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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 17/ मन्त्र 14
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स नो॒ वाजा॑य॒ श्रव॑स इ॒षे च॑ रा॒ये धे॑हि द्यु॒मत॑ इन्द्र॒ विप्रा॑न्। भ॒रद्वा॑जे नृ॒वत॑ इन्द्र सू॒रीन्दि॒वि च॑ स्मैधि॒ पार्ये॑ न इन्द्र ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । वाजा॑य । श्रव॑से । इ॒षे । च॒ । रा॒ये । धे॒हि॒ । द्यु॒ऽमतः॑ । इ॒न्द्र॒ । विप्रा॑न् । भ॒रत्ऽवा॑जे । नृ॒ऽवतः॑ । इ॒न्द्र॒ । सू॒रीन् । दि॒वि । च॒ । स्म॒ । ए॒धि॒ । पार्ये॑ । नः॒ । इ॒न्द्र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो वाजाय श्रवस इषे च राये धेहि द्युमत इन्द्र विप्रान्। भरद्वाजे नृवत इन्द्र सूरीन्दिवि च स्मैधि पार्ये न इन्द्र ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नः। वाजाय। श्रवसे। इषे। च। राये। धेहि। द्युऽमतः। इन्द्र। विप्रान्। भरत्ऽवाजे। नृऽवतः। इन्द्र। सूरीन्। दिवि। च। स्म। एधि। पार्ये। नः। इन्द्र ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 17; मन्त्र » 14
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्नृपेण किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! स त्वं द्युमतो नो विप्रान् वाजाय श्रवस इषे राये च धेहि, हे इन्द्र ! त्वं नृवतोऽस्मान्त्सूरीन् भरद्वाजे दिवि च धेहि। हे इन्द्र ! त्वं पार्य्ये च नोऽस्माकं वर्धकः स्मैधि ॥१४॥

    पदार्थः

    (सः) राजा (नः) अस्मान् (वाजाय) वेगाय विज्ञानाय वा (श्रवसे) श्रवणाय (इषे) अन्नाय (च) (राये) धनाय (धेहि) (द्युमतः) विज्ञानप्रकाशयुक्तान् (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रापक (विप्रान्) मेधाविनो विपश्चितः (भरद्वाजे) राज्यस्य पोषके पालके वा व्यवहारे (नृवतः) प्रशस्तजनयुक्तान् (इन्द्र) दुःखदारिद्र्यविनाशक (सूरीन्) विदुषः (दिवि) कमनीये न्यायप्रकाशे (च) (स्म) एव (एधि) भव (पार्य्ये) पारयितव्ये (नः) अस्माकम् (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्यवर्धक ॥१४॥

    भावार्थः

    राज्ञां योग्यमस्ति सर्वेष्वधिकारेषु सर्वविद्याकुशलान् धार्मिकान् कुलीनान् राजभक्तान् संस्थाप्य सर्वतो राज्योन्नतिं विदध्युः ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के प्राप्त करानेवाले ! (सः) वह राजा आप (द्युमतः) विज्ञान के प्रकाश से युक्त (नः) हम लोगों (विप्रान्) बुद्धिमान् विद्वानों को (वाजाय) वेग वा विज्ञान के लिये (श्रवसे) श्रवण के लिये (इषे) अन्न के लिये और (राये) धन के लिये (च) भी (धेहि) धारण करिये और हे (इन्द्र) दुःख और दारिद्र्य के विनाशक ! आप (नृवतः) अच्छे मनुष्यों से युक्त हम (सूरीन्) विद्वानों को (भरद्वाजे) राज्य के पुष्ट करने वा पालन करनेवाले व्यवहार में और (दिवि) सुन्दर न्याय के प्रकाश में (च) भी धारण करिये और हे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य के बढ़ानेवाले ! आप (पार्य्ये) पार करने योग्य में भी (नः) हम लोगों के बढ़ानेवाले (स्म) ही (एधि) होओ ॥१४॥

    भावार्थ

    राजाओं को योग्य है कि सम्पूर्ण अधिकारों में सम्पूर्ण विद्याओं में चतुर, धार्म्मिक, कुलीन और राजभक्तों को संस्थापित करके सब प्रकार से राज्य की उन्नति करें ॥१४॥

