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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गर्गः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒रुं नो॑ लो॒कमनु॑ नेषि वि॒द्वान्त्स्व॑र्व॒ज्ज्योति॒रभ॑यं स्व॒स्ति। ऋ॒ष्वा त॑ इन्द्र॒ स्थवि॑रस्य बा॒हू उप॑ स्थेयाम शर॒णा बृ॒हन्ता॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रुम् । नः॒ । लो॒कम् । अनु॑ । ने॒षि॒ । वि॒द्वान् । स्व॑र्ऽवत् । ज्योतिः॑ । अभ॑यम् । स्व॒स्ति । ऋ॒ष्वा । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । स्थवि॑रस्य । बा॒हू इति॑ । उप॑ । स्थे॒या॒म॒ । श॒र॒णा । बृ॒हन्ता॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरुं नो लोकमनु नेषि विद्वान्त्स्वर्वज्ज्योतिरभयं स्वस्ति। ऋष्वा त इन्द्र स्थविरस्य बाहू उप स्थेयाम शरणा बृहन्ता ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरुम्। नः। लोकम्। अनु। नेषि। विद्वान्। स्वर्ऽवत्। ज्योतिः। अभयम्। स्वस्ति। ऋष्वा। ते। इन्द्र। स्थविरस्य। बाहू इति। उप। स्थेयाम। शरणा। बृहन्ता ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजा स्वाश्रयान् प्रति कथं वर्त्तेतेत्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र राजन् ! यस्य स्थविरस्य ते शरणा बृहन्ता ऋष्वा बाहू वयमुपस्थेयाम स विद्वांस्त्वं यतो न उरुं स्वर्वज्ज्योतिरभयं स्वस्ति लोकमनु नेषि तस्मात्सदैवास्माभिः पूज्योऽसि ॥८॥

    पदार्थः

    (उरुम्) बहुम् (नः) अस्मान् (लोकम्) दर्शनमभ्युदयं वा (अनु) (नेषि) प्रापयसि (विद्वान्) (स्वर्वत्) बहुसुखयुक्तम् (ज्योतिः) ज्ञानप्रकाशम् (अभयम्) भयरहितम् (स्वस्ति) सुखम् (ऋष्वा) ऋष्वौ महान्तौ (ते) तव (इन्द्र) न्यायप्रापक (स्थविरस्य) विद्याविनयाभ्यां वृद्धस्य (बाहू) बलवीर्याभ्यामुपेतौ भुजौ (उप) (स्थेयाम) तिष्ठेम (शरणा) शरणौ शत्रूणां हिंसकौ (बृहन्ता) महान्तौ ॥८॥

    भावार्थः

    राज्ञा महता प्रयत्नेन स्वाधीनाः प्रजा विद्याऽभयसुखयुक्ताः कार्य्याः। येन सर्वाः प्रजा अनुकूलाः स्युः ॥८॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा अपने आश्रितों के प्रति कैसा वर्त्ताव करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) न्याय को प्राप्त करानेवाले राजन् ! जिस (स्थविरस्य) विद्या और विनय से वृद्ध (ते) आपके (शरणा) शत्रुओं के नाश करनेवाले (बृहन्ता) बड़े (ऋष्वौ) श्रेष्ठ (बाहू) बल और वीर्य्य से युक्त भुजाओं को हम लोग (उप, स्थेयाम) प्राप्त होवें वह (विद्वान्) विद्वान् आप जिससे (नः) हम लोगों को (उरुम्) बहुत (स्वर्वत्) अत्यन्त सुख से युक्त (ज्योतिः) ज्ञान का प्रकाश और (अभयम्) भय से रहित (स्वस्ति) सुख (लोकम्) दर्शन वा वृद्धि को (अनु, नेषि) प्राप्त कराते हो, इससे हम लोगों से आदर करने योग्य हो ॥८॥

    भावार्थ

    राजा बड़े प्रयत्न से अपने आधीन प्रजाओं को विद्या और अभय सुख से युक्त करे, जिससे सब प्रजा अनुकूल होवें ॥८॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने महा प्रयत्नाने आपल्या अधीन असलेल्या प्रजेला विद्या व अभय देऊन सुखी करावे, ज्यामुळे सर्व प्रजा अनुकूल व्हावी. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, sagely scholar and just ruler of the world, lead us to the higher regions of life, fearless, full of heavenly light, a haven of bliss and well being. O lord of constancy, we pray, may we abide in the shelter and security of the umbrella of your mighty protective hands.

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