ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 29/ मन्त्र 4
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स सोम॒ आमि॑श्लतमः सु॒तो भू॒द्यस्मि॑न्प॒क्तिः प॒च्यते॒ सन्ति॑ धा॒नाः। इन्द्रं॒ नरः॑ स्तु॒वन्तो॑ ब्रह्मका॒रा उ॒क्था शंस॑न्तो दे॒ववा॑ततमाः ॥४॥
स्वर सहित पद पाठसः । सोमः॑ । आमि॑श्लऽतमः । सु॒तः । भू॒त् । यस्मि॑न् । प॒क्तिः । प॒च्यते॑ । सन्ति॑ । धा॒नाः । इन्द्र॑म् । नरः॑ । स्तु॒वन्तः॑ । ब्र॒ह्म॒ऽका॒राः । उ॒क्था । शंस॑न्तः । दे॒ववा॑तऽतमाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स सोम आमिश्लतमः सुतो भूद्यस्मिन्पक्तिः पच्यते सन्ति धानाः। इन्द्रं नरः स्तुवन्तो ब्रह्मकारा उक्था शंसन्तो देववाततमाः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठसः। सोमः। आमिश्लऽतमः। सुतः। भूत्। यस्मिन्। पक्तिः। पच्यते। सन्ति। धानाः। इन्द्रम्। नरः। स्तुवन्तः। ब्रह्मऽकाराः। उक्था। शंसन्तः। देववातऽतमाः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 29; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृशो भवेदित्याह ॥
अन्वयः
हे नरो ! यस्मिन् राजनि पक्तिः पच्यते धानाः सन्त्यामिश्लतमः सुतः सोमो भूद्यमिन्द्रं स्तुवन्तो ब्रह्मकारा देववाततमा उक्था शंसन्तः सन्ति स भवानस्माकं राजा भवतु ॥४॥
पदार्थः
(सः) (सोमः) ऐश्वर्ययोग ओषधिरसो वा (आमिश्लतमः) समन्तादतिशयेन मिश्रितः (सुतः) निष्पन्नः (भूत्) भवति (यस्मिन्) (पक्तिः) पाकः (पच्यते) (सन्ति) (धानाः) भ्रष्टान्यन्नानि (इन्द्रम्) (नरः) विद्वत्सु नायकाः (स्तुवन्तः) प्रशंसन्तः (ब्रह्मकाराः) ये ब्रह्म धनमन्नं वा कुर्वन्ति ते (उक्था) उक्तानि वक्तव्यानि (शंसन्तः) उपदिशन्तः (देववाततमाः) येऽतिशयेन देवान् विदुषः पदार्थान् वा प्राप्नुवन्ति ते ॥४॥
भावार्थः
यदि स धार्मिको राजा न स्यात्तर्हि सर्वे व्यवहारा विलुप्येरन्। यस्मिन्त्सति धनधान्यैश्वर्यं दधति ता धार्मिक्यः प्रजाः सन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह कैसा होवे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (नरः) विद्वानों में अग्रणी जनो ! (यस्मिन्) जिस राजा के होने पर (पक्तिः) पाक (पच्यते) पकाया जाता है (धानाः) भूँजे हुए अन्न हैं (आमिश्लतमः) चारों ओर से अत्यन्त मिला हुआ (सुतः) उत्पन्न (सोमः) ऐश्वर्य का योग वा ओषधि का रस (भूत्) होता है और जिस (इन्द्रम्) ऐश्वर्यकारक की (स्तुवन्तः) प्रशंसा करते हुए (ब्रह्मकाराः) धन वा अन्न को करनेवाले (देववाततमाः) अतिशय विद्वानों वा पदार्थों को प्राप्त होनेवाले (उक्था) कहने योग्य वचनों का (शंसन्तः) उपदेश देते हुए (सन्ति) हैं (सः) वह आप हम लोगों के राजा हूजिये ॥४॥
भावार्थ
जो वह धार्मिक राजा न होवे तो सब व्यवहार लोप होवें। जिसके होने पर धन-धान्य और ऐश्वर्य को धारण करती हैं, वे धर्मयुक्त प्रजायें होती हैं ॥४॥
विषय
राजा के उत्तम गुण, 'सोम', "धाना", 'पक्ति' 'ब्रह्मकार' आदि का स्पष्टीकरण ।
भावार्थ
( यस्मिन् ) जिस प्रधान नायक की अधीनता में ( सः ) वह ( सुतः ) उत्पन्न हुआ पुत्रवत्, वा अभिषिक्त ( सोमः ) ऐश्वर्यवान् सौम्य, प्रजाजन ( आ मिश्लतमः) सब प्रकार मिला हुआ, तुल्य परस्पर प्रेम युक्त ( भूत् ) हो जाता है, ( यस्मिन् पक्तिः ) जिसके अधीन गृह वा क्षेत्र में भोजन अन्न का उत्तम रीति से परिपाक (पच्यते ) हो और (धानाः सन्ति ) जिसके अधीन रहकर धान की खीलों के सदृश उज्ज्वल चरित्र वाली प्रजाएं ऐश्वर्य को धारण करने में समर्थ हों उस ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता राजा को ( नरः ) नायक ( ब्रह्मकारा ) धन, अन्न और वेद ज्ञान के करने में दक्ष पुरुष ( स्तुवन्तः ) स्तुति करते और ( उक्था शंसन्तः ) उत्तम स्तुत्य वचन कहते हुए ( देव-वाततमा ) सूर्यवत् तेजस्वी राजा वा प्रभु के अति समीप पहुँच जाते हैं । अध्यात्म में वही ‘इन्द्र" आत्मा है जिसमें सोम, परमानन्दरस, ‘पक्ति’ तप, परिपाक और ‘धाना’ ध्यान धारणाएं हों जिसकी ब्रह्मज्ञानी स्तुति, उपदेश करते हुए उपास्य देव के अति समीपतम, तन्मय हो जाते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः–१, ३, ५ निचृत्त्रिष्टुप् । ४ त्रिष्टुप् । २ भुरिक् पंक्ति: ६ ब्राह्मी उष्णिक्॥
