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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 44
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - साम्नीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अच्छा॑ नो या॒ह्या व॑हा॒भि प्रयां॑सि वी॒तये॑। आ दे॒वान्त्सोम॑पीतये ॥४४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अच्छ॑ । नः॒ । या॒हि॒ । आ । व॒ह॒ । अ॒भि । प्रयां॑सि । वी॒तये॑ । आ । दे॒वान् । सोम॑ऽपीतये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अच्छा नो याह्या वहाभि प्रयांसि वीतये। आ देवान्त्सोमपीतये ॥४४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अच्छ। नः। याहि। आ। वह। अभि। प्रयांसि। वीतये। आ। देवान्। सोमऽपीतये ॥४४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 44
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः केषां सत्कारः कर्त्तव्य इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वंस्त्वन्नोऽच्छा सोमपीतय आ याहि। प्रयांस्यभ्याऽऽवह वीतये देवानाऽऽयाहि ॥४४॥

    पदार्थः

    (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (याहि) प्राप्नुहि (आ) (वह) प्राप्नुहि (अभि) (प्रयांसि) प्रियतमानि (वीतये) ज्ञानाय (आ) समन्तात् (देवान्) विदुषः (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥४४॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः सत्काराय विदुषामाह्वानं कर्त्तव्यम् ॥४४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को किसका सत्कार करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! आप (नः) हम लोगों को (अच्छा) उत्तम प्रकार (सोमपीतये) सोमलतारूप ओषधि के रस के पान के लिये (आ, याहि) सब ओर से प्राप्त होओ और (प्रयांसि) अत्यन्त प्रिय वस्तुओं को (अभि) चारों ओर से (आ) सब प्रकार (वह) प्राप्त होओ और (वीतये) ज्ञान के लिये (देवान्) विद्वानों को सब ओर से प्राप्त होओ ॥४४॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि सत्कार के लिये विद्वानों का आह्वान करें ॥४४॥

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    विषय

    राष्ट्र पालनार्थ राजा का सैन्य धारण ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! विद्वन् ! तू ( नः अच्छ याहि ) हमें भली प्रकार से प्राप्त हो । ( वीतये) हमारे उपभोग और रक्षा करने के लिये ( प्र यासि ) उत्तम अन्नों और उत्तम यत्नवान् कर्मों व सैन्यों को ( आ वह ) धारण कर और ( देवान् ) विद्वान्, विजयाभिलाषी, वीर और तेजस्वी पुरुषों को ( सोमपीतये ) ऐश्वर्य के प्राप्त करने और पालन करने के लिये ( आ वह ) तू प्राप्त कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    वीतये, सोमपीतये

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (नः अच्छा) = हमारी ओर (आयाहि) = हमें आभिमुख्येन प्राप्त होइये । हमें (प्रयांसि अभिः) = सात्त्विक अन्नों की ओर (आवह) = ले चलिए। हम सात्त्विक अन्नों का ही सेवन करें। (वीतये) = अज्ञानान्धकार के ध्वंस के लिये यह सात्त्विक अन्नों का सेवन आवश्यक ही है 'आहार शुद्धौ सत्त्वशुद्धिः ' । [२] हमें (देवान् आ) = दिव्यगुणों को प्राप्त कराइये जिससे हम (सोमपीतये) = सोम का शरीर में पान कर सकें। शरीर में सोम का रक्षण आवश्यक ही है। और यह रक्षण तभी होता है जब हम आसुरभावों से दूर हों और दैवीवृत्तियों के समीप हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का उपासन करें, सात्त्विक अन्नों का सेवन करें जिससे अज्ञानान्धकार का ध्वंस हो। अपने अन्दर दिव्य गुणों का धारण करते हुये आसुरभावों से ऊपर उठें जिससे सोम का [वीर्य का] रक्षण कर सकें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी सत्कारासाठी विद्वानांना आवाहन करावे. ॥ ४४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, leading light of knowledge, generous pioneer, come fast in all your glory, bring us the dearest powers for sustenance and advancement for the sake of peace and well-being, and bring the noble brilliancies along to celebrate success with the delight of soma.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Who should be honored by men is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned person! come to us, to drink the draught of Soma juice, obtain from all sides the most desirable or dearest articles. Approach the enlightened person, for the attainment of knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should invite the enlightened person to show them respect.

    Foot Notes

    (प्रयांसि) प्रियतमानि । प्रीत्-तर्पणे कान्तौ च (क्रया० ) कान्तिः कामना प्रयः इति उदकनाम (NG 1, 12) प्रयः इति अन्यनाम (NG 2, 7) = The most desirable or dearest articles. So प्रयान्सि includes good water, food and other desirable things. (वीतये) ज्ञानाय। = For the attainment of knowledge.

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