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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 73/ मन्त्र 9
    ऋषिः - पौर आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स॒त्यमिद्वा उ॑ अश्विना यु॒वामा॑हुर्मयो॒भुवा॑। ता याम॑न्याम॒हूत॑मा॒ याम॒न्ना मृ॑ळ॒यत्त॑मा ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्यम् । इत् । वै । ऊँ॒ इति॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । यु॒वाम् । आ॒हुः॒ । म॒यः॒ऽभुवा॑ । ता । याम॑न् । या॒म॒ऽहूत॑मा । याम॑न् । आ । मृ॒ळ॒यत्ऽत॑मा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्यमिद्वा उ अश्विना युवामाहुर्मयोभुवा। ता यामन्यामहूतमा यामन्ना मृळयत्तमा ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सत्यम्। इत्। वै। ऊँ इति। अश्विना। युवाम्। आहुः। मयःऽभुवा। ता। यामन्। यामऽहूतमा। यामन्। आ। मृळयत्ऽतमा ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 73; मन्त्र » 9
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मयोभुवाऽश्विना ! यौ युवां यामहूतमा यामन्नामृळयत्तमा आहुस्ता यामन् वै सत्यमु इत्प्रचारयेतम् ॥९॥

    पदार्थः

    (सत्यम्) यथार्थं व्यवहारमुदकं वा (इत्) अपि (वै) निश्चये (उ) वितर्के (अश्विना) द्यावापृथिव्याविवाध्यापकोपदेशकौ (युवाम्) (आहुः) कथयन्ति (मयोभुवा) सुखं भावुकौ (ता) तौ (यामन्) यामनि प्रहरादौ (यामहूतमा) यौ यामानाह्वयतस्तावतिशयितौ (यामन्) यामनि (आ) (मृळयत्तमा) अत्यन्तसुखकारकौ ॥९॥

    भावार्थः

    यथा भूमिमेघौ सर्वेषां प्राणिनां सुखकरौ वर्त्तेते तथैवाध्यापकोपदेशकौ भृशं सुखकरौ भवेताम् ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मयोभुवा) सुखकारक (अश्विना) अन्तरिक्ष और पृथिवी के सदृश अध्यापक और उपदेशक जनो ! जो (युवाम्) आप दोनों (यामहूतमा) प्रहरों को बुलानेवाले अत्यन्त (यामन्) प्रहर में (आ, मृळयत्तमा) सब ओर से अतीव सुखकारकों को (आहुः) कहते हैं (ता) वे दोनों (यामन्) प्रहर में (वै) निश्चय (सत्यम्) यथार्थ व्यवहार वा जल को (उ) तर्क के साथ (इत्) भी प्रचारित कीजिये ॥९॥

    भावार्थ

    जैसे भूमि और मेघ सब प्राणियों के सुखकारक हैं, वैसे ही अध्यापक और उपदेशक जन अत्यन्त सुखकारक हों ॥९॥

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    विषय

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    भावार्थ

    भा०-हे (अश्विना ) अश्वों को उत्तम स्वामियों के समान रथी सारथिवत् इन्द्रियों को दमन करने हारे उत्तम स्त्री पुरुषो ! ( सत्यम् इत् वा ) निश्चय से आप दोनों को लोग जो ( मयः-भुवा आहुः ) सुख उत्पन्न करने वाले (आहुः ) बतलाते हैं सो ( सत्यम् इत् वां उ ) निश्चय से ठीक ही है । ( ता ) वे आप दोनों ( यामन् ) संयम और परस्पर के विवाह आदि बन्धन पूर्वक एक दूसरे को कर्त्तव्य में बांधने के निमित्त (याम-हूतमा ) संयमशील पुरुषों को आदरपूर्वक गुरु रूप से स्वीकार करने वालों से श्रेष्ठ होकर विवाह करो और ( यामनि ) उस संयम युक्त विवाह बन्धन में दोनों ( आ मृडयत्-तमा ) एक दूसरे को प्राप्त होकर अति अधिक सुखी करने वालो बनो ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पौर आत्रेय ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः - १, २, ४, ५, ७ निचृद-नुष्टुप् ॥ ३, ६, ८,९ अनुष्टुप् । १० विराडनुष्टुप् ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    मयोभुवा-मृडयत्तमा

    पदार्थ

    [१] हे (अश्विना) प्राणापानो! (द्यु॒वाम्) = आपको साधक लोग (सत्यम्) = सचमुच (इत् वा उ) = ही निश्चय से (मयोभुवाः) =' कल्याण के उत्पन्न करनेवाले' इस रूप में (आहुः) = कहते हैं। आपके द्वारा सब रोगों का निरास होकर वस्तुतः हमारा कल्याण होता है । [२] इसीलिए (ता) = वे प्राणापान (यामन्) = इस जीवन यज्ञ में (यामहूतमा) = आने के लिये अधिक से अधिक आह्वातव्य होते हैं। वे प्राणापान (यामन्) = इस जीवन यज्ञ में (आ) = सर्वथा (मृडयत्तमा) = अत्यन्त सुख को देनेवाले होते हैं। ये दीर्घ व नीरोग जीवन को प्राप्त कराके हमें सुखी करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणापान [१] हमें नीरोग करते हैं, [२] अतिशयेन सुखी करते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी भूमी व मेघ सर्व प्राण्यांना सुखकारक असतात. तसेच अध्यापक व उपदेशक सुखकारक व्हावेत. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, leading lights of nature and humanity, earth and heaven, sages and scholars, true it is as they say you are the harbingers and givers of peace and well being. Most kind and responsive to the call of devotees, we pray, come and bring us the highest bliss on the wings of wind and light.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers ! you all are like the heaven and the earth and who are truly called the bestowers of happiness, also make the best use of your time and are duly the most gracious. Preach truth at all times with certainty.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the earth and cloud are givers of happiness to all living beings, so the teachers and preachers should be the bestowers of happiness.

    Foot Notes

    (अश्विना ) द्यावापृथिव्याविवाध्यापकोपदेशकौ| । तत्कवश्विनौ द्यावापृथिव्यावित्येके(NKT 13, 1, 1)| = The teachers and preachers like the heaven and earth. (मुड़यत्तमा) अत्यन्तसुखकारकौ । मृढ- सुखने (क्रया० ) । = Givers of much happiness.

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