ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 68/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रावरुणौ
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
ता गृ॑णीहि नम॒स्ये॑भिः शू॒षैः सु॒म्नेभि॒रिन्द्रा॒वरु॑णा चका॒ना। वज्रे॑णा॒न्यः शव॑सा॒ हन्ति॑ वृ॒त्रं सिष॑क्त्य॒न्यो वृ॒जने॑षु॒ विप्रः॑ ॥३॥
स्वर सहित पद पाठता । गृ॒णी॒हि॒ । न॒म॒स्ये॑भिः । शू॒षैः । सु॒म्नेभिः । इन्द्रा॒वरु॑णा । च॒का॒ना । वज्रे॑ण । अ॒न्यः । शव॑सा । हन्ति॑ । वृ॒त्रम् । सिस॑क्ति । अ॒न्यः । वृ॒जने॑षु । विप्रः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता गृणीहि नमस्येभिः शूषैः सुम्नेभिरिन्द्रावरुणा चकाना। वज्रेणान्यः शवसा हन्ति वृत्रं सिषक्त्यन्यो वृजनेषु विप्रः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठता। गृणीहि। नमस्येभिः। शूषैः। सुम्नेभिः। इन्द्रावरुणा। चकाना। वज्रेण। अन्यः। शवसा। हन्ति। वृत्रम्। सिसक्ति। अन्यः। वृजनेषु। विप्रः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 68; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् विप्रस्त्वं ययोरन्यो वज्रेण शवसा वृत्रं हन्ति। अन्यो वृजनेषु सिषक्ति तेन्द्रावरुणेव सुम्नेभिश्चकाना शूषैर्नमस्येभिः सत्कृतौ गृणीहि ॥३॥
पदार्थः
(ता) तौ (गृणीहि) प्रशंस (नमस्येभिः) नमस्स्वन्नेषु भवैः (शूषैः) बलैः (सुम्नेभिः) सुखैः (इन्द्रावरुणा) वायुविद्युताविव (चकाना) कामयमानौ (वज्रेण) किरणसमूहेनेव शस्त्राऽस्त्रेण (अन्यः) सूर्यो विद्युद्वा (शवसा) बलेन (हन्ति) (वृत्रम्) मेघमिव शत्रुम् (सिषक्ति) सिञ्चति (अन्यः) वायुरिव (वृजनेषु) मार्गेषु बलेषु वा (विप्रः) मेधावी ॥३॥
भावार्थः
यौ सभासेनेशौ सूर्यवायुवत् प्रजापालकावुत्तमैः सैन्यैर्दुष्टनिवारकौ मेघवत् प्रजाः कामैः पूरयतस्तौ सर्वैः सत्कर्त्तव्यौ ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वान् जन (विप्रः) मेधावी बुद्धिमान् ! आप जिनमें से (अन्यः) सूर्य वा बिजुली (वज्रेणः) किरण समूह के समान शस्त्रास्त्र और (शवसा) बल से (वृत्रम्) मेघ के समान शत्रु को (हन्ति) मारते हैं और जो (अन्यः) वायु के समान (वृजनेषु) मार्ग वा बलों में (सिषक्ति) सींचता है (ता) उन दोनों (इन्द्रावरुणा) वायु और बिजुली के समान (सुम्नेभिः) सुखों से (चकाना) कामना करते हुए (शूषैः) बलों और (नमस्येभिः) अन्नों के बीच सिद्ध हुए पदार्थों से सत्कार को प्राप्त हुओं की (गृणीहि) प्रशंसा करो ॥३॥
भावार्थ
जो सभापति और सेनापति, सूर्य और वायु के समान प्रजा के पालनेवाले, उत्तम सेनाजनों से दुष्टों को निवारनेवाले, मेघों के समान प्रजाजनों को कामनाओं से पूरित करते हैं, वे सब से सत्कार करने योग्य हैं ॥३॥
विषय
इन्द्र वरुण, युगल प्रमुख पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे विद्वन् ! तू ( इन्द्रा वरुणा ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता और प्रमुख रूप से वरण करने योग्य, सर्वश्रेष्ठ, सैन्य और सेनापति, ( सुम्नेभिः ) सुखकारी ( शूषै: ) बलों से ( चकानौ ) अति तेजस्वी और प्रजा की शुभ कामना करने वाले ( ता ) उन दोनों की ( नमस्येभिः ) आदर करने योग्य वचनों से ( गृणीहि ) स्तुति कर उन दोनों मे से ( अन्यः ) एक तो ( वज्रेण ) अपने बाहुबल से और ( शवसा ) सैन्यबल से ( वृत्रं हन्ति ) बढ़ते शत्रु को दण्डित करे और (अन्य: ) दूसरा ( वृजनेषु ) सैन्यबलों के बीच में ( सिषक्ति ) समवाय उत्पन्न करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रावरुणौ देवते । छन्दः - १, ४, ११ त्रिष्टुप् । । ६ निचृत्त्रिष्टुप् । २ भुरिक पंक्ति: । ३, ७, ८ स्वराट् पंक्तिः । ५ पंक्तिः । ९ , १० निचृज्जगती ।। दशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
