Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 62 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 62/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वि ज॒युषा॑ रथ्या यात॒मद्रिं॑ श्रु॒तं हवं॑ वृषणा वध्रिम॒त्याः। द॒श॒स्यन्ता॑ श॒यवे॑ पिप्यथुर्गामिति॑ च्यवाना सुम॒तिं भु॑रण्यू ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । ज॒युषा॑ । र॒थ्या॒ । या॒त॒म् । अद्रि॑म् । श्रु॒तम् । हव॑म् । वृ॒ष॒णा॒ । व॒ध्रि॒ऽम॒त्याः । द॒श॒स्यन्ता॑ । श॒यवे॑ । पि॒प्य॒थुः॒ । गाम् । इति॑ । च्य॒वा॒ना॒ । सु॒ऽम॒तिम् । भु॒र॒ण्यू॒ इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि जयुषा रथ्या यातमद्रिं श्रुतं हवं वृषणा वध्रिमत्याः। दशस्यन्ता शयवे पिप्यथुर्गामिति च्यवाना सुमतिं भुरण्यू ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि। जयुषा। रथ्या। यातम्। अद्रिम्। श्रुतम्। हवम्। वृषणा। वध्रिऽमत्याः। दशस्यन्ता। शयवे। पिप्यथुः। गाम्। इति। च्यवाना। सुऽमतिम्। भुरण्यू इति ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 62; मन्त्र » 7
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ताभ्यां किं भवतीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे अध्यापकोपदेशकौ ! वध्रिमत्या भूमेर्मध्ये जयुषा रथ्या वृषणा दशस्यन्ताऽद्रिं वि यातं सुमतिं च्यवाना भुरण्यू गामिति शयवे पिप्यथुस्तयोर्हवं युवां श्रुतम् ॥७॥

    पदार्थः

    (वि) (जयुषा) जयशीलौ (रथ्या) रथाय हितौ (यातम्) यातः। अत्र व्यत्ययः (अद्रिम्) मेघम् (श्रुतम्) अशृणुतम् (हवम्) विद्याविषयं शब्दम् (वृषणा) वर्षयितारौ (वध्रिमत्याः) बहवो वध्रयो वर्धनानि विद्यन्ते यस्यां तस्या भूमेरन्तरिक्षस्य वा (दशस्यन्ता) बलयन्तौ (शयवे) शयनाय (पिप्यथुः) वर्धयतः (गाम्) वाचम् (इति) अनेन प्रकारेण (च्यवाना) सद्यो गन्तारौ (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (भुरण्यू) पोषयितारौ धारकौ वा ॥७॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यौ विमानादिगमयितारौ सङ्ग्रामे जयकारिणौ प्रज्ञाबलप्रदौ वृष्टिकरौ शयनजागरणवाग्घेतू वर्त्तेते तौ बुद्ध्वा कार्यसिद्धये सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उनसे क्या होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे अध्यापक और उपदेशक सज्जनो ! (वध्रिमत्याः) जिसमें बहुत वर्धन विद्यमान उस भूमि वा अन्तरिक्ष के बीच (जयुषा) जयशील (रथ्या) रथ के लिये हितकारी (वृषणा) वर्षा तथा (दशस्यन्ता) बल करानेवाले (अद्रिम्) मेघ को (वि, यातम्) विशेषता से प्राप्त होते हैं और (सुमतिम्) सुन्दर मति को (च्यवाना) शीघ्र जानेवाले (भुरण्यू) पालना वा धारणकर्त्ता (गाम्) वाणी को (इति) इस प्रकार से (शयवे) सोने के लिये (पिप्यथुः) बढ़ाते हैं, उनके (हवम्) विद्या विषयक शब्द को तुम (श्रुतम्) सुनो ॥७॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो विमान आदि को चलाने वा सङ्ग्राम में जय कराने वा प्रज्ञा और बल के देने, वर्षा करनेवाले तथा सोने जागने और वाणी के हेतु हैं, उनको जान कार्य्यसिद्धि के लिये अच्छे प्रकार प्रयोग करो ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वायुयान निर्माण। पक्षान्तर में स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् स्त्री पुरुषो ! आप दोनों (जयुषा रथ्या ) विजयशील रथ पर सवार, रथी-सारथी के समान (अद्रिं वि यातम् ) मार्ग में आये बाधक पर्वतादि दुर्गम मार्ग को भी पार करो । ( वृषणा ) आप दोनों बलवान्, परस्पर सुखों का वर्षण करते हुए भी ( वध्रिमत्याः ) कुल की वृद्धि करने वाली और सुसंयत इन्द्रियों से युक्त भूमि रूप स्त्री के ( हवं ) वचन को ( वध्रिमत्या हवं ) नाना वृद्धि युक्त ऐश्वर्यो की स्वामिनी भूमि विषयक उत्तम ज्ञान का ( श्रुतं ) श्रवण करो । ( दशस्यन्ता ) एक दूसरे का बल बढ़ाते हुए और प्रेमपूर्वक धन, वीर्य आदि देते हुए, ( शयवे ) शयु अर्थात् शिशु को उत्पन्न करने के लिये ( गाम् ) योग्य भूमि रूप स्त्री को भूमिवत् ( पिप्यथुः ) उन्नत अधिक गुण, शक्तियुक्त करो ( इति ) इस प्रकार ( सुमतिं च्यवाना ) उत्तम ज्ञान और बुद्धि को प्राप्त होते हुए ( भुरण्यू) सन्तानों का पालन पोषण करने वाले होवो ।

