ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 18
उ॒त मे॑ वोचता॒दिति॑ सू॒तसो॑मे॒ रथ॑वीतौ। न कामो॒ अप॑ वेति मे ॥१८॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । मे॒ । वो॒च॒ता॒त् । इति॑ । सु॒तऽसो॑मे । रथ॑ऽवीतौ । न । कामः॑ । अप॑ । वे॒ति॒ । मे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत मे वोचतादिति सूतसोमे रथवीतौ। न कामो अप वेति मे ॥१८॥
स्वर रहित पद पाठउत। मे। वोचतात्। इति। सुतऽसोमे। रथऽवीतौ। न। कामः। अप। वेति। मे ॥१८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 18
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् ! भवान् मे रथवीतावुत सुतसोमे सत्यमुपदेश्यमिति वोचतात्। यतो मे कामो नाप वेति ॥१८॥
पदार्थः
(उत) अपि (मे) मह्यम् (वोचतात्) उपदिशतु (इति) (सुतसोमे) निष्पादितैश्वर्य्यादौ (रथवीतौ) रथानां गतौ (न) (कामः) कामना (अप) (वेति) नश्यति (मे) मम ॥१८॥
भावार्थः
सर्वैर्मनुष्यैर्विदुषः प्रतीयं प्रार्थना कार्या भवन्तोऽस्मभ्यमीदृशानुपदेशान् कुर्वन्तु यतोऽस्माकमिच्छाः सिद्धाः स्युरिति ॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् ! आप (मे) मेरे लिये (रथवीतौ) वाहनों के गमन में (उत) और (सुतसोमे) उत्पन्न किये हुए ऐश्वर्य्य आदि में सत्य का उपदेश देने योग्य हैं (इति) इस प्रकार (वोचतात्) उपदेश देवें जिससे (मे) मेरी (कामः) कामना (न) नहीं (अप, वेति) नष्ट होती है ॥१८॥
भावार्थ
सब मनुष्यों को चाहिये कि विद्वान् जनों के प्रति यह प्रार्थना करें कि आप लोग हम लोगों को ऐसे उपदेश करो, जिससे हम लोगों की इच्छायें सिद्ध होवें ॥१८॥
विषय
विद्वान् के प्रति उपयुक्त विनय ।
भावार्थ
भा०- ( सुतसोमे) जिसने ऐश्वर्य और उत्तम ज्ञान प्राप्त किया और ( रथवीतौ ) रथ के द्वारा आदरपूर्वक गृहों पर प्राप्त हों ऐसे आदरणीय पुरुष के प्रति ऐसी प्रार्थना करें कि हे विद्वन् ! ( मे इति वोचतात् ) मुझ श्रोताजन को ऐसा सत्योपदेश कीजिये कि ( मे कामः ) मेरी श्रवण करने की अभिलाषा ( न अप वेति ) कभी दूर नहीं हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
सुतसोम-रथवीति
पदार्थ
[१] गतमन्त्र की (ऊर्म्या) = प्रकाश की किरणों में उत्तम वेदवाणी (उत) = निश्चय से (मे) = मुझे (वोचतात्) = उपदेश करे (इति) = कि (सुतसोमे) = [सुतः सोमो येन] सोम [वीर्यशक्ति] का सम्पादन करनेवाला तथा (रथवीतौ) = शरीर-रथ को कान्त [सुन्दर] बनानेवाला होने में (मे कामः) = मेरी कामना (न अपवेति) = दूर नहीं होती है । [२] मुझे इस वेदवाणी से प्रेरणा प्राप्त हो और मैं सदा सोम [वीर्यशक्ति] का सम्पादन करूँ तथा अपने शरीर-रथ को सुन्दर ही सुन्दर बना डालूँ । सुरक्षित सोम ने ही तो इसे सौन्दर्य प्रदान करना है।
भावार्थ
भावार्थ- वेद से प्रेरणा प्राप्त करके हम 'सुतसोम रथवीति' बनें, वीर्य का सम्पादन करनेवाले, कान्त शरीरवाले ।
मराठी (1)
भावार्थ
सर्व माणसांनी, विद्वानांना ही प्रार्थना करावी की तुम्ही आम्हाला असा उपदेश करा की ज्यामुळे आमच्या इच्छा पूर्ण व्हाव्यात. ॥ १८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And then say this for me: The yajna is complete, soma is distilled, the chariot arrived in peace, and my prayer and desire never goes astray.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of enlightened men's duties is dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned person! you should always tell that on the occasion of the movement of the vehicles and on the acquisition of wealth, truth must be preached, so that my desire may not remain unfulfilled.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the foremost duty of the learned and enlightened persons to observe truth and also behave truthfully. They should also preach truth only. This way a man's desires are indeed fulfilled.
Translator's Notes
The right person should always make an earnest appeal to an enlightened person so that he should. guide him on the right lines and truthfully. Indeed it helps to build an ideal society.
Foot Notes
(सुतसोमे) निष्पादितैश्वय्यदी |= Those who have acquired prosperity (wealth etc.). (रथवीतौ) रथानागतौ = During the movement of transport or travelling. (अपवेति) नश्यति – Disappears or kills.
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