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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 46/ मन्त्र 7
    ऋषिः - प्रतिक्षत्र आत्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    दे॒वानां॒ पत्नी॑रुश॒तीर॑वन्तु नः॒ प्राव॑न्तु नस्तु॒जये॒ वाज॑सातये। याः पार्थि॑वासो॒ या अ॒पामपि॑ व्र॒ते ता नो॑ देवीः सुहवाः॒ शर्म॑ यच्छत ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । पत्नीः॑ । उ॒श॒तीः । अ॒व॒न्तु॒ । नः॒ । प्र । अ॒व॒न्तु । नः॒ । तु॒जये॑ । वाज॑ऽसातये । याः । पार्थि॑वासः । याः । अ॒पाम् । अपि॑ । व्र॒ते । ताः । नः॒ । दे॒वीः॒ । सु॒ऽह॒वाः॒ । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु नः प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये। याः पार्थिवासो या अपामपि व्रते ता नो देवीः सुहवाः शर्म यच्छत ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम्। पत्नीः। उशतीः। अवन्तु। नः। प्र। अवन्तु। नः। तुजये। वाजऽसातये। याः। पार्थिवासः। याः। अपाम्। अपि। व्रते। ताः। नः। देवीः। सुऽहवाः। शर्म। यच्छत ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 46; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजवद्राज्ञः स्त्री न्यायं करोत्वित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! या देवानां राज्ञां न्यायमुशतीः पत्नीर्नोऽवन्तु तुजये वाजसातये प्रावन्तु याः पार्थिवासोऽपां व्रतेऽपि देवीः सुहवा नः शर्म प्रदद्युस्ता नो यूयं यच्छत ॥७॥

    पदार्थः

    (देवानाम्) विदुषाम् (पत्नीः) स्त्रियः (उशतीः) कामयमानाः (अवन्तु) रक्षन्तु (नः) अस्मानस्माकं वा (प्र, अवन्तु) (नः) अस्मान् (तुजये) बलाय (वाजसातये) (याः) (पार्थिवासः) पृथिव्यां विदिताः (याः) अपां जलानाम् (अपि) (व्रते) शीले (ताः) (नः) अस्मभ्यम् (देवीः) देदीप्यमानाः (सुहवाः) शोभनाह्वानाः (शर्म) सुखकारकं गृहम् (यच्छत) ददत ॥७॥

    भावार्थः

    यथा राजानः पुरुषाणां न्यायं कुर्युस्तथैव स्त्रीणां न्यायं राज्ञ्यः कुर्य्युः ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के समान राजपत्नी न्याय करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (याः) जो (देवानाम्) विद्वानों वा राजाओं के न्याय की (उशतीः) कामना करती हुई (पत्नीः) स्त्रियाँ (नः) हम लोगों की वा हमारे सम्बन्धी पदार्थों की (अवन्तु) रक्षा करें और (तुजये) बल और (वाजसातये) संग्राम के लिये (प्र, अवन्तु) अच्छे प्रकार रक्षा करें और (याः) जो (पार्थिवासः) पृथिवी में विदित (अपाम्) जलों के (व्रते) स्वभाव में (अपि) भी (देवीः) प्रकाशमान (सुहवाः) उत्तम आह्वानवाली (नः) हम लोगों को (शर्म) सुखकारक गृह देवें और (ताः) उनको (नः) हम लोगों के लिये आप लोग (यच्छत) दीजिये ॥७॥

    भावार्थ

    जैसे राजा लोग पुरुषों का न्याय करें, वैसे ही स्त्रियों के न्याय को रानियाँ करें ॥७॥

