ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 9
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराडुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
स॒जूर्मि॒त्रावरु॑णाभ्यां स॒जूः सोमे॑न॒ विष्णु॑ना। आ या॑ह्यग्ने अत्रि॒वत्सु॒ते र॑ण ॥९॥
स्वर सहित पद पाठस॒ऽजूः । मि॒त्रावरु॑णाभ्याम् । स॒ऽजूः । सोमे॑न । विष्णु॑ना । आ । या॒हि॒ । अ॒ग्ने॒ । अ॒त्रि॒ऽवत् । सु॒ते । रण॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सजूर्मित्रावरुणाभ्यां सजूः सोमेन विष्णुना। आ याह्यग्ने अत्रिवत्सुते रण ॥९॥
स्वर रहित पद पाठसऽजूः। मित्रावरुणाभ्याम्। सऽजूः। सोमेन। विष्णुना। आ। याहि। अग्ने। अत्रिऽवत्। सुते। रण ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने विद्वन् ! त्वं मित्रावरुणाभ्यां सजूः सोमेन विष्णुना सजूः सुतेऽत्रिवदस्ति तद्बोधनायाऽऽयाहि अस्मान् सत्यमुपदेशं रण ॥९॥
पदार्थः
(सजूः) संयुक्तः (मित्रावरुणाभ्याम्) प्राणोदानाभ्याम् (सजूः) (सोमेन) ऐश्वर्य्येण चन्द्रेण वा (विष्णुना) व्यापकेनाकाशेन (आ) (याहि) (अग्ने) (अत्रिवत्) (सुते) (रण) ॥९॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । यदि मनुष्याः प्राणापानादिस्थविद्युद्विद्यां विजानीयुस्तर्हि बहुसुखं लभेरन् ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (मित्रावरुणाभ्याम्) प्राण और उदान पवनों से (सजूः) संयुक्त (सोमेन) ऐश्वर्य्य वा चन्द्र से और (विष्णुना) व्यापक आकाश से (सजूः) संयुक्त और (सुते) उत्पन्न हुए जगत् में (अत्रिवत्) व्यापक के सदृश है, उसके जानने के लिये (आ, याहि) प्राप्त हूजिये और हम लोगों के लिये सत्य का (रण) उपदेश कीजिये ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य प्राण और अपान आदि में स्थित बिजुली की विद्या को जानें तो बहुत सुख को प्राप्त होवें ॥९॥
विषय
राजा प्रजा का गुरु शिष्यवत् कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-( मित्रां-वरुणाभ्यां सजूः ) स्नेहवान मित्र और उत्तम पुरुषों के साथ ( सोमेन ) ऐश्वर्य युक्त (विष्णुना ) व्यापक सामर्थ्यवान् नायक से मिलकर हे विद्वन् तू (आयाहि ) हमें प्राप्त हो ( अत्रिवत् सुते रण ) यहां ही विद्यमान प्रत्यक्ष गुरु के तुल्य हमें उपदेश कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।
विषय
'मित्र वरुण सोम विष्णु' से मैत्री
पदार्थ
[१] (मित्रावरुणाभ्याम्) = स्नेह की देवता व निर्देषता की देवता से (सजूः) = संगत हुआ हुआ तथा (सोमेन) = सौम्यत शान्तवृत्ति से तथा (विष्णुना) = व्यापकता व उदारता से (सजूः) = संगत हुआ हुआ (आयाहि) = तू समन्तात कर्त्तव्यकर्मों में गतिवाला हो। [२] इस प्रकार 'प्रेय, निर्वेषता, शान्ति व उदारता' से युक्त होकर, हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव! तू (अत्रिवत्) = काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठे हुए पुरुष की तरह (सुते) = सोम के उत्पन्न होने पर (रण) = आनन्द का अनुभव कर ।
भावार्थ
भावार्थ– 'मित्रता, निर्देषता, सौम्यता व उदारता' सोमरक्षण में सहायक हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे प्राण व अपान इत्यादींमध्ये असलेल्या विद्युत विद्येला जाणतात ती अत्यंत सुख प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, giver of knowledge and power, come together with prana and udana energies of nature, come together with the peace and beauty of the moon and the vastness of omnipresent space, come like a sage free from the threefold worries of past, present and future, come to the world of creative and endeavouring humanity, rejoice and proclaim your message of knowledge and action loud and bold.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of a learned man are highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person united with the Prana and Udāna, united with prosperity or moon and united with pervading Akasha (ether)! come here to tell us about all that is all- pervading in this world and give us true teaching.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If men get the knowledge of the science of electricity that is in Prana, Apana ( vital breaths) and other objects, they could attain much happiness.
Foot Notes
(मित्रावरुणाभ्याम्) प्राणोदानाभ्याम् । प्राणोदानौ वै मित्रावरुणौ ( Stph. 1, 8, 3, 12, 3, 16, 1, 16 ) = With Präna and Udāna. (सोमेन) ऐश्वर्येण चन्द्रेण वा । पु –प्रसवैश्वर्ययोः (स्वा० ) अत्र ऐश्वर्य्याथकः । असौ । वै सोमो राजा विलक्षणश्चन्द्रमाः (कौषीतकी ब्राह्मणे 4, 4, 7, 10) एष चन्द्रमा वै पदनाम एष सोमो राजा (जैमि० 2, 141 ) । = With prosperity or moon. (विष्णुना ) व्यापकेनाकाशेन । = With pervading ether.
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