ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 56/ मन्त्र 3
मी॒ळ्हुष्म॑तीव पृथि॒वी परा॑हता॒ मद॑न्त्येत्य॒स्मदा। ऋक्षो॒ न वो॑ मरुतः॒ शिमी॑वाँ॒ अमो॑ दु॒ध्रो गौरि॑व भीम॒युः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठमी॒ळ्हुष्म॑तीऽइव । पृ॒थि॒वी । परा॑ऽहता । मद॑न्ती । ए॒ति॒ । अ॒स्मत् । आ । ऋक्षः॑ । न । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । शिमी॑ऽवान् । अमः॑ । दु॒ध्रः । गौःऽइ॑व । भी॒म॒ऽयुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
मीळ्हुष्मतीव पृथिवी पराहता मदन्त्येत्यस्मदा। ऋक्षो न वो मरुतः शिमीवाँ अमो दुध्रो गौरिव भीमयुः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठमीळ्हुष्मतीऽइव। पृथिवी। पराऽहता। मदन्ती। एति। अस्मत्। आ। ऋक्षः। न। वः। मरुतः। शिमीऽवान्। अमः। दुध्रः। गौःऽइव। भीमऽयुः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 56; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मरुतो ! यथाः वः पृथिवी मीळ्हुष्मतीवास्मत् पराहता मदन्ती वर्त्तते तां शिमीवानृक्षो नैति गौरिव भीमयुर्दुध्रोऽम एति तथा यूयमप्याचरत ॥३॥
पदार्थः
(मीळ्हुष्मतीव) मीढुः सेक्ता वीर्यप्रदः प्रशस्तः पतिर्विद्यते यस्यास्तत् (पृथिवी) भूमिः (पराहता) दूरं प्राप्ता (मदन्ती) हर्षन्ती (एति) प्राप्नोति (अस्मत्) (आ) (ऋक्षः) पशुविशेषः (न) इव (वः) युष्मान् (मरुतः) मनुष्याः (शिमीवान्) प्रशस्तकर्मवान् (अमः) गृहम् (दुध्रः) दुःखेन धर्त्तुं योग्यः (गौरिव) आदित्य इव (भीमयुः) यो भीमं भयङ्करं योद्धारं याति सः ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । ये यतमानाः कर्माणि कुर्वन्ति ते सदा सुखिनो भवन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मरुतः) मनुष्यो ! जैसे (वः) आप लोगों को (पृथिवी) भूमि (मीळ्हुष्मतीव) वीर्य्य का देनेवाला सुन्दर स्वामी जिसका उसके समान (अस्मत्) हम लोगों से (पराहता) दूर को प्राप्त (मदन्ती) प्रसन्न होती हुई वर्त्तमान है, उसको (शिमीवान्) अच्छे कर्म्मोंवाला (ऋक्षः) पशुविशेष के (न) समान (आ, एति) प्राप्त होता तथा (गौरिव) सूर्य्य के सदृश (भीमयुः) भयङ्कर युद्ध करनेवाले को प्राप्त होनेवाला (दुध्रः) दुःख से धारण करने योग्य पुरुष (अमः) गृह को प्राप्त होता है, वैसे आप लोग भी आचरण करो ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो प्रयत्न करते हुए कर्म्मों को करते हैं, वे सदा सुखी होते हैं ॥३॥
विषय
मेघ-मालावत् प्रजा, सेना और सूर्य वा ऋक्ष के दृष्टान्त से राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०- ( मीढुष्मती पराहता, मदन्ती ) वर्षा करने वाले मेघ से युक्त मेघमाला जिस प्रकार वायु से प्रेरित होकर सबको हर्ष देती हुई आती है उसी प्रकार ( मीढुष्मती) बाण वर्षा और ऐश्वर्यों की वर्षा करने में समर्थ, योग्य, वलवान् प्रजापोषक स्वामी की भी ( पृथिवी ) पृथिवी वासिनी प्रजा ( परा-हता ) शत्रु सेना से ताड़ित होकर ( मदन्ती ) हर्ष- युक्त होती हुई ( अस्मत् ) हम शासक जनों को ( आ एति ) प्राप्त होती है । हे ( मरुतः ) प्रजाजनो, विद्वानो वा वीर पुरुषो ! ( वः ) आप लोग ( अमः ) सहायक, शरण योग्य, गृह के समान आश्रय दाता पुरुष ( अमः ) शत्रु से न मारे जाने वाला, शत्रु को पीड़ित करने में समर्थ, अप्रतिम, ऐश्वर्य