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    विषय

    स्त्रियों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-स्त्रियों के कर्त्तव्य ( पत्नीः ) पत्नियें ( देवानां ) अपने २ प्रिय, कामना योग्य पतियों को (उशती) चाहती हुई ( नः अवन्तु ) हमें प्राप्त हों, हमारी रक्षा करें। और वे ( तुजये ) सन्तान-लाभ के लिये हीं ( नः प्र अवन्तु ) अच्छी प्रकार प्रेमपूर्वक प्राप्त हों और वे ( वाज-सातये नः प्रावन्तु ) ऐश्वर्य के लाभ और विभाग के लिये भी हमें प्राप्त हों । ( याः ) जो ( पार्थिवासः ) स्त्रियें पृथिवी के समान गृह आदि का आश्रय होकर रहती हैं और (याः ) जो ( अपाम् व्रते अपि ) जलों के व्रत में स्थित अर्थात् जलों के समान, सुख शान्ति, तृप्तिदायक, विनय से पुरुष के अधीन रहने में कुशल हों ( ताः ) वे ( देवी: ) सुखद, एवं कामना योग्य और कामनाशील एवं ( सुहवाः) उत्तम, शुभ नाम और ख्याति, वाली होकर (नः) हमें ( शर्म ) सुख ( यच्छत ) प्रदान करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतिक्षत्र आत्रेय ऋषिः ॥ १ – ६ विश्वेदेवाः॥ ८ देवपत्न्यो देवताः ॥ छन्दः—१ भुरिग्जगती । ३, ५, ६ निचृज्जगती । ४, ७ जगती । २, ८ निचृत्पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    तुजये वाजसातये

    पदार्थ

    [१] (उशती:) = हमारे हित की कामना करती हुईं (देवानां पत्नी:) = देवों की पत्नियाँ (नः अवन्तु) = हमारा रक्षण करें। देवों की पत्नियाँ 'देवशक्तियाँ' ही हैं, ये हमारा कल्याण करें। ये (नः) = हमारा (प्रावन्तु) = प्रकर्षेण रक्षण करें और (तुजये) = वासनाओं के संहार के लिये हों तथा (वाजसातये) = शक्ति के लाभ के लिये हों। [२] (या:) = जो भी (देवी) = देवपत्नियाँ (पार्थिवासः) = पृथिवी के साथ सम्बद्ध हैं, इस स्थूल शरीररूप पृथिवी के भिन्न-भिन्न भुवनों [अंगों] में कार्य करनेवाली हैं, (याः) = वे (न:) = हमारे लिये (सुहवा:) = सुगमता से पुकारने के योग्य हों। (याः) = जो (देवी:) = दिव्यशक्तियाँ (अपाम्) = रेत: कणों के (व्रते अपि) = रक्षणात्मक व्रत में निवास करनेवाली हैं, वे हमारे लिये (शर्म यच्छत) = सुख को दें। रेतःकणों का रक्षण करती हुई वे हमें सुखी बनायें।

    भावार्थ

    भावार्थ- दिव्य गुणों का धारण हमारे जीवन में वासनाओं का संहार करे और हमें शक्तिसम्पन्न बनाये। हम शरीर के अंग-प्रत्यंगों को ठीक रखते हुए रेतः कणों का रक्षण करनेवाले हों।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे राजे लोक पुरुषांचा न्याय करतात तसाच राणींनी स्त्रियांचा न्याय करावा. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the motherly divinities of nature and the motherly women in happy and blessed homes of pious people, loving, sustaining and spontaneous, protect us, constantly advance us to rise in strength for the achievement of success in battles of life. May all these divinities and nobilities of the earth and of the oceans and celestial waters of space, constant in their holy tasks, ever responsive to our prayer give us peace and felicity of home and family.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The queen should also be reapable to administer justice.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! may the wives of the learned kings who are keen to deliver justice protect us. May they protect us well for strength and diffusion of knowledge. The glorious and well-invoked learned ladies who are well-known on earth and who are observing the bow of the waters-peacefulness-give us good home. It bestows upon us enjoy or domestic happiness.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As kings administer justice among the men, same way their wives should administer justice among the women.

    Foot Notes

    (तुजये) वलाय । तुजि -हिसाबलादाननिकेतनेषु (चुरा० ) अन्न बलार्थक:। = For strength. (उशती:) कामयमानाः । वश क्रान्तौ (अदा० ) कान्ति:-कामना । = Desiring justice.

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