    टिप्पणी

    'शयवे' – शयु: शिशुश्च समानधातुजावेतौ समानार्थकौ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, २ भुरिक पंक्ति: । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७, ८, १० निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ९, ११ त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अविद्या विनाश व संयम

    पदार्थ

    [१] (रथ्या) = शरीर-रथ को उत्तम बनानेवाले प्राणापानो! आप (जयुषा) = विजयशील रथ के द्वारा (अद्रिम्) = अविद्या पर्वत को (वियातम्) = [यातिर्वधकर्मा] विनष्ट करते हो । प्राणसाधना के द्वारा बुद्धि तीव्र बनती है। परिणामतः अविद्या का विनाश होता है। [२] हे (वृषणा) = शक्तिशाली प्राणापानो! आप (वध्रिमत्याः) = इन्द्रियों को संयमरज्जु से बाँधनेवाली की (हवं श्रुतम्) = पुकार को सुनते हो । वस्तुतः प्राणापान ही हमें इन्द्रियों के संयम में समर्थ करके शक्तिशाली बनाते हैं। [३] (दशस्यन्ता) = उत्तम शरीर, मन व बुद्धि को देते हुए आप (शयवे) = [शी=tranquility] इस शान्त स्वभाव पुरुष के लिये (गाम्) = वेदवाणी रूप गौ को (पिप्यथुः) = ज्ञानदुग्ध से आप्यायित करते हो । अर्थात् प्राणसाधना करनेवाला यह पुरुष तीव्र बुद्धि के द्वारा वेदवाणीरूप गौ से उत्कृष्ट ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करता है। [४] (इति) = इस प्रकार इस ज्ञानदुग्ध के द्वारा (सुमतिं च्यवाना) = उत्तम कल्याणी मति को प्राप्त कराते हुए आप [ गमयन्तौ] (भुरण्यू) = उत्तम भरण करनेवाले होते हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से अविद्या विनष्ट होती है । इन्द्रियों का संयम होकर शक्ति की वृद्धि होती है। बुद्धि तीव्र होकर वेदवाणी रूप गौ के ज्ञानदुग्ध का दोहन करती है। सुमति की प्राप्ति होकर हम अच्छी प्रकार अपना भरण कर पाते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जे विमान इत्यादी चालविणे, युद्धात जय करविणे, बुद्धी व बल देणे, वृष्टी करणे, निद्रा, जागरण व वाणी यांचे हेतू आहेत त्यांना जाणून कार्यसिद्धीसाठी चांगला प्रयोग करा. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ever anxious for all round victory and riding the chariot of waves of energy, you top the mountain and reach the cloud. Generous givers of showers, you perceive the invitation of the productive earth and the expansive skies. Mighty strong, you promote the earth and prompt the voice of her people so that they may be at peace, and, ever vibrant on the move, nourishing and sustaining, you inspire the mind with noble thoughts and will for holy actions.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What more is accomplished by them-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers ! the Ashvin, who are on earth, that is developing in every way, victorious, causer of rain, good for various charming vehicles, givers of strength, go to the cloud, going to the good intellect, sustainers or upholders, for sleeping well (at proper time) use good words, listen to their words throwing light on their real nature.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Know the nature of the (air and electricity) which are instrumental in the movement of the aircrafts, causing victory in battles, giver of good intellect and strength, causing rain, of sleep, awakening and speech and knowing it well, use them for the accomplishment of various purposes.

    Foot Notes

    (अद्रिम्) मेघम् । अद्रिरिति मेघनाम (NG 1, 10 ) । = Cloud. (बध्रिमत्याः) बहवो वध्रयो वर्धनानि विद्यन्ते यस्यां तस्या भूमेरन्तरिक्षस्य वा! = Earth or firmament in which there is much growth or development. (च्यवाना) सद्यो गन्तारौ । (च्यवाना) च्युड़-गतौ (भ्वा०.) । Going rapidly. (दशस्यन्ता) बलयन्तौ । दशि-भासार्थ: (चु.) अत्र बलप्रकाशनम् । = Givers of strength. (भूरव्यू) पोसयितारौ धारको वा । भूरण - पालनपोषणयो: (कण्डवा.) = Sustainer or upholder.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top