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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 73/ मन्त्र 6
    ऋषिः - पौर आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यु॒वोरत्रि॑श्चिकेतति॒ नरा॑ सु॒म्नेन॒ चेत॑सा। घ॒र्मं यद्वा॑मरे॒पसं॒ नास॑त्या॒स्ना भु॑र॒ण्यति॑ ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वोः । अत्रिः॑ । चि॒के॒त॒ति॒ । नरा॑ । सु॒म्नेन॑ । चेत॑सा । घ॒र्मम् । यत् । वा॒म् । अ॒रे॒पस॑म् । नास॑त्या । आ॒स्ना । भु॒र॒ण्यति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवोरत्रिश्चिकेतति नरा सुम्नेन चेतसा। घर्मं यद्वामरेपसं नासत्यास्ना भुरण्यति ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवोः। अत्रिः। चिकेतति। नरा। सुम्नेन। चेतसा। घर्मम्। यत्। वाम्। अरेपसम्। नासत्या। आस्ना। भुरण्यति ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 73; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे नासत्या नरा ! यद्योऽत्रिः सुम्नेन चेतसा युवोर्घर्मं चिकेतत्यास्ना वामरेपसं यज्ञं भुरण्यति तं युवां ज्ञापयेताम् ॥६॥

    पदार्थः

    (युवोः) अध्यापकोपदेशकयोः (अत्रिः) अविद्यमानत्रिविधदुःखम् (चिकेतति) जानाति (नरा) नायकौ धर्म्मपथनेतारौ (सुम्नेन) सुखेन (चेतसा) चित्तेन (घर्मम्) यज्ञम् (यत्) यः (वाम्) युवयोः (अरेपसम्) अनपराधिनम् (नासत्या) अविद्यमानासत्यौ (आस्ना) आस्येन (भुरण्यति) धरति ॥६॥

    भावार्थः

    ये पुरुषा विद्वत्सङ्गेनाध्ययनाध्यापनं यज्ञं विस्तारयन्ति ते जगदुपकारकाः सन्ति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (नासत्या) असत्य से रहित (नरा) धर्म्म मार्ग में चलनेवाले दो नायक जनो ! (यत्) जो (अत्रिः) आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक आदि तीन प्रकार के दुःख से रहित जन (सुम्नेन) सुख और (चेतसा) चित्त से (युवोः) आप दोनों अध्यापक और उपदेशकों के (घर्मम्) यज्ञ को (चिकेतति) जानता और (आस्ना) मुख से (वाम्) आप दोनों के (अरेपसम्) अपराधरहित यज्ञ को (भुरण्यति) धारण करता है, उसको आप जानिये ॥६॥

    भावार्थ

    जो पुरुष विद्वानों के सङ्ग से अध्ययन और अध्यापन रूप यज्ञ का विस्तार करते हैं, वे संसार के उपकारक हैं ॥६॥

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    विषय

    उत्तम काम का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( नरा ) दोनों स्त्री पुरुषो ! हे ( मासत्या ) असत्य आचरण न करने वालो ! ( यत् ) जो ( वाम् ) आप दोनों के ( धर्मं ) सेचने योग्य वा तेजोयुक्त ( अरेपसं ) पापरहित कर्म को ( आस्ना ) मुख द्वारा ( भुरण्यति ) उपदेश करता है, वह ( अत्रिः ) तीनो तापों और तीनों दुःखों से रहित विद्वान् पुरुष ( सुम्नेन चेतसा ) उत्तम मननशील, शुभ चित्त से ही ( युवोः चिकेतति ) आप दोनों को ज्ञान का उपदेश करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पौर आत्रेय ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः - १, २, ४, ५, ७ निचृद-नुष्टुप् ॥ ३, ६, ८,९ अनुष्टुप् । १० विराडनुष्टुप् ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    अरेपस् घर्म

    पदार्थ

    [१] हे (नरा) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राणापानो! (अत्रि:) = काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठा हुआ पुरुष (सुम्नेन) = [joy, happiness] आनन्दयुक्त (चेतसा) = चित्त से (युवोः चिकेतति) = आप दोनों को जानता है। आपकी साधना से चित्त आनन्दयुक्त होता है, वह आनन्दयुक्त चित्त आपकी महिमा का स्मरण कराता है। [२] हे (नासत्या) = सब असत्यों को हमारे से दूर करनेवाले प्राणापानो ! (यद्) = जो (वाम्) = आपकी (अरेपसम्) = निर्दोष (घर्मम्) = शक्ति की उष्णता है, उसे (आस्त्रा) = आस्य निष्पन्न स्त्रोत्र के द्वारा, अर्थात् ऊँचे-ऊँचे आपका स्तवन करता हुआ यह साधक भुरण्यति प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्राणसाधना से चित्त निर्मल होकर आनन्दयुक्त होता है। ऊँचे-ऊँचे स्तवन करते हुए हम उस स्तवन में होनेवाली प्राणसाधना के परिणामस्वरूप दोषशून्य शक्ति की उष्णता को प्राप्त करते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष विद्वानांच्या संगतीने अध्ययन व अध्यापनरूपी यज्ञ वाढवितात ते जगावर उपकार करतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, leading lights and pioneers of life on the path of truth and rectitude, Atri, the sage who has conquered threefold suffering of existence knows you fully with an undisturbed mind and adores you with hymns of praise when he experiences and receives from you the fire of life free from sin and untruth.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should the enlightened men do is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O leaders of the path of Dharma (righteousness)! you are free from falsehood, and give knowledge to that man who is free from the three-fold misery and who knows you with a joyful mind and who knows your spotless pure Yajna (non-violent sacrifice in the form of reading and teaching etc.) and upholds it with his mouth (by teaching and reading),

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who with the association of the enlightened persons expand (spread) his Yajna in the form of study and teaching, are benefactors of the world.

    Foot Notes

    (धर्मम्) यज्ञम् | = Non-violent sacrifice. (अत्रि:) अविद्यमानत्रिविधदुःखम् = Free from three kinds of misery as explained before. (भुणयति ) धरति । भुरण-धारणपोषणयोः । अत्र धारणार्थः । सुम्नमिति सुखनाम (NG 3, 6 ) । अन्न सुखयुक्तेन | = Upholders.

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