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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 46/ मन्त्र 14
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः प्रगाथो वा छन्दः - विराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    सिन्धूँ॑रिव प्रव॒ण आ॑शु॒या य॒तो यदि॒ क्लोश॒मनु॒ ष्वणि॑। आ ये वयो॒ न वर्वृ॑त॒त्यामि॑षि गृभी॒ता बा॒ह्वोर्गवि॑ ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सिन्धू॑न्ऽइव । प्र॒व॒णे । आ॒शु॒ऽया । य॒तः । यदि॑ । क्लोश॑म् । अनु॑ । स्वनि॑ । आ । ये । वयः॑ । न । वर्वृ॑त॒ति । आमि॑षि । गृ॒भी॒ताः । बा॒ह्वोः । गवि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिन्धूँरिव प्रवण आशुया यतो यदि क्लोशमनु ष्वणि। आ ये वयो न वर्वृतत्यामिषि गृभीता बाह्वोर्गवि ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिन्धून्ऽइव। प्रवणे। आशुऽया। यतः। यदि। क्लोशम्। अनु। स्वनि। आ। ये। वयः। न। वर्वृतति। आमिषि। गृभीताः। बाह्वोः। गवि ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 46; मन्त्र » 14
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते राजादयः किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् ! भवान् यदि प्रवणे सिन्धूनिवाशुया स्वन्यामिषि वयो न गवि क्लोशमनुवर्वृतति। बाह्वोर्गृभीता रश्मयः कला वा यथावच्चलन्ति तर्हि स्थानान्तरप्राप्तिर्दुर्लभा नास्ति ये यतो गच्छन्त्यागच्छन्ति तेऽप्येवमनुतिष्ठन्तु ॥१४॥

    पदार्थः

    (सिन्धूनिव) नदीरिव (प्रवणे) निम्नस्थाने (आशुया) आशुगैरश्वैः (यतः) यस्मात् (यदि) (क्लोशम्) क्रोशम् (अनु) (स्वनि) शब्दे (आ) (ये) (वयः) पक्षिणः (न) इव (वर्वृतति) भृशं गच्छति (आमिषि) मांसे दृष्टे सति (गृभीताः) गृहीताः (बाह्वोः) (गवि) पृथिव्याम् ॥१४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं यथोदकमुच्चस्थानान् निम्नं देशं सद्यो गच्छति यथा वा श्येनादयः पक्षिणो मांसार्थं तूर्णं धावन्ति तथैव भूम्यन्तरिक्षे जले वा यानैः सद्यो गच्छतेति ॥१४॥ अत्र राजवीरसङ्ग्रामगृहशूरवीरयानकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्चत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकोनत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे राजा आदि क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! आप (यदि) जो (प्रवणे) नीचे के स्थान में (सिन्धूनिव) नदियों को जैसे वैसे (आशुया) शीघ्र चलनेवाले घोड़ों से वा (स्वनि) शब्द के होने और (आमिषि) मांस के देखने पर (वयः) पक्षी (नः) जैसे वैसे (गवि) पृथिवी में (क्लोशम्) कोश को (अनु, वर्वृतति) अत्यन्त वा बारम्बार प्राप्त होते हैं वा (बाह्वोः) बाहुओं में (गृभीताः) ग्रहण की गई किरणें वा कलायें यथावत् जाती हैं तो दूसरे स्थान में प्राप्त होना दुर्लभ नहीं है (ये) जो (यतः) जहाँ से जाते (आ) आते हैं, वे भी ऐसा करें ॥१४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम जैसे जल ऊँचे स्थान से नीचे के स्थान को शीघ्र जाता है और जैसे बाज आदि पक्षी माँस के लिये शीघ्र जाते हैं, वैसे भूमि, अन्तरिक्ष वा जल में वाहनों से शीघ्र जाओ ॥१४॥ इस सूक्त में राजा, वीर, सङ्ग्राम, गृह, शूरवीर और यान कृत्य के वर्णन से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छयालीसवाँ सूक्त और उनतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    श्येनों के समान वीरों का पलायन ।