वा बलशाली, (ऋक्षः न) सूर्यवत् तेजस्वी, सदा अर्चनीय, वेदाज्ञाओं का पालक, वा ऋक्ष अर्थात् रीछ के समान भयंकर, बलशाली, ( शिमीवान् ) कर्मण्य, ( दुधः ) शत्रु से अजेय, ( गौः इव ) महा वृषभ के समान ( भीमयुः ) भयप्रद होकर प्रयाण करने हारा। वा ( गोः न भीमयुः) गमनशील अश्व के समान भी प्रचण्ड वेग से जाने हारा हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, २, ५ निचृद् बृहती ४ विराड्बृहती । ८, ९ बृहती । ३ विराट् पंक्तिः । ६, ७ निचृत्पंक्ति: ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
विषय
प्राणों का दुध्र बल
पदार्थ
[१] (मीढुष्मती पृथिवी इव) = सब सुखों का सेचन करनेवाली पृथिवी के समान (पर अहता) = रोगों व वासनारूप शत्रुओं से न आक्रान्त हुई हुई (मदन्ती) = आनन्द को प्राप्त करानेवाली यह मरुत् पंक्ति (अस्मत् आ एति) = हमें सर्वथा प्राप्त होती है [अस्मत् = अस्मान् सा० ] । प्राणसमूह जीवन को आनन्दित करनेवाला है, यह शत्रुओं से आक्रान्त नहीं होता और हमें सुखी करता है। [२] हे (मरुतः) = प्राणो! (वः) = तुम्हारा (अमः) = बल (ऋक्षः न) = एक सितारे [सूर्य] के समान है। (शिमीवान्) = यह बल शान्तभाव से अपना कर्म करनेवाला है और (दुध्रः) = शत्रुओं से दुर्धर है। (गौः इव) = एक महावृषभ [सांड] की तरह (भीमयुः) = शत्रुओं के प्रति भयंकरता से गतिवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणों का गण शत्रुओं से आक्रान्त नहीं होता। इनकी साधना से यह पृथिवीरूप शरीर अंग-प्रत्यंग में शक्ति से सिक्त होता है। प्राणों का बल हमें क्रियाशील बनाता है और हमारे रोगरूप शत्रुओं के लिये भयंकर होता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे प्रयत्नवादी असून कर्म करत असतात ते सदैव सुखी होतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Like a youthful woman wedded to a virile husband, the earth, unhurt and rejoicing, comes to us for protection, defence and promotion. O Maruts, youthful warrior defenders of the land, like a shooting star is your force, strong, unchallengeable, and terrible as a mighty bull.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The qualities of an ideal man are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Like a beautiful lady, who has a virile husband, the earth (human and other-beings. Ed.) comes towards us, staggering yet rejoicing (some times happily and some times unhappily. Ed.). A man ( husband. Ed.) of good actions comes to her at home your onslaught (after days hard work. Ed.). A hero is vigorous like a bear and fearful like the sun.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who do good deeds industriously are ever happy.
Foot Notes
(मील हुष्मतीव) मोड़ : सेव्यक्ता वीर्यप्रदः प्रशस्तः पतिर्विद्यते यस्याः साः = A lady whose husband is very good and virile. (शिमीवान्) प्रशस्तकर्मवान् शिमी । इति कर्मनाम (NG 2, 1 ) । = Dear of good actions. (गौरिव) आदित्य इव । आदित्योऽपि गौरुध्यते उतादः परुषे गवि ऋ. Rig. 6, 16, 3, इति NKT 2, 2, 6) = The sun.
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