Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 62 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 62/ मन्त्र 5
    ऋषि: - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ता व॒ल्गू द॒स्रा पु॑रु॒शाक॑तमा प्र॒त्ना नव्य॑सा॒ वच॒सा वि॑वासे। या शंस॑ते स्तुव॒ते शंभ॑विष्ठा बभू॒वतु॑र्गृण॒ते चि॒त्ररा॑ती ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । व॒ल्गू । द॒स्रा । पु॒रु॒शाक॑ऽतमा । प्र॒त्ना । नव्य॑सा । वच॑सा । आ । वि॒वा॒से॒ । या । शंस॑ते । स्तु॒व॒ते । शम्ऽभ॑विष्ठा । ब॒भू॒वतुः॑ । गृ॒ण॒ते । चि॒त्ररा॑ती॒ इति॑ चि॒त्रऽरा॑ती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता वल्गू दस्रा पुरुशाकतमा प्रत्ना नव्यसा वचसा विवासे। या शंसते स्तुवते शंभविष्ठा बभूवतुर्गृणते चित्रराती ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता। वल्गू। दस्रा। पुरुशाकऽतमा। प्रत्ना। नव्यसा। वचसा। आ। विवासे। या। शंसते। स्तुवते। शम्ऽभविष्ठा। बभूवतुः। गृणते। चित्रराती इति चित्रऽराती ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 62; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथाहं या वल्गू दस्रा प्रत्ना नव्यसा वचसा पुरुशाकतमा चित्रराती शंसते स्तुवते गृणते शम्भविष्ठा बभूवतुस्ताऽऽविवासे तथैतो यूयमपि सेवध्वम् ॥५॥

    पदार्थः

    (ता) तौ (वल्गू) अत्युत्तमौ (दस्रा) दुःखोपक्षयितारौ (पुरुशाकतमा) अतिशयेन बहुशक्तिमन्तौ (प्रत्ना) प्राचीनौ (नव्यसा) अतिशयेन नवीनौ (वचसा) परिभाषणीयौ (आ) (विवासे) सेवे (या) यौ (शंसते) प्रशंसकाय (स्तुवते) प्रशंसिताय। अत्र कृद्बहुलमिति कर्मणि कृत् (शम्भविष्ठा) अतिशयेन सुखंभावुकौ (बभूवतुः) भवतः (गृणते) सत्योपदेशकाय (चित्रराती) चित्राऽद्भुता रातिर्दानं याभ्यां तौ ॥५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यौ वायुविद्युतौ कारणरूपेण सनातनौ कार्यरूपेण नूतनौ बहुशक्तिमन्तौ वेगादिगुणयुक्तौ वायुविद्युतौ कल्याणकारिणौ वर्त्तेते तौ यथावद्विजानीत ॥५॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे मैं (या) जो (वल्गू) अत्युत्तम (दस्रा) दुःख को नष्ट करनेवाले (प्रत्ना) प्राचीन (नव्यसा) अत्यन्त नवीन (वचसा) परिभाषण करने योग्य (पुरुशाकतमा) अतीव सामर्थ्यवाले (चित्रराती) जिनसे अद्भुत दान होता वे (शंसते) प्रशंसा करनेवाले (स्तुवते) वा प्रशंसा पाये हुए वा (गृणते) सत्य उपदेश करनेवाले के लिये (शम्भविष्ठा) अतीव सुख की भावना करानेवाले (बभूवतुः) होते हैं (ता) उनकी (आ, विवासे) सेवा करता हूँ, वैसे उनकी तुम भी सेवा करो ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो वायु और बिजुली कारणरूप से सनातन और कार्यरूप से नूतन, बहुत शक्तिमान्, वेगादि गुणयुक्त, कल्याणकारी वर्त्तमान हैं, उनको यथावत् जानो ॥५॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे वायू व विद्युत कारणरूपाने सनातन व कार्यरूपाने नूतन, अत्यंत शक्तिमान, वेग इत्यादी गुणयुक्त, कल्याणकारी आहेत त्यांना यथावत जाणा. ॥ ५ ॥

    English (1)

    Meaning

    With the latest words of homage, I celebrate and glorify the twin Ashvin divinities: graceful, destroyers of want and suffering, most versatile of power, ancient and eternal powers of the divine, who may, we pray, be good and blissful to the devoted celebrant and bring an immense variety of wondrous gifts for the yajaka.

    Top