    भावार्थ

    ( प्रवणे सिन्धून् इव ) जिस प्रकार नीचे प्रदेश में नदियां बहती हैं और जिस प्रकार ( स्वनि क्रोशम् अनु वयः न ) खटका होनेपर भय पाकर पक्षिगण वेग से भागते हैं (बाह्वो: गृभीताः गवि आभिषि वयः न ) बाहुओं में संकुचित हुए पक्षीगण मृत गौ के मांस के निमित्त वेग से झपटते हैं उसी प्रकार ( आशुया ) वेग से युक्त ( स्वनि ) नायक की आवाज़ पर ( क्लोशम् अनु ) कोस पर कोस, वा शत्रु या मित्र के आह्वान के साथ २ ( यतः ) जाते हुए ( सिन्धून् ) वेगवान् अश्वारोही वीरों को ( गवि ) भूमि विजय के निमित्त ( बाह्वो: गृभीताः ) रासों को हाथ में पकड़े ( ये ) जो ( आ वर्वृतति ) पुनः आक्रमण करते हैं तू उनकी भी रक्षा कर । इत्येकोनत्रिंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रः प्रगाथं वा देवता । छन्दः - १ निचृदनुष्टुप् । ५,७ स्वराडनुष्टुप् । २ स्वराड् बृहती । ३,४ भुरिग् बृहती । ८, ९ विराड् बृहती । ११ निचृद् बृहती । १३ बृहती । ६ ब्राह्मी गायत्री । १० पंक्ति: । १२,१४ विराट् पंक्ति: ।। चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    आवृत्त चक्षुष्कता

    पदार्थ

    [१] (प्रवणे) = निम्न प्रदेश की ओर (यतः) = जाते हुए (सिन्धून् इव) = नदियों की तरह निम्न प्रकृति के भोगों के मार्ग की ओर (आशुया) = शीघ्रता से जाते हुए इन्द्रियाश्वों को (यदि) = यदि (क्लोशं अनु) = भय का लक्ष्य करके (स्वनि) = आवाज के होने पर, हे प्रभो! आप उत्तम प्रेरणा प्राप्त कराते हैं तो (ये) = जो इन्द्रियाश्व आवर्वृतति सर्वथा विषयों से लौट आते हैं। [२] ये इन्द्रियाश्व, (न) = जैसे (आमिषि) = मांस में (वय:) = पक्षी फिर-फिर लौट आते हैं, उसी प्रकार (गृभीताः) = ग्रहण किये हुए, वशीभूत हुए हुए (बह्वोः) = बाहुओं में [बाह्यप्रयत्ने] अभ्युदय व निःश्रेयस के लिये किये जानेवाले प्रयत्नों में तथा (गवि) = ज्ञान की वाणियों में आवृत्त होते हैं, अर्थात् इन्हीं में निरन्तर लगे रहते हैं। इन्हीं में लगे रहना ही निर्भयता का मार्ग है।

    भावार्थ

    भावार्थ– सामान्यतः इन्द्रियाँ निम्न मार्ग की ओर जाती हैं। उधर भय होने पर ये लौटती हैं और अब उत्तम ऐहिक व पारलौकिक प्रयत्नों में तथा ज्ञान की वाणियों में प्रवृत्त होते हैं। आवृत्त चक्षु बनकर यह विषयों से ऊपर उठ जाता है और सोमपान करनेवाला बनता है ('गिरति' इति गर्गः) सो गर्ग कहलाता है। सोमरक्षण से अपने में शक्ति को भरनेवाला यह भरद्वाज है। यह कहता है -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जल जसे उंच स्थानावरून खालच्या स्थानी तात्काळ पोहोचते व जसे ससाणा इत्यादी पक्षी मांसासाठी तत्काळ जातात तसे तुम्ही वाहनांद्वारे भूमी, अंतरिक्ष किंवा जलात तात्काळ जा. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The pioneers and warriors of new projects on earth fly on and move like rivers rushing down to the sea. They move by superfast carriers whose controls are held fast in hands, and instantly act in response to the sound signal and pounce upon the target like birds on food at sight, intensively.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should king and ministers etc. do-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king! speeding like rivers, rushing down a steep descent and like birds attracted to the sound or the bait, if you go quickly and if the machines or the rays of electricity move swiftly, then going to distant places will not be difficult. Others also, who go or come should do so swiftly.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There are two similes used in the mantra, as water goes down swiftly from a higher place or as the falcons and other birds run quickly for flesh. so you travel quickly on land, water and firmament.

    Foot Notes

    (वय:) पक्षिणः । अत्र गत्यर्थः शीघ्रगतिमन्तः पक्षिणः । = Birds. (स्वनि) शब्दे । स्वन-शब्दे (भ्वा.) । = On sound. (गवि) पृथिष्याम् । गोरिति पृथिवीनाम (NG 1, 1) वी-गतिव्याप्ति प्रजन कान्त्यसन्यादनेषु (अदा.) '= On earth.

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