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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
ऋषिः - द्युम्नो विश्वचर्षणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अग्ने॒ सह॑न्त॒मा भ॑र द्यु॒म्नस्य॑ प्रा॒सहा॑ र॒यिम्। विश्वा॒ यश्च॑र्ष॒णीर॒भ्या॒३॒॑सा वाजे॑षु सा॒सह॑त् ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । सह॑न्तम् । आ । भ॒र॒ । द्यु॒म्नस्य॑ । प्र॒ऽसहा॑ । र॒यिम् । विश्वाः॑ । यः । च॒र्ष॒णीः । अ॒भि । आ॒सा । वाजे॑षु । स॒सह॑त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने सहन्तमा भर द्युम्नस्य प्रासहा रयिम्। विश्वा यश्चर्षणीरभ्या३सा वाजेषु सासहत् ॥१॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। सहन्तम्। आ। भर। द्युम्नस्य। प्रऽसहा। रयिम्। विश्वाः। यः। चर्षणीः। अभि। आसा। वाजेषु। ससहत् ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निपदवाच्यवीरगुणानाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने वीर ! यो विश्वाः प्रासहा चर्षणीर्वाजेषु सासहदासाभ्युपदिशेत्तं शत्रुबलं सहन्तं द्युम्नस्य रयिं त्वमा भर ॥१॥
पदार्थः
(अग्ने) वीरपुरुष (सहन्तम्) (आ) (भर) (द्युम्नस्य) धनस्य यशसो वा (प्रासहा) याः प्रकर्षेण शत्रुबलानि सहन्ते ताः सेनाः। अत्रान्येषामपीत्याद्यचो दीर्घः। (रयिम्) धनम् (विश्वाः) अखिलाः (यः) (चर्षणीः) प्रकाशमाना मनुष्यसेनाः (अभि) (आसा) आस्येन (वाजेषु) संग्रामेषु (सासहत्) भृशं सहेत। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम् ॥१॥
भावार्थः
यस्य विजयेच्छा स्यात् स शूरवीरसेनां सुशिक्षितां रक्षेत् वीररसोपदेशेनोत्साह्य शत्रुभिः सह योधयेत् ॥१॥
हिन्दी (2)
विषय
अब चार ऋचावाले तेईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निपदवाच्य वीर के गुणों का उपदेश करते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) वीरपुरुष ! (यः) जो (विश्वाः) सम्पूर्ण (प्रासहा) अत्यन्त शत्रुओं के बलों को सहनेवाली (चर्षणीः) पराक्रम से प्रकाशमान मनुष्यों की सेनाओं को (वाजेषु) संग्रामों में (सासहत्) अत्यन्त सहे और (आसा) मुख से (अभि) सब प्रकार से उपदेश देवे, उस शत्रुओं के बल को (सहन्तम्) सहते हुए (द्युम्नस्य) धन वा यश के सम्बन्ध में (रयिम्) धन को आप (आ, भर) सब प्रकार धारण करो ॥१॥
भावार्थ
जिसकी विजय की इच्छा होवे, यह शूरवीरों की सेना उत्तम प्रकार शिक्षा की गई रक्खे और वीररस के उपदेश से उत्साह दिलाकर शत्रुओं के साथ लड़ावे ॥१॥
विषय
अग्रणी नायक के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०- (यः) जो ( विश्वाः ) समस्त ( चर्षणीः ) प्रजाओं का और शत्रुओं का कर्षण या पीड़न करने वाली सेनाओं को भी ( वाजेषु ) ऐश्वर्यो और संग्रामों के बल पर ( आसा ) अपने आज्ञाकारी मुख वा प्रमुख पद से ( अभि सासहत् ) सबके सन्मुख, सर्वोपरि विजयी होता है, वह तू हे ( अग्ने ) अग्रणी नायक ! तेजस्विन् ! ( द्युम्नस्य ) यश वा ऐश्वर्य को ( सहन्तं ) जीतने वाले सैन्यगण और ( प्रासहा रयिं ) सर्वोत्कृष्ट ऐश्वर्य को ( आ भर) प्राप्त कर और हमें प्राप्त करा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
द्युम्नो विश्वचर्षणिर्ऋषि: ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः - १, २ निचृदनुष्टुप् । ३ विराडनुष्टुप् । ४ निचृत्पंक्तिः ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्याप्रमाणे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
ज्याला विजय प्राप्त करण्याची इच्छा असेल त्याने उत्तम प्रकारे प्रशिक्षित सेना बाळगावी व वीररसाच्या उपदेशाने उत्साहित करून शत्रूंबरोबर युद्ध करवावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, commander of honour, power and majesty, bring us that wealth of strength and courage of the conviction, honour and dignity most forbearing, challenging and victorious which may instantly face, fight and overthrow all the opposing forces against humanity in the battles of life.
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