ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 19
आग्निर॑गामि॒ भार॑तो वृत्र॒हा पु॑रु॒चेत॑नः। दिवो॑दासस्य॒ सत्प॑तिः ॥१९॥
स्वर सहित पद पाठआ । अ॒ग्निः । अ॒गा॒मि॒ । भार॑तः । वृ॒त्र॒ऽहा । पु॒रु॒ऽचेत॑नः । दिवः॑ऽदासस्य । सत्ऽप॑तिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आग्निरगामि भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः। दिवोदासस्य सत्पतिः ॥१९॥
स्वर रहित पद पाठआ। अग्निः। अगामि। भारतः। वृत्रऽहा। पुरुऽचेतनः। दिवःऽदासस्य। सत्ऽपतिः ॥१९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 19
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! यो दिवोदासस्य भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः सत्पतिरग्निः सूर्य्य आऽगामि तं वयं सेवेमहि ॥१९॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (अग्निः) अग्निरिव तेजस्वी (अगामि) गम्यते (भारतः) धर्ता पोषको वा (वृत्रहा) यो वृत्रं हन्ति सः (पुरुचेतनः) बहवश्चेतना यस्मिन् (दिवोदासस्य) प्रकाशदातुः (सत्पतिः) ॥१९॥
भावार्थः
यथाऽस्मिन् देहे साधनोपसाधनैः सहितो जीवो बहूनि कर्म्माणि करोति तथैव विद्वानखिलानि कर्म्माणि साध्नोति ॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
अब अग्नि कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वान् जनो ! जो (दिवोदासस्य) प्रकाश के देनेवाले का (भारतः) धारण करने वा पोषण करने और (वृत्रहा) मेघ को नाश करनेवाला (पुरुचेतनः) बहुत चेतन जिसमें वह (सत्पतिः) श्रेष्ठ स्वामी (अग्निः) अग्नि के सदृश तेजस्वी सूर्य्य (आ, अगामि) प्राप्त किया जाता है, उसका हम लोग सेवन करें ॥१९॥
भावार्थ
जैसे इस देह में साधन और उपसाधनों के सहित जीव बहुत कर्म्मों को करता है, वैसे ही विद्वान् सम्पूर्ण कर्म्मों को सिद्ध करता है ॥१९॥
विषय
सत्पति का लक्षण । दिवोदास का रहस्य ।
भावार्थ
जिस प्रकार (अग्निः ) भौतिक, देह में जाठर रूप से, लोक में सौर तेज रूप से ( भारतः ) सबका भरण पोषण करता है, (वृत्रहा ) जीवन के विघ्नकारी कारणों और अन्धकारों का नाशक है ( दिवः दासस्य सत्पतिः ) प्रकाश देने वाले पदार्थों का पालक होता है उसी प्रकार ( भारतः ) 'भरत' अर्थात् मनुष्यों का हितकारी, उनका पोषक, हितैषी, ( वृत्रहा ) शत्रुओं को नाश करने वाला, ( पुरु-चेतनः ) बहुतों को चेताने, और ज्ञान देने वाला, (अग्निः ) अग्रणी नायक और तेजस्वी, विद्वान् पुरुष (आ अगामि ) प्राप्त हो । वह ( दिवः दासस्य ) ज्ञान प्रकाश, वा कामना योग्य पदार्थ के देने वाले गुरु और सेवकादि जनों का ( सत्पतिः ), उत्तम पालक हो । ( २ ) आत्मा, देह का पोषक, प्रति मनुष्य स्थित होने से भारत, पुरु इन्द्रियों को चेतन करने वाला, कामपूरक देह का उत्तम स्वामी है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
भारत: पुरुचेतन:
पदार्थ
[१] (अग्निः) = वह अग्रेणी प्रभु (आ अगामि) = स्तुतियों के द्वारा हमारे से जाना जाता है। जो अग्नि (भारतः) = सबका भरण करनेवाला है, (दिवोदासस्य वृत्रहा) = ज्ञान के उपासक पुरुष के वृत्र का विनाश करनेवाला है। जब हम स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान को प्राप्त करने में प्रवृत्त होते हैं, तो प्रभु हमारे वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करते हैं। (पुरुचेतनः) = अनन्त ज्ञानवाले वे प्रभु हैं । [२] ये प्रभु (सत्पतिः) = सज्जनों के रक्षक हैं। प्रभु का स्तवन ही हमारे जीवनों में सज्जनता का कारण बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु-स्तवन के होने पर प्रभु हमारे शरीरों का भरण करते हैं, मानस वासनाओं का विनाश करते हैं और हमारे ज्ञान का वर्धन करते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
जसे या देहात जीव साधन, उपसाधनांनी पुष्कळ कर्म करतो तसेच विद्वान सर्व काम करतो. ॥ १९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, light of life, sustainer of existence, breaker of the clouds of darkness and giver of the bliss of rain, all enlightened and protector of generous enlightened souls, is attained by relentless service, yajna and practice of meditation by the man of universal charity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The character of Agni is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned persons! let us serve that great enlightened leader who is the good protector or the giver of light (of knowledge and truth), upholder or supporter, destroyer of all sins, and who has under his instruction (command) or. guidance, many good persons, full of splendor like Agni (fire or sun).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the soul in this body can do many works (wonders.) with the help of many means-senses, mind and intellect, etc. so an enlightened person can also accomplish all works.
Translator's Notes
It is wrong (not reasonable) on the part of Sayanacharya to take the word as the name of a particular king and say दिवोदासस्य एतत् संज्ञस्य राज्ञः. It is against the fundamental (etymological) principles of the Vedic terminology as earlier pointed out and explained by him in his preliminary Introduction to his Commentary on the Rigveda. This self- contradiction does not behoove a scholar like Sayancharya. Prof. Wilson and Griffith have committed the same mistake. But while as Sayancharya has explained भारत: as हविषा भर्ता Bearer of oblations, Griffith has taken it to mean “The especial protector of the Bharata which is worse than Sayanacharya or Wilson's अथोयदेवैष(अग्नि:) देवेभ्यो हव्यं भरति तस्माद् भारतः (जैमिनोपोः 3-62) । So Dayananda Sarasvati's interpretation is quite correct and supported by the authority of the Jaiminiyopanishad Brahmana.
Foot Notes
(दिवोदासस्य) प्रकाशदातुः । दिवः प्रकाशस्य । दिवु-क्रीडा विजिगीषाद्युति स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु । अत्र घुत्यर्थग्रहणम् । द्युतिः प्रकाश = Of the giver of light (of knowledge or truth). (भारतः) धर्ता पोषको वा दासु-दाने (भ्वा० ) = Upholder or supporter.
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