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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 24
    ऋषिः - गर्गः देवता - प्रस्तोकस्य सार्ञ्जयस्य दानस्तुतिः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    दश॒ रथा॒न्प्रष्टि॑मतः श॒तं गा अथ॑र्वभ्यः। अ॒श्व॒थः पा॒यवे॑ऽदात् ॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दश॑ । रथा॑न् । प्रष्टि॑ऽमतः । श॒तम् । गाः । अथ॑र्वऽभ्यः । अ॒श्व॒थः । पा॒यवे॑ । अ॒दा॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दश रथान्प्रष्टिमतः शतं गा अथर्वभ्यः। अश्वथः पायवेऽदात् ॥२४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दश। रथान्। प्रष्टिऽमतः। शतम्। गाः। अथर्वऽभ्यः। अश्वथः। पायवे। अदात् ॥२४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 24
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजाऽधिकारं कस्मै दद्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् गृहस्थ वा ! यथाऽश्वथो मेधावी पायवेऽथर्वभ्यः प्रष्टिमतो दश रथाञ्छतं गा अदात्तथा त्वमपि देहि ॥२४॥

    पदार्थः

    (दश) (रथान्) (प्रष्टिमतः) प्रष्टयोऽनीप्सा विद्यन्ते येषु तान् (शतम्) (गाः) धेनूः (अथर्वभ्यः) अहिंसकेभ्यः (अश्वथः) योऽश्नुते सः (पायवे) पालनाय (अदात्) दद्यात् ॥२४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये राजादयो जनाः पालनार्हाय पशुरथादिरक्षणाऽधिकारं ददति ते सुसामग्रीयुक्ता भवन्ति ॥२४॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह राजा अधिकार किसके लिये देवे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् वा गृहस्थ लोगो ! जैसे (अश्वथः) भोजन करनेवाला बुद्धिमान् जन (पायवे) पालन के लिये (अथर्वभ्यः) नहीं हिंसा करनेवालों को (प्रष्टिमतः) नहीं इच्छा विद्यमान जिनमें उन (दश) सङ्ख्या से विशिष्ट (रथान्) वाहनों को और (शतम्) सौ (गाः) गौओं को (अदात्) देवे, वैसे आप भी दीजिये ॥२४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा आदि जन पालन करने योग्य के लिये पशु रथ आदि के रक्षण के अधिकार को देते हैं, वे अच्छी सामग्री से युक्त होते हैं ॥२४॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे राजे पालन करणाऱ्यांना पशू, रथ इत्यादींच्या रक्षणाचा अधिकार देतात त्यांना चांगली सामग्री प्राप्त होते. ॥ २४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let the treasurer give ten chariots equipped with powerful steer and motive force to the guard and a hundred cows for the non-violent scholars of the physical and spiritual sciences of the Atharva Veda tradition.

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