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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 55/ मन्त्र 3
    ऋषि: - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    सा॒कं जा॒ताः सु॒भ्वः॑ सा॒कमु॑क्षि॒ताः श्रि॒ये चि॒दा प्र॑त॒रं वा॑वृधु॒र्नरः॑। वि॒रो॒किणः॒ सूर्य॑स्येव र॒श्मयः॒ शुभं॑ या॒तामनु॒ रथा॑ अवृत्सत ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा॒कम् । जा॒ताः । सु॒ऽभ्वः॑ । सा॒कम् । उ॒क्षि॒ताः । श्रि॒ये । चि॒त् । आ । प्र॒ऽत॒रम् । व॒वृ॒धुः॒ । नरः॑ । वि॒ऽरो॒किणः॑ । सूर्य॑स्यऽइव । र॒श्मयः॑ । शुभ॑म् । या॒ताम् । अनु॑ । रथाः॑ । अ॒वृ॒त्स॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    साकं जाताः सुभ्वः साकमुक्षिताः श्रिये चिदा प्रतरं वावृधुर्नरः। विरोकिणः सूर्यस्येव रश्मयः शुभं यातामनु रथा अवृत्सत ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    साकम्। जाताः। सुऽभ्वः साकम्। उक्षिताः। श्रिये। चित्। आ। प्रऽतरम्। ववृधुः। नरः। विऽरोकिणः। सूर्यस्यऽइव। रश्मयः। शुभम्। याताम्। अनु। रथाः। अवृत्सत ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 55; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे नरः ! सूर्य्यस्येव साकं जाताः सुभ्वः साकमुक्षिता विरोकिणो रश्मयः प्रतरमा वावृधुस्तथा चित्सखायः सन्तः श्रिये प्रवृत्ता भवत यथा शुभं यातां रथा अन्ववृत्सत तथा सर्वोपकारमनुवर्त्तध्वम् ॥३॥

    पदार्थः

    (साकम्) सह (जाताः) उत्पन्नाः (सुभ्वः) ये शोभना भवन्ति (साकम्) सङ्गे (उक्षिताः) सिक्ताः (श्रिये) शोभायै धनाय वा (चित्) अपि (आ) (प्रतरम्) प्रकर्षेण दुःखात्तारकं व्यवहाराम् (वावृधुः) वर्धयन्तु (नरः) सत्यं नेतारः (विरोकिणः) विविधो रोको रुचिर्विद्यते येषु ते (सूर्य्यस्येव) (रश्मयः) किरणाः (शुभम्) कल्याणम् (याताम्) प्राप्नुवताम् (अनु) (रथाः) रमणीया यानादयः (अवृत्सत) वर्त्तन्ते ॥३॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यूयं सूर्यस्य रश्मय इव सहैव पुरुषार्थाय समुपतिष्ठध्वम्। यथा कल्याणकारिणा रथाननु भृत्या वर्त्तन्ते तथैव धर्ममनुवर्त्तध्वम् ॥३॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (नरः) सत्य को पहुँचानेवाले मनुष्यो ! (सूर्य्यस्येव) सूर्य के जैसे (साकम्) एक साथ (जाताः) उत्पन्न और (सुभ्वः) शोभित (साकम्) साथ में (उक्षिताः) सींचे हुए (विरोकिणः) अनेक प्रकार की रुचि वर्त्तमान जिनमें वे (रश्मयः) किरण (प्रतरम्) अत्यन्त दुःख से पार करनेवाले व्यवहार को (आ) सब प्रकार (वावृधुः) बढ़ावें वैसे (चित्) भी मित्र होते हुए (श्रिये) शोभा वा धन के लिये प्रवृत्त हूजिये और जैसे (शुभम्) कल्याण को (याताम्) प्राप्त होते हुओं के (रथाः) सुन्दर वाहन आदि (अनु, अवृत्सत) पीछे वर्त्तमान हैं, वैसे सब के उपकार के पीछे वर्तिये ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग सूर्य्य की किरणों के सदृश एक साथ ही पुरुषार्थ के लिये उद्यत हूजिये और जैसे कल्याण करनेवालों के रथों के पीछे भृत्यजन वर्त्तमान होते हैं, वैसे ही धर्म के पीछे वर्त्तमान हूजिये ॥३॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! तुम्ही सूर्याच्या किरणांप्रमाणे एकदम पुरुषार्थासाठी उद्यत व्हा व जसे कल्याणकर्त्यांच्या रथामागे सेवक असतात तसेच धर्मानुसार वागा. ॥ ३ ॥

    English (1)

    Meaning

    Maruts, leading lights and rulers of the earth and her children, risen together, excellent, anointed, sanctified and covenanted together for the honour, excellence and grace of life, rise and advance the freedom and happiness of life for the people, and thus, with their interests and holy ambitions, shine in truth and rectitude like rays of the sun. Let the chariots roll on with the leading lights to the holy lands of bliss and freedom.

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