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    विषय

    उसका कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! (सः ) वह तू ( द्युमतः ) दीप्ति, कान्ति आदि से युक्त ( नः ) हमें ( वाजाय ) बलैश्वर्य प्राप्त करने, ( श्रवसे ) अन्न, कीर्ति और ज्ञान प्राप्त करने और ( इषे ) इष्ट वाञ्छित सुख प्राप्त करने और ( राये ) ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये ( धेहि ) धारण और पालन कर । हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( नृवृतः सूरीन् ) मनुष्यों के स्वामियों और विद्वानों को ( भरद्वाजे ) अन्नादि से भरण पोषण करने के काम में और ( दिवि ) राजसभा और न्यायव्यवहार के कार्य में (धेहि ), नियुक्त कर । हे ऐश्वर्यवन् ! तू ( नः ) हमें (पार्ये ) संकटों से पार करने में समर्थ ( एधि ) हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः -१ , २, ३, ४, ११ त्रिष्टुप् । ५, ६, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ७, ९, १०, १२, १४ निचृत्त्रिष्टुप् । १३ स्वराट् पंक्ति: । १५ आच् र्युष्णिक् ।।

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    विषय

    पायें दिवि

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (सः) = वे आप (नः) = हमें (वाजाय) = बल के लिए, (श्रवसे) = ज्ञान के लिए, (इषे) = प्रेरणा के लिए (च) = और (राये) = धन के लिए (धेहि) = धारण कीजिए। हे प्रभो! आप हमें (द्युमतः) = ज्योतिर्मय (विप्रान्) = अपना पूरण करनेवाले ज्ञानी ब्राह्मणों को प्राप्त कराइए । इनके सम्पर्क में हमारा जीवन भी ज्योतिर्मय बने। [२] (भरद्वाजे) = अपने में शक्ति को भरनेवाले मेरे में, हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (नृवतः) = प्रशस्त मनुष्योंवाले (सूरीन्) = ज्ञानी स्तोताओं को [धेहि =] प्राप्त कराइये। इनके सम्पर्क में मैं भी ज्ञानी व स्तोता बनूँ। (च) = और हे (इन्द्र) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाले प्रभो ! (न:) = हमारे (पार्ये दिवि) = पारणीय-वैषयिक समुद्र से पार करने में समर्थ-ज्ञान की प्राप्ति के निमित्त स्म एधि होइये ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ज्ञानी ब्राह्मणों के द्वारा प्रभु हमारे लिए 'पारणीय ज्ञान' को प्राप्त करानेवाले हों ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने संपूर्ण अधिकारात सर्व विद्येत चतुर, धार्मिक, कुलीन राजभक्तांना संस्थापित करून सर्व प्रकारे राज्याची उन्नती करावी. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May Indra, lord ruler of the universe, accept us, vibrant seekers of light, for the gift of speed and progress toward victory, honour and excellence, food and energy, and all round wealth of life. May Indra bless the brave leaders of humanity, and may the lord establish us all in the light of divinity and guide us on the path of total worldly fulfilment and freedom of ultimate salvation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a king do is further elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O (king) Indra conveyor of Great prosperity uphold us who are endowed with the light of the knowledge, who are wise highly learned persons for speed or scientific knowledge, for hearing (the complaints of the people) and for good wealth. O Indra-eliminator of miseries and poverty, uphold us who are surrounded by admirable men and are full of knowledge in the dealing that sustains of protects the State and in the desirable light of justice. O Indra-increaser of the wealth of knowledge, be our increaser (helper) in the dealing that takes men away from miseries and obstacles.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the king to make the State advanced by appointing men who are well-versed in all sciences, righteous, born in noble families and loyal in-charge of all departments.

    Translator's Notes

    नाज:-वज गतौ गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च । A State requires good knowledge, good movement and attainment of happiness and peace. (ड-भूञ्) धारणपोषणयो: (जुहो०) वाज इत्यन्नाम NG 2, 7) वाज इति बलनाम (NG 2, 9 ) । The progress of a State depends on food and strength also. दिवु-क्रीडा विजिगीषा व्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमद-स्वप्नकान्तिगतिषु । अत्र दयुतिकान्त्यर्थ मादाय व्याख्या । द्युति: - प्रकाशः । कान्तिः- कामना ।

    Foot Notes

    (भरद्वाजे) राजस्य पोषके पालके वा व्यबहारे । = In the dealing of supporting or protecting the state. (दिवि कमनीये न्यायप्रकाशे | = In the desirable light of justice.

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