ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 29/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
श्रि॒ये ते॒ पादा॒ दुव॒ आ मि॑मिक्षुर्धृ॒ष्णुर्व॒ज्री शव॑सा॒ दक्षि॑णावान्। वसा॑नो॒ अत्कं॑ सुर॒भिं दृ॒शे कं स्व१॒॑र्ण नृ॑तविषि॒रो ब॑भूथ ॥३॥
स्वर सहित पद पाठश्रि॒ये । ते॒ । पादा॑ । दुवः॑ । आ । मि॒मि॒क्षुः॒ । धृ॒ष्णुः । व॒ज्री । शव॑सा । दक्षि॑णऽवान् । वसा॑नः । अत्क॑म् । सु॒र॒भिम् । दृ॒शे । कम् । स्वः॑ । न । नृ॒तो॒ इति॑ । इ॒षि॒रः । ब॒भू॒थ॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रिये ते पादा दुव आ मिमिक्षुर्धृष्णुर्वज्री शवसा दक्षिणावान्। वसानो अत्कं सुरभिं दृशे कं स्व१र्ण नृतविषिरो बभूथ ॥३॥
स्वर रहित पद पाठश्रिये। ते। पादा। दुवः। आ। मिमिक्षुः। धृष्णुः। वज्री। शवसा। दक्षिणऽवान्। वसानः। अत्कम्। सुरभिम्। दृशे। कम्। स्वः। न। नृतो इति। इषिरः। बभूथ ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 29; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स राजा कीदृश इत्याह ॥
अन्वयः
हे नृतो ! यस्य ते पादा दुवः श्रिय आ मिमिक्षुः शवसा धृष्णुर्वज्री दक्षिणावान् दृशे कं सुरभिमत्कं वसानः स्वर्ण इषिरो यस्त्वं बभूथ तं त्वा वयं सेवेमहि ॥३॥
पदार्थः
(श्रिये) लक्ष्म्यै (ते) तव (पादा) पादौ (दुवः) कार्यसेवनम् (आ) (मिमिक्षुः) आसिञ्चतः (धृष्णुः) प्रगल्भः (वज्री) शस्त्रास्त्रधारी (शवसा) बलेन (दक्षिणावान्) प्रशस्ता दक्षिणा विद्यते यस्य सः (वसानः) धारयन् (अत्कम्) व्याप्तशीलं वस्त्रम् (सुरभिम्) सुगन्धम् (दृशे) द्रष्टुम् (कम्) सुखकरं सुन्दरम् (स्वः) सुखम् (न) इव (नृतो) नेतः (इषिरः) ज्ञानवान् (बभूथ) भवेः ॥३॥
भावार्थः
हे राजन् ! यस्य तवाश्रयेण पुष्कलश्रीर्घासाच्छादनयानानि सुखं प्रतिष्ठा च प्राप्नोति सोऽस्माभिर्भवान् कथन्न सेव्यते ॥३॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर वह राजा कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (नृतो) नायक अग्रणी जन जिन (ते) आपके (पादा) पाद (दुवः) कार्य सेवन को (श्रिये) लक्ष्मी के लिये (आ, मिमिक्षुः) चारों ओर सींचते हैं और (शवसा) बल से (धृष्णुः) ढीठ (वज्री) शस्त्र और अस्त्रों को धारण करनेवाले (दक्षिणावान्) उत्तम दक्षिणावान् (दृशे) देखने के लिये (कम्) सुख करनेवाले सुन्दर (सुरभिम्) सुगन्ध को और (अत्कम्) व्याप्तिशील वस्त्र को (वसानः) धारण करते हुए (स्वः) सुख को (न) जैसे (इषिरः) ज्ञानवान्, वैसे जो आप (बभूथ) प्रसिद्ध हो, उन आपकी हम लोग सेवा करें ॥३॥
भावार्थ
हे राजन् ! जिन आपके आश्रय से अत्यन्त लक्ष्मी, घास, ओढ़ना, वाहन, सुख और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, वह आप हम लोगों से कैसे नहीं सेवन करने योग्य हैं ॥३॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! तुझ्या आश्रयाने खूप लक्ष्मी, शेती, वस्त्र, वाहन, सुख व प्रतिष्ठा प्राप्त होते तेव्हा आमच्याकडून तुझा स्वीकार कसा होणार नाही? ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Gracious are your feet firmly fixed in liberality and compassion. The devotees offer their homage of soma there for glory. You are all conquering, wielder of the thunderbolt, mighty generous by your own essential power and munificence, and, wearing a fragrant, glorious and heavenly robe, blissful sight for all to see, O director of the cosmic dance, you are the all moving, all inspiring, omniscient presence and power.
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