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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 54/ मन्त्र 3
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    वि॒द्युन्म॑हसो॒ नरो॒ अश्म॑दिद्यवो॒ वात॑त्विषो म॒रुतः॑ पर्वत॒च्युतः॑। अ॒ब्द॒या चि॒न्मुहु॒रा ह्रा॑दुनी॒वृतः॑ स्त॒नय॑दमा रभ॒सा उदो॑जसः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्युत्ऽम॑हसः । नरः॑ । अश्म॑ऽदिद्यवः । वात॑ऽत्विषः । म॒रुतः॑ । प॒र्व॒त॒ऽच्युतः॑ । अ॒ब्द॒ऽया । चि॒त् । मुहुः॑ । आ । ह्रा॒दु॒नि॒ऽवृतः॑ । स्त॒नय॑त्ऽअमाः । र॒भ॒साः । उत्ऽओ॑जसः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्युन्महसो नरो अश्मदिद्यवो वातत्विषो मरुतः पर्वतच्युतः। अब्दया चिन्मुहुरा ह्रादुनीवृतः स्तनयदमा रभसा उदोजसः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्युत्ऽमहसः। नरः। अश्मऽदिद्यवः। वातऽत्विषः। मरुतः। पर्वतऽच्युतः। अब्दऽया। चित्। मुहुः। आ। ह्रादुनिऽवृतः। स्तनयत्ऽअमाः। रभसाः। उत्ऽओजसः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 54; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे नरो ! ये विद्युन्महसोऽश्मदिद्यवो वातत्विषः पर्वतच्युतोऽब्दया स्तनयदमा रभसा उदोजसो मुहुरा ह्रादुनीवृतश्चिन्मरुतः सन्ति तैः सङ्गच्छस्व ॥३॥

    पदार्थः

    (विद्युन्महसः) ये विद्युद्विद्यायां महसो महान्तः (नरः) नायकाः (अश्मदिद्यवः) मेघविद्याप्रकाशकाः (वातत्विषः) वातविद्यया त्विषः कान्तयो येषान्ते (मरुतः) मानवाः (पर्वतच्युतः) ये पवतान्मेघान् च्यावयन्ति (अब्दया) येऽपो जलानि ददति ते (चित्) अपि (मुहुः) वारंवारम् (आ) (ह्रादुनीवृतः) ये ह्रादुन्या शब्दकर्त्र्या विद्युता युक्ताः (स्तनयदमाः) स्तनयन्ति शब्दयन्त्यमा गृहाणि येषान्ते (रभसाः) वेगवन्तः (उदोजसः) उत्कृष्टमोजः पराक्रमो येषां ते ॥३॥

    भावार्थः

    ये विद्युन्मेघवायुशब्दादिविद्याविदः सन्ति ते सर्वतो श्रीमन्तो जायन्ते ॥३॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर मनुष्य कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (नरः) नायकजनो ! जो (विद्युन्महसः) बिजुली की विद्या में बड़े श्रेष्ठ (अश्मदिद्यवः) मेघ विद्या के प्रकाश करनेवाले (वातत्विषः) वायुविद्या से कान्तियाँ जिनकी ऐसे और (पर्वतच्युतः) मेघों को वर्षाने वा (अब्दया) जलों को देनेवाले और (स्तनयदमाः) शब्द करते गृह जिनके वे (रभसाः) वेग से युक्त (उदोजसः) उत्कृष्ट पराक्रम जिनका वे (मुहुः) वार-वार (आ) सब प्रकार से (ह्रादुनीवृतः) शब्द करनेवाली बिजुली से युक्त (चित्) भी (मरुतः) मनुष्य हैं, उनसे मिलिये ॥३॥

    भावार्थ

    जो बिजुली, मेघ, वायु और शब्द आदि की विद्या को जाननेवाले हैं, वे सब प्रकार से लक्ष्मीवान् होते हैं ॥३॥

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    विषय

    विद्वानों के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में वृष्टि लाने वाले वायुओं, मेघों और बिजुलियों की भौतिकविद्या का वर्णन । उनके दृष्टान्तों से नाना प्रकार के उपदेश ।

    भावार्थ

    भा० - जिस प्रकार ( मरुतः विद्युन्म-हसः ) वायु गण विजुली की कान्ति से चमकने वाले, ( अश्म-दिद्यवः) मेघ को प्रकाशित करने वाले, ( वात-त्विषः) प्रबल वायु से चमकने वाले (पर्वत-च्युतः) मेघों को डुलाने वाले होते हैं और वे ( अब्दया मुहः ह्रादुनीवृतः ) जल देने वाली मेघ माला से युक्त, गर्जती बिजली को उत्पन्न करने वाले और (स्तनयद्-अमाः ) गर्जते मेघ के साथ रहते हैं उसी प्रकार ( नरः) उत्तम नायक गण एवं विद्वान् पुरुष भी (विद्युत् महसः ) विशेष द्युति कान्ति से चमकने वाले हों, वे (अश्म-दिद्यवः) व्यापक प्रभु वा आत्मा में चमकने वाले, और 'अश्म' अर्थात् शत्रुनाशक आयुधों से चमकने वाले, (वात-त्विषः) सूर्य की कान्ति को प्राप्त, ( पर्वत-च्युतः ) बड़े २ पर्वतवत् अचल शत्रु को भी रणच्युत करने वाले हों। वे ( अब्दया) आप्त जनों की दानशील क्रिया से युक्त होकर (ह्रादुनीवृतः ) आह्लादकारिणी वाणी से वर्त्तने वाले हों और वे ( स्तनयद्-अमाः ) अपने गृहों को उत्तम घोषों, वाद्यादि के शब्दों से गुंजाते हुए ( रभसाः ) वेग से आक्रमण करने वाले ( उद्-ओजसः ) उत्तम बल पराक्रमशाली होवें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ३, ७, १२ जगती । २ विराड् जगती । ६ भुरिग्जगती । ११, १५. निचृज्जगती । ४, ८, १० भुरिक् त्रिष्टुप । ५, ९, १३, १४ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्युत, मेघ, वायू व शब्द इत्यादींची विद्या जाणणारे असतात ते सर्व प्रकारे श्रीमंत होतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O leading lights of humanity, know that the Maruts command the mighty electric energy in the skies, light up the thunder, energise the winds and break the clouds. Blazing with splendour, ferocious with force, roaring with thunder, they wear the rumble of spatial boom shaking the mountains and burst in floods of incessant rain.

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