ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 9
ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
इन्द्रा॑ग्नी यु॒वोरपि॒ वसु॑ दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा। आ न॑ इ॒ह प्र य॑च्छतं र॒यिं वि॒श्वायु॑पोषसम् ॥९॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । यु॒वोः । अपि॑ । वसु॑ । दि॒व्यानि॑ । पार्थि॑वा । आ । नः॒ । इ॒ह । प्र । य॒च्छ॒त॒म् । र॒यिम् । वि॒श्वायु॑ऽपोषसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राग्नी युवोरपि वसु दिव्यानि पार्थिवा। आ न इह प्र यच्छतं रयिं विश्वायुपोषसम् ॥९॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राग्नी इति। युवोः। अपि। वसु। दिव्यानि। पार्थिवा। आ। नः। इह। प्र। यच्छतम्। रयिम्। विश्वायुऽपोषसम् ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
क उत्तम धनं प्राप्नोतीत्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्राग्नी ! सभासेनेशौ युवां यदीह नो विश्वायुपोषसं रयिं प्राऽयच्छतं तर्हि युवोरपि दिव्यानि पार्थिवा वस्वाधीनानि जायन्ताम् ॥९॥
पदार्थः
(इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव सभासेनेशौ (युवोः) युवयोः (अपि) (वसु) वसूनि (दिव्यानि) अतीवोत्तमानि (पार्थिवा) पृथिव्यां भवानि (आ) (नः) (इह) (प्र) (यच्छतम्) (रयिम्) श्रियम् (विश्वायुपोषसम्) समग्रायुःपुष्टिकराम् ॥९॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! ये सभासेनेशा विद्युद्विद्यां विज्ञाय युष्मभ्यं प्रददति ते पूर्णायुष्करं धर्मेण प्राप्तं समग्रैश्वर्य्यं प्राप्नुवन्ति ॥९॥
हिन्दी (1)
विषय
कौन उत्तम धनको प्राप्त होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान सभा सेनाधीशो ! तुम यदि (इह) यहाँ (नः) हमारी (विश्वायुपोषसम्) समस्त आयु के पुष्ट करनेवाले (रयिम्) धन को (प्र, आ, यच्छतम्) अच्छे प्रकार देओ तो (युवोः) तुम्हारे (अपि) भी (दिव्यानि) अतीव उत्तम (पार्थिवा) पृथिवी में उत्पन्न हुए (वसु) धन आधीन हों ॥९॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो सभा सेनापति बिजुली की विद्या को जान कर तुम्हारे लिये देते हैं, वे पूर्ण आयु करनेवाले धर्म से प्राप्त समग्र ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥९॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे सभा सेनापती विद्युत विद्या जाणून ती तुम्हाला देतात ते दीर्घायु होतात व धर्माने संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥
English (1)
Meaning
Indragni, give us here not only your own gifts but also the wealths and honours of the earth and heaven and bless us with full life and health distilled from the world of nature.
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