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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 62/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ता नव्य॑सो॒ जर॑माणस्य॒ मन्मोप॑ भूषतो युयुजा॒नस॑प्ती। शुभं॒ पृक्ष॒मिष॒मूर्जं॒ वह॑न्ता॒ होता॑ यक्षत्प्र॒त्नो अ॒ध्रुग्युवा॑ना ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । नव्य॑सः । जर॑माणस्य । मन्म॑ । उप॑ । भू॒ष॒तः॒ । यु॒यु॒जा॒नस॑प्ती॒ इति॑ यु॒यु॒जा॒नऽस॑प्ती । शुभ॑म् । पृक्ष॑म् । इष॑म् । ऊर्ज॑म् । वह॑न्ता । होता॑ । य॒क्ष॒त् । प्र॒त्नः । अ॒ध्रुक् । युवा॑ना ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता नव्यसो जरमाणस्य मन्मोप भूषतो युयुजानसप्ती। शुभं पृक्षमिषमूर्जं वहन्ता होता यक्षत्प्रत्नो अध्रुग्युवाना ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता। नव्यसः। जरमाणस्य। मन्म। उप। भूषतः। युयुजानसप्ती इति युयुजानऽसप्ती। शुभम्। पृक्षम्। इषम्। ऊर्जम्। वहन्ता। होता। यक्षत्। प्रत्नः। अध्रुक्। युवाना ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 62; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यौ युयुजानसप्ती युवाना नव्यसो जरमाणस्य मन्मोप भूषतो यौ शुभं पृक्षमिषमूर्जं वहन्ताऽध्रुक् प्रत्नो होता यक्षत् ता यूयमपि सङ्गच्छध्वम् ॥४॥

    पदार्थः

    (ता) तौ (नव्यसः) अतिशयेन नवीनस्य (जरमाणस्य) प्रशंसकस्य (मन्म) विज्ञानम् (उप) (भूषतः) अलं कुरुतः (युयुजानसप्ती) युयुजानौ सप्ती वेगाकर्षणौ ययोस्तौ (शुभम्) उदकम्। शुभमित्युदकनाम। (निघं०११.१३) (पृक्षम्) अन्नम् (इषम्) इच्छाम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहन्ता) प्रापयन्तौ (होता) आदाता (यक्षत्) सङ्गच्छेत् (प्रत्नः) प्रागधीतविद्यः (अध्रुक्) यः कञ्चन न द्रोग्धि (युवाना) संयोजकौ वायुविद्युतौ ॥४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यौ वायुविद्युतौ विज्ञानविषयावश्व इव सद्यो गन्तारौ सर्वोत्तमपदार्थप्रापकौ वर्त्तेते ताभ्यामिष्टानि कार्याणि साध्नुत ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (युयुजानसप्ती) वेग वा आकर्षणयुक्त होनेवाले हैं, वे (युवाना) संयुक्त होनेवाले वायु बिजुली (नव्यसः) अतीव नवीन (जरमाणस्य) प्रशंसा करनेवाले के (मन्म) विज्ञान को (उप, भूषतः) पूर्ण करते हैं वा जो (शुभम्) उदक (पृक्षम्) अन्न (इषम्) इच्छा और (ऊर्जम्) पराक्रम को (वहन्ता) पहुँचानेवालों को (अध्रुक्) किसी से न द्रोह करनेवाला (प्रत्नः) जिसने पहिले विद्या पढ़ी वह (होता) ग्रहण करनेवाला पुरुष (यक्षत्) प्राप्त हो (ता) उनको तुम भी प्राप्त होओ ॥४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो वायु और बिजुली विज्ञान के विषय, घोड़े के समान शीघ्र जानेवाले और सब उत्तम-उत्तम पदार्थों की प्राप्ति करानेवाले हैं, उनसे चाहे हुए कार्य्यों को सिद्ध करो ॥४॥

