ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
अव॑ स्म॒ यस्य॒ वेष॑णे॒ स्वेदं॑ प॒थिषु॒ जुह्व॑ति। अ॒भीमह॒ स्वजे॑न्यं॒ भूमा॑ पृ॒ष्ठेव॑ रुरुहुः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । स्म॒ । यस्य॑ । वेष॑णे । स्वेद॑म् । प॒थिषु॑ । जुह्व॑ति । अ॒भि । ई॒म् । अह॑ । स्वऽजे॑न्यम् । भूम॑ । पृ॒ष्टाऽइ॑व । रु॒रु॒हुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अव स्म यस्य वेषणे स्वेदं पथिषु जुह्वति। अभीमह स्वजेन्यं भूमा पृष्ठेव रुरुहुः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठअव। स्म। यस्य। वेषणे। स्वेदम्। पथिषु। जुह्वति। अभि। ईम्। अह। स्वऽजेन्यम्। भूम। पृष्ठाऽइव। रुरुहुः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यस्य वेषणे पथिषु वीराः स्वेदं स्माव जुह्वति भूमाह स्वजेन्यं पृष्ठेवाभि रुरुहुस्तस्यान्वेषणं तथा यूयमपि कुरुत ॥५॥
पदार्थः
(अव ) (स्म) (यस्य) (वेषणे) व्याप्ते व्यवहारे (स्वेदम्) (पथिषु) (जुह्वति) क्षरन्ति (अभि) (ईम्) (अह) (स्वजेन्यम्) स्वेन जेतुं योग्यम् (भूमा) पृथिव्याः (पृष्ठेव) (रुरुहुः) वर्धन्ते ॥५॥
भावार्थः
ये मनुष्या मार्गेषु व्याप्तान् व्यवहारान् विज्ञाय कार्य्याणि साध्नुवन्ति ते सौख्यानि प्राप्नुवन्ति ॥५॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर विद्वानों के विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यस्य) जिसके (वेषणे) व्याप्त व्यवहार के निमित्त (पथिषु) मार्गों में वीर (स्वेदम्) जल को (स्म) ही (अव, जुह्वति) बहाते और (भूमा) पृथिवी के (अह) निश्चित (स्वजेन्यम्) अपने से जीतने योग्य स्थान को (पृष्ठेव) पृष्ठ के सदृश (अभि, रुरुहुः) अभिवर्द्धन करते अर्थात् उस पर बढ़ते हैं उसकी खोज करते हैं (ईम्) वैसे ही आप लोग भी करो ॥५॥
भावार्थ
जो मनुष्य मार्ग में व्याप्त व्यवहारों को जान कर कार्यों को सिद्ध करते हैं, वे सुखों को प्राप्त होते हैं ॥५॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे मार्गातील व्यवहार जाणून कार्य सिद्ध करतात, ती सुख प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥
English (1)
Meaning
On whose rise, as the sun’s, and in whose service people shed the sweat of their brow in pursuit of the paths of life, to that Agni and the sun, the entire people of the earth look up and rise as children rise on the back of the parent.
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