण करून व उपदेश करून आनंद द्या. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, radiant as rays of the sun, sporting with the wind and self-declaring with heat and ash, come and be good to us, and so too may be those potent flames of yours, fierce, fiery, sharp and penetrating, fully collected and intensified in form in vehicles and batteries for transport and communication.

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