विषय
सोम का महत्त्व
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार जब प्रभु हमारे कवच होते हैं, तो (सुतः) = उत्पन्न हुआ-हुआ (सः सोमः) = वह सोम [वीर्यशक्ति] (आमिश्लतमः) = सर्वत्र शरीर के अंग-प्रत्यंग में युक्त (भूत्) = होती है। (यस्मिन्) = जिस सोम के ऐसा होने पर (पक्तिः पच्यते) = ज्ञान का ठीक परिपाक होता है। और (धानाः सन्ति) = ईश्वर का प्रणिधान की वृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं। [२] इस सोम के शरीर में मिश्लतम होने पर (नरः) = ये उन्नतिपथ पर चलनेवाले लोग (इन्द्रं स्तुवन्तः) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु का स्तवन करते हुए (ब्रह्मकाराः) = इस वेद को अपने अन्दर करनेवाले होते हैं [ब्रह्म कुर्वन्ति इति] । (उक्था) = सदा स्तुति-वचनों का (शंसन्तः) = शंसन करते हुए ये लोग (देववाततमाः) = अधिक से अधिक दिव्यगुणों को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम-रक्षण से [क] ज्ञान का परिपाक होता है, [ख] ईश्वर प्रणिधान की पूर्ति होती है, [ग] प्रभु-स्तवन चलता है, [घ] वेदज्ञान उत्पन्न होता है, [ङ] स्तुत्यवचनों का उच्चारण व दिव्यगुणों की प्राप्ति होती है।
मराठी (1)
भावार्थ
जर राजा धार्मिक नसेल तर सर्व व्यवहार नष्ट होतात व धर्मयुक्त प्रजेमुळे धन, धान्य, ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
That is the blessed dominion of Indra, ideal world order raised to systemic purity and integrated to organismic unity wherein soma is distilled and seasoned in plenty, ample food is prepared for all, food grains are grown in abundance, and leading lights of the people, divinely occupied, sing songs of appreciation in praise of Indra and rise to the heights of excellence bordering on divinity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is that iled king is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Be you our ruler, under whose guidance and shelter good food is cooked and fried grain is mingled; soma (juice of soma plant and other herbs) mixed from all sides, for with many other ingredients or wealth is prepared and acquired. Acquirers of wealth or foodstuffs, who approach great scholars and preach admirable things also praise you very much, on account of your virtues.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If the ruler is not righteous, all dealings are spoiled or omitted. Those are righteous subjects, who uphold wealth, era and prosperity under the rulership of a good king.
Foot Notes
(सोमः) ऐश्वर्ययोग ओषधिरसो वा । षु-प्रयवैश्वर्ययोः (स्वा.) अत्रोभयार्थ ग्रहणम् । ब्रह्मोति धननाम (NG 2, 10) ब्रह्मोति अन्ननाम (NG 2, 7)। = The juice of the plants and herbs or combination of wealth. (ब्रह्मकाराः) ये ब्रह्म धनमन्नं वा कुर्वन्ति ते । = Those who acquire wealth or food material. (देववाततमाः) येऽतिशयेन देवान् विदुषः पदार्थान् वा प्राप्नुवन्ति ते । वा गतिगन्धनयो: (अदा०) गतेस्त्रिष्वर्थेष्वत्न प्राप्त्यर्थ ग्रहणम् । = Those who approach the most enlightened persons get divine objects.
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