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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च गौपयाना लौपयाना वा
देवता - अग्निः
छन्दः - पूर्वार्द्धस्य साम्नी बृहत्युत्तरार्द्धस्य भुरिग्बृहती
स्वरः - मध्यमः
अग्ने॒ त्वं नो॒ अन्त॑म उ॒त त्रा॒ता शि॒वो भ॑वा वरू॒थ्यः॑ ॥ वसु॑र॒ग्निर्वसु॑श्रवा॒ अच्छा॑ नक्षि द्यु॒मत्त॑मं र॒यिं दाः॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । त्वम् । नः॒ । अन्त॑मः । उ॒त । त्रा॒ता । शि॒वः । भ॒व॒ । व॒रू॒थ्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः ॥ वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमं रयिं दाः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। त्वम्। नः। अन्तमः। उत। त्राता। शिवः। भव। वरूथ्यः । वसुः। अग्निः। वसुऽश्रवाः। अच्छ। नक्षि। द्युमतऽतमम्। रयिम्। दाः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निपदवाच्यराजविषयमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! त्वं नोऽन्तमः शिवो वरूथ्यो वसुर्वसुश्रवा अग्निरिव शिव उत त्राता भवा य द्युमत्तमं रयिं त्वमच्छा नक्षि तमस्मभ्यं दाः ॥१॥
पदार्थः
(अग्ने) राजन् (त्वम्) (नः) अस्मानस्मभ्यं वा (अन्तमः) समीपस्थः (उत) (त्राता) रक्षकः (शिवः) मङ्गलकारी (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वरूथ्यः) वरूथेषुत्तमेषु गृहेषु भवः (वसुः) वासयिता (अग्निः) पावकः (वसुश्रवाः) धनधान्ययुक्तः (अच्छा) (नक्षि) व्याप्नुहि (द्युमत्तमम्) (रयिम्) धनम् (दाः) देहि ॥१॥
भावार्थः
हे राजन् ! यथा परमात्मा सर्वाभिव्याप्तः सर्वरक्षकः सर्वेभ्यो मङ्गलप्रदः सर्वपदार्थदाता सुखकारी वर्त्तते तथैव राज्ञा भवितव्यम् ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब चार ऋचावाले चौबीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निपदवाच्य राजविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) राजन् ! (त्वम्) आप (नः) हम लोगों के हम लोगों को वा हम लोगों के लिये (अन्तमः) समीप में वर्त्तमान (शिवः) मङ्गलकारी (वरूथ्यः) उत्तम गृहों में उत्पन्न (वसुः) वसानेवाले (वसुश्रवाः) धन और धान्य से युक्त (अग्निः) अग्नि के सदृश मङ्गलकारी (उत) और (त्राता) रक्षक (भवा) हूजिये और जिस (द्युमत्तमम्) अत्यन्त प्रकाशयुक्त (रयिम्) धन को आप (अच्छा) उत्तम प्रकार (नक्षि) व्याप्त हूजिये और उसको हम लोगों के लिये (दाः) दीजिये ॥१॥
भावार्थ
हे राजन् ! जैसे परमात्मा सब में अभिव्याप्त सबका रक्षक और सबके लिये मङ्गलदाता, सब पदार्थों का दाता और सुखकारी है, वैसे ही राजा को होना चाहिये ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, lord of light, fire of life, you are our closest friend and saviour. Be good and gracious, the very spirit and security of the home for the inmates.
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