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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 81/ मन्त्र 3
    ऋषि: - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - सविता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    यस्य॑ प्र॒याण॒मन्व॒न्य इद्य॒युर्दे॒वा दे॒वस्य॑ महि॒मान॒मोज॑सा। यः पार्थि॑वानि विम॒मे स एत॑शो॒ रजां॑सि दे॒वः स॑वि॒ता म॑हित्व॒ना ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । प्र॒ऽयाम॑म् । अनु॑ । अ॒न्ये । इत् । य॒युः । दे॒वाः । दे॒वस्य॑ । म॒हि॒मान॑म् । ओज॑सा । यः । पार्थि॑वानि । वि॒ऽम॒मे । सः । एत॑शः । रजां॑सि । दे॒वः । स॒वि॒ता । म॒हि॒ऽत्व॒ना ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य प्रयाणमन्वन्य इद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा। यः पार्थिवानि विममे स एतशो रजांसि देवः सविता महित्वना ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य। प्रऽयानम्। अनु। अन्ये। इत्। ययुः। देवाः। देवस्य। महिमानम्। ओजसा। यः। पार्थिवानि। विऽममे। सः। एतशः। रजांसि। देवः। सविता। महिऽत्वना ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 81; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यस्य देवस्य प्रयाणं महिमानमन्वन्य इत् वस्वादयो देवा ययुः। य एतशस्सविता देवो महित्वनैजसा पार्थिवानि रजांसि विममे स एव सर्वैर्ध्येयोऽस्ति ॥३॥

    पदार्थः

    (यस्य) जगदीश्वरस्य (प्रयाणम्) प्रकर्षेण याति गच्छति येन तत् (अनु) (अन्ये) (इत्) एव (ययुः) गच्छन्ति (देवाः) सूर्य्यादयः (देवस्य) सर्वेषां प्रकाशकस्य (महिमानम्) (ओजसा) पराक्रमेण बलेन (यः) (पार्थिवानि) अन्तरिक्षे विदितानि कार्य्याणि। पृथिवीत्यन्तरिक्षनामसु पठितम्। (निघं०१.३) (विममे) विशेषेण मिमीते विधत्ते (सः) (एतशः) सर्वत्र प्राप्तः (रजांसि) लोकान् (देवः) सर्वसुखदाता (सविता) सकलैश्वर्य्यविधाता (महित्वना) महिम्ना ॥३॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यः सूर्य्यादीनां धर्तॄणां धर्त्ता दातॄणां दाता महतां महान् प्रकृत्याख्यात् कारणात् सर्वं जगद्विधत्ते यमनु सर्वे जीवन्ति तिष्ठन्ति च स एव सर्वजगद्विधाता ध्यातव्योऽस्ति ॥३॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर ईश्वर कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! (यस्य) जिस जगदीश्वर (देवस्य) सब के प्रकाशक के (प्रयाणम्) अच्छी तरह चलते हैं, जिससे उस मार्ग और (महिमानम्) महिमा को (अनु) पश्चात् (अन्ये, इत्) और ही वसु आदि (देवाः) प्रकाश करनेवाले सूर्य्य आदि (ययुः) चलते अर्थात् प्राप्त होते हैं और (यः) जो (एतशः) सर्वत्र व्याप्त (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों का करने और (देवः) सम्पूर्ण सुखों का देनेवाला (महित्वना) महिमा से (ओजसा) पराक्रम से और बल से (पार्थिवानि) अन्तरिक्ष में विदित कार्यों और (रजांसि) लोकों को (विममे) विशेष करके रचता है (सः) वही सब से ध्यान करने योग्य है ॥३॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो सूर्य्य आदिकों के धारण करनेवालों का धारण करनेवाला और देनेवालों का देनेवाला, बड़ों और प्रकृतिरूप कारण से सम्पूर्ण जगत् को रचता है और जिसके पीछे अर्थात् आश्रय से सब जीवते और स्थित हैं, वही सम्पूर्ण जगत् का रचनेवाला ईश्वर ध्यान करने योग्य है ॥३॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    भावार्थ- हे माणसांनो! जो सूर्य इत्यादींना धारण करणाऱ्यांचा धारणकर्ता, दात्यांमध्ये दाता, मोठ्यात मोठा व प्रकृतिकारणापासून संपूर्ण जगाची रचना करतो व ज्याच्या आश्रयाने सर्व जण जगतात व स्थित असतात तोच संपूर्ण जगाचा निर्माणकर्ता असून ध्यान करण्यायोग्य आहे. ॥ ३ ॥

    English (1)

    Meaning

    Savita is the lord of life, creator, self-refulgent, all pervasive, whose majesty, Law and ways, all other powers of nature and humanity with all their potential follow, the lord omnipresent who, with his grandeur and omnipotence, creates, pervades and transcends all regions of the universe.

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