ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 23
हि यो मानु॑षा यु॒गा सीद॒द्धोता॑ क॒विक्र॑तुः। दू॒तश्च॑ हव्य॒वाह॑नः ॥२३॥
स्वर सहित पद पाठसः । हि । यः । मानु॑षा । यु॒गा । सीद॑त् । होता॑ । क॒विऽक्र॑तुः । दू॒तः । च॒ । ह॒व्य॒ऽवाह॑नः ॥
स्वर रहित मन्त्र
हि यो मानुषा युगा सीदद्धोता कविक्रतुः। दूतश्च हव्यवाहनः ॥२३॥
स्वर रहित पद पाठसः। हि। यः। मानुषा। युगा। सीदत्। होता। कविऽक्रतुः। दूतः। च। हव्यऽवाहनः ॥२३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 23
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सोऽग्निः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥
अन्वयः
यो हव्यवाहनो दूतश्चाग्निर्मानुषा युगा सीदत् स हि होता कविक्रतुरिव कार्य्यसाधको भवति ॥२३॥
पदार्थः
(सः) (हि) यतः (यः) (मानुषा) मनुष्यसम्बन्धीनि (युगा) युगानि वर्षाणि वर्षसमुदितानि वा (सीदत्) सीदति (होता) दाता (कविक्रतुः) महान् विद्वान् (दूतः) (च) (हव्यवाहनः) यो हव्यानि हुतानि द्रव्याणि वहति ॥२३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योऽग्निर्धार्मिकविद्वत्कार्य्यकरो भवति स हि विद्वद्भिः कार्य्यसिद्धये सम्प्रयोक्तव्यः ॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह अग्नि कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
(यः) जो (हव्यवाहनः) हनव किये गये द्रव्यों को प्राप्त कराने पहुँचानेवाला और (दूतः) दूतवत् वर्त्तमान (च) भी अग्नि (मानुषा) मनुष्य-सम्बन्धी (युगा) वर्ष वा वर्षसमुदायों को (सीदत्) प्राप्त होता है (सः) (हि) वही (होता) दाता (कविक्रतुः) बड़ा विद्वान् जैसे वैसे कार्य का साधक होता है ॥२३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अग्नि धार्मिक और विद्वानों के कार्य्यों का करनेवाला होता है, उसको विद्वान् जन कार्य्यों की सिद्धि के लिये सम्प्रयुक्त करें ॥२३॥
विषय
विद्युत्वत् विद्वान् अध्यक्ष, उसकी दीर्घायु ।
भावार्थ
( यः ) जो ( होता ) उचित पदार्थ का लेने और देने और आदरपूर्वक अन्यों को बुलाने, सत्कार करने हारा, (कवि-क्रतु:) पुरुष केसे कर्म और बुद्धि को धारने वाला, (दूतः) दूत और ( हव्य-वाहनः ) विद्युत्वत् हृव्य, अन्नों, वक्तव्य वचनों को धारने वाला है, वह विद्वान् पुरुष ही ( मानुषा युगा ) मनुष्यों के जोड़े, स्त्री पुरुषों के ऊपर अध्यक्ष होकर ( सीदत् ) विराजे । ( २ ) इसी प्रकार जो विद्वान् ( दूतः ) तपस्वी, ( हव्य-वाहनः ) ज्ञान और अन्न का भोक्ता है, वह बहुत मानुष वर्षो तक जीता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
दूतः-हव्यवाहनः
पदार्थ
[१] (सः) = वह प्रभु (हि) = ही (मानुषा युगा) = मानव युग्यों में, पति-पत्नी में (सीदत्) = आसीन हो [सीदतु] (यः) = जो (होता) = सब जीवन-यज्ञ के साधनभूत पदार्थों का दाता है और (कविक्रतुः) = क्रान्तप्रज्ञ है। [२] वह निरतिशय ज्ञानवाला प्रभु (दूतः) = ज्ञान का संदेश देनेवाला है, (च) = और (हव्यवाहनः) = सब हव्य पदार्थों का देनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के तेज के अंश से युक्त हुए हुए ही पति-पत्नी यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त होते हैं और अपने ज्ञान का वर्धन करनेवाले होते हैं। प्रभु ही हमें ज्ञान का सन्देश देते हैं और सब हव्य पदार्थों को प्राप्त कराते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो अग्नी धार्मिकाचे व विद्वानांचे कार्य करतो, त्याला विद्वान लोकांनी कार्याच्या सिद्धीसाठी प्रयुक्त करावे. ॥ २३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May that Agni, cosmic highpriest of nature’s yajna, receiver of oblations and giver of the fruits of corporate action, visionary power of creative holiness, harbinger and disseminator of fragrance like a messenger, creator and distributor of the finest things of life, join us and be seated with us on the vedi for all ages of human history.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The nature of Agni is told further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Agni (fire) which is the bearer of the oblations and is like a messenger (conveying smoke and fragrance of the oblation to distant places), is seated in every age. Like a great scholar, it is accomplisher of great works.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Agni (fire) which is accomplisher of many works like a righteous highly learned person, should be used for accomplishing various purposes by the enlightened men.
Foot Notes
(कविक्रतुः ) महान् विद्वान् । कविः-कान्तवर्शनः कव्तेर्वा (NKT 12, 2 14) कवीनां विदुषां ऋतु: प्रज्ञा कर्म वा यस्य स: इति महर्षि: दयानन्द सरस्वती (ऋ. 3, 27, 12) भाष्ये ऋतुरिति कर्मनाथ (NG 3, 9) = Great scholar.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal