ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 10
ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
सच॑स्व ना॒यमव॑से अ॒भीक॑ इ॒तो वा॒ तमि॑न्द्र पाहि रि॒षः। अ॒मा चै॑न॒मर॑ण्ये पाहि रि॒षो मदे॑म श॒तहि॑माः सु॒वीराः॑ ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठसच॑स्व । ना॒यम् । अव॑से । अ॒भीके॑ । इ॒तः । वा॒ । तम् । इ॒न्द्र॒ । पा॒हि॒ । रि॒षः । अ॒मा । च॒ । ए॒न॒म् । अर॑ण्ये । पा॒हि॒ । रि॒षः । मदे॑म । श॒तऽहि॑माः । सु॒ऽवीराः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सचस्व नायमवसे अभीक इतो वा तमिन्द्र पाहि रिषः। अमा चैनमरण्ये पाहि रिषो मदेम शतहिमाः सुवीराः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठसचस्व। नायम्। अवसे। अभीके। इतः। वा। तम्। इन्द्र। पाहि। रिषः। अमा। च। एनम्। अरण्ये। पाहि। रिषः। मदेम। शतऽहिमाः। सुऽवीराः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वमवसेऽभीके नायं सचस्व, इतो वा रिषः पाह्येनममाऽरण्ये पाहि रिषश्च यतः सुवीरा वयं शतहिमा मदेम ॥१०॥
पदार्थः
(सचस्व) प्राप्नुहि (नायम्) न्यायम् (अवसे) रक्षणाद्याय (अभीके) समीपे (इतः) (वा) (तम्) (इन्द्र) राजन् विद्वन् वा (पाहि) (रिषः) हिंसकात् (अमा) गृहे (च) (एनम्) (अरण्ये) (पाहि) (रिषः) दुष्टाचारात् (मदेम) आनन्देम (शतहिमाः) शतं वर्षाणि यावत् (सुवीराः) शोभना वीरा येषान्ते ॥१०॥
भावार्थः
ये विद्वांसः सन्ति ते दूरे समीपे वा स्थिता न्यायाचरणयोगाभ्यासाभ्यां वर्द्धितप्रज्ञाः सन्तः वसतिषु जङ्गलेषु च पुरुषार्थेन प्रजा रक्षन्त्विति ॥१०॥ अत्रेन्द्रविद्वदीश्वरगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुर्विंशतितमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) राजन् वा विद्वान् ! आप (अवसे) रक्षण आदि के लिये (अभीके) समीप में (नायम्) न्याय को (सचस्व) प्राप्त हूजिये (इतः) यहाँ से (वा) वा (रिषः) हिंसा करनेवाले से (पाहि) रक्षा कीजिये और (एनम्) इसकी (अमा) गृह में और (अरण्ये) वन में (पाहि) रक्षा कीजिये (रिषः, च) और दुष्ट आचरण से भी, जिससे (सुवीराः) सुन्दर वीर जिनके ऐसे हम लोग (शतहिमाः) सौ वर्ष पर्यन्त (मदेम) आनन्द करें ॥१०॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन हैं, वे दूर वा समीप में वर्त्तमान हुए न्यायचरण और योगाभ्यास से बुद्धि को बढ़ाये हुए बस्ती और जङ्गलों में पुरुषार्थ से प्रजाजनों की रक्षा करें ॥१०॥ इस सूक्त में राजा, विद्वान् और ईश्वर के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह चौबीसवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांनी दूर व जवळ असलेल्यांची न्यायाचरण व योगाभ्यास याद्वारे बुद्धी वाढवून शहरात व जंगलात पुरुषार्थाने प्रजेचे रक्षण करावे. ॥ १० ॥
English (1)
Meaning
Indra, ruling lord of the realm, be with us, our leadership and our policy, and justice for protection and progress. Save the system here and afar, at home and abroad, from fear and violence so that, blest with the brave, we may live and rejoice for a full hundred years.
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