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    विषय

    वायु विद्युत्, उनके कर्तव्य।

    भावार्थ

    ( युयुजान-सप्ती ) वेग से जाने वाले रथादि यन्त्रों में जुड़ने वाले वायु, विद्युत् जिस प्रकार ( नव्यसः जरमाणस्य मन्म उपभूषतः ) स्तुत्य उपदेष्टा के ज्ञान को भूपित करते हैं उसी प्रकार ( युयुजान सप्ती ) वेगवान् अश्वादि को अपने रथ में जोड़ने वाले स्त्री पुरुष वा ( युयुजानसप्ती ) अपने सातों प्राणों से युक्त मन को योग द्वारा एकाग्र करने वाले ( ता ) वे दोनों स्त्री पुरुष ( नव्यसः जरमाणस्य ) स्तुत्व ज्ञान के उपदेष्टा पुरुष को (मन्म उपभूषतः) मनन करने योग्य ज्ञान को प्राप्त करावें । वे दोनों ( शुभं ) उत्तम कान्ति (पृक्षम् ) परस्पर के सम्पर्क, और (इषम्) अन्न ( ऊर्जं ) बल को ( वहन्ता ) धारण करते हुए हों । उन (युवाना) युवा युवति बलवान् दोनों को ( प्रतन: ) वृद्ध ( होता) ज्ञानदाता विद्वान्, बड़ा धनप्रद पुरुष (यक्षत् ) ज्ञान प्रदान करे । वा उनको धन की सहायता देकर विज्ञान की उन्नति करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २ भुरिक पंक्ति: । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७, ८, १० निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ९, ११ त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञान व शक्ति की वृद्धि के साथ प्रभु प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (ता) = वे प्राणापान (नव्यसः) = नवतर, अत्यन्त स्तुतिशील, (जरमाणस्य) = स्तोता के मन्म-ज्ञान को (उपभूषतः) = अलंकृत करते हैं। ये प्राणापान (युयुजानसप्ती) = युज्यमान अश्वोंवाले हैं, इन्द्रियाश्वों को शरीर-रथ में जोतते हैं । [२] ये प्राणापान (शुभं पृक्षम्) = शुभ सम्पर्क को, प्रेरणा इषम् प्रभु को, ऊर्जम् = बल व प्राणशक्ति को वहन्ता धारण करते हैं। इन प्राणापानों के अनुग्रह से ही वह (अधुक्) = किसी का भी द्रोह न करनेवाला (प्रत्नः होता) = सनातन दाता प्रभु (यक्षत्) = उपासक के लिये सब कुछ देनेवाला होता है, उपासक को प्राप्त होता है। ये प्राणापान (युवाना) = सब बुराइयों को दूर करनेवाले व सब अच्छाइयों को हमारे साथ मिलानेवाले हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणापान की साधना हमारे ज्ञान को बढ़ाती है, इन्द्रियाश्वों को शरीर रथ में जोतती है। प्रभु की प्रेरणा व शक्ति को प्राप्त कराती है। इस साधना से ही प्रभु के साथ मेल होता है और सब बुराइयाँ दूर होकर अच्छाइयाँ प्राप्त होती हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! वायू व विद्युत विज्ञान अश्वाप्रमाणे शीघ्र गमन करणारे असतात व सर्व उत्तम पदार्थांची प्राप्ती करविणारे असतात. त्यांच्याकडून इच्छित कार्य सिद्ध करा. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    They bless the mind and fructify the intentions of the new celebrant in search of knowledge and power. Ever young and energetic as wind and lightning, using seven currents of nature’s centrifugal and centripetal energy, they bear and bring excellent gifts of water, food, energy and psychic determination. Let the learned yajaka, then, free from hate, jealousy and pride, dedicate himself to the youthful powers with faith and persistence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How are they (air and electricity) - is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should also apply these air and electricity, which are endowed with speed and attraction, are unifiers and adorn the scientific knowledge of the new admirer, and which conveying water, food desire and strength, an old or experienced accepter of good things who does not hate any one, unites for various purposes.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! accomplish various desired purposes by the proper knowledge and use of these air and electricity-which are the subjects of science, rapid going like the horses and conveyors of many good things.

    Foot Notes

    (युयुजानसप्ती) युयुजानौसप्ती बेगाकर्षणी ययोस्तौ । यूजिर योगे । षण-समवाये । सप्तिः इत्यश्वनाम (NG 1, 14) अत्र बेग्राकर्षेण रूपावश्वौ गृह्य ेते । = Which are endowed with rapidity and attraction. (शुभम्) उदकम् । शुभमित्युदकनाम (NG 1,12 )। = Water. (पुक्षम्) अन्नम् । वृक्ष: इत्यन्ननाम (NG 2, 7)। = Food.

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