ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
अस्मा॒ इत्काव्यं॒ वच॑ उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्य॑म्। तस्मा॑ उ॒ ब्रह्म॑वाहसे॒ गिरो॑ वर्ध॒न्त्यत्र॑यो॒ गिरः॑ शुम्भ॒न्त्यत्र॑यः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठअस्मै॑ । इत् । काव्य॑म् । वचः॑ । उ॒क्थम् । इन्द्रा॑य । शंस्य॑म् । तस्मै॑ । ऊँ॒ इति॑ । ब्रह्म॑ऽवाहसे । गिरः॑ । व॒र्ध॒न्ति॒ । अत्र॑यः । गिरः॑ । शु॒म्भ॒न्ति॒ । अत्र॑यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मा इत्काव्यं वच उक्थमिन्द्राय शंस्यम्। तस्मा उ ब्रह्मवाहसे गिरो वर्धन्त्यत्रयो गिरः शुम्भन्त्यत्रयः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठअस्मै। इत्। काव्यम्। वचः। उक्थम्। इन्द्राय। शंस्यम्। तस्मै। ऊँ इति। ब्रह्मऽवाहसे। गिरः। वर्धन्ति। अत्रयः। गिरः। शुम्भन्ति। अत्रयः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 39; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! य इन्द्राय काव्यमुक्थं शंस्यं वचः प्रयुङ्क्ते अस्मा इत्तस्मै ब्रह्मवाहसे जनायाऽत्रयो गिरो वर्धन्त्यु अत्रयो गिरः शुम्भन्ति ॥५॥
पदार्थः
(अस्मै) (इत्) (काव्यम्) कविभिः कमनीयम् (वचः) (उक्थम्) प्रशंसितम् (इन्द्राय) परमैश्वर्य्याय (शंस्यम्) स्तोतुं योग्यम् (तस्मै) (उ) (ब्रह्मवाहसे) यो ब्रह्माणि धनानि वहति प्राप्नोति सः (गिरः) (वर्धन्ति) वर्धन्ते। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (अत्रयः) अविद्यमानत्रिविधदुःखाः (गिरः) वाण्यः (शुम्भन्ति) शुभाचरणयन्ति (अत्रयः) अविद्यमानत्रिविधगुणानां दोषा येषु ॥५॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! ये विद्वांसो गिरः शोधयन्ति ते कवित्वमैश्वर्य्यं च प्राप्नुवन्तीति ॥५॥ अत्रेन्द्रराजप्रजाविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के लिये (काव्यम्) कवियों विद्वानों से कामना करने योग्य (उक्थम्) प्रशंसित (शंस्यम्) स्तुति करने योग्य (वचः) वचन का प्रयोग करता है (अस्मै) इसके लिये (इत्) और (तस्मै) उस (ब्रह्मवाहसे) धनों को प्राप्त होनेवाले जन के लिये (अत्रयः) नहीं है तीन प्रकार के दुःख जिनमें वे (गिरः) वाणियाँ (वर्धन्ति) बढ़ती हैं (उ) और (अत्रयः) नहीं हैं तीन प्रकार के गुणों के दोष जिनमें व (गिरः) वाणियाँ (शुम्भन्ति) उत्तम आचरण कराती हैं ॥५॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो विद्वान् जन वाणियों को विद्याभ्यास से शुद्ध करते हैं, वे कवित्व और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र राजा प्रजा और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनचालीसवाँ सूक्त और दशम वर्ग समाप्त हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जे विद्वान वाणीला विद्याभ्यासाने शुद्ध करतात ते कवित्व व ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
For this Indra, lord and master, indeed, is the holy poetic voice of praise. For that lord giver of universal wealth and light of knowledge and wisdom do poets free from threefold bondage of body, mind and soul raise and offer their songs of adoration. Him, the voices beautified with threefold graces of sound, meaning and structure, free from threefold defects of sound, meaning and structure exalt and glorify.
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