शूष+सुम्न-बल+शुख
पदार्थ
[१] (नमस्येभिः) =नमस्करणीय स्तुत्य (शूषै:) = बलों से तथा (सुम्नेभिः) = सुखों से चकाना स्तुत (ता) = उन (इन्द्रारुणा) = इन्द्र और वरुण की (गृणीहि) = स्तुति । 'इन्द्र' स्तुत्य बल से युक्त है, तो 'वरुण' प्रशस्त सुखों का कारण बनता है। [२] (अन्यः) = इनमें से एक इन्द्र, (वज्रेण) = क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा (वृत्रम्) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को (हन्ति) = विनष्ट करता है। (अन्यः) = दूसरा (विप्रः) = हमारा विशेषरूप से पूरण करनेवाला 'वरुण' [निर्देषता का भाव] (वृजनेषु) = [battle, fight] संग्रामों में शवसा बल से (सिषक्ति) = [संगच्छते] संगत होता है। निर्देषता वह बल प्राप्त कराती है जिससे कि हम संग्रामों में सदा विजयी बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ– 'इन्द्र' स्तुत्य बलों को प्राप्त कराता है तो वरुण सुखों को। जितेन्द्रियता हमें बलयुक्त करती है, निर्देषता जीवन को सुखी बनाती है। ये जितेन्द्रियता व निर्देषता हमें वासना विनाश के द्वारा संग्राम में विजयी बनाती हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
जे सभापती व सेनापती सूर्य व वायूप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात, उत्तम सेनेने दुष्टांचे निवारण करतात, मेघाप्रमाणे प्रजाजनांच्या कामना पूर्ण करतात ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Honour and celebrate the two, Indra and Varuna, lords of peace, power and justice, with reverence and homage. Brilliant with strength and power, over-flowing with vitality and generosity, they are loving and kind. One of them, Indra, like the sun, breaks the clouds and destroys the enemies with the force of thunder, and the other, Varuna, cool as water and vibrant as the winds, follows to bless humanity with strength and energy on the paths of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How are they-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned and wise person ! praise those President of the council of ministers and Commander-in-Chief of the army, who are like the sun and the air, one of whom being like the sun slays his enemies with the band of powerful arms as the sun dispenses the cloud; the other sprinkles or puts in new strength. Admire them both, as they desire the welfare of all with happiness and are worthy of respect, endowed with strength and honored by the people.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those President of the Council of Ministers and Chief Commander of the army, who are benevolent like the sun and the air, subduers of the wicked with armies and fulfillers of the good. desires of the people like the clouds, should be honored by all.
Foot Notes
(चकाना) कामयमानौ | चकमान: कान्तिकर्मा (NG- 2,6) कान्तिः कामना चकमान एव चकानः वर्णलोपोर्वेदिक: = Desiring (the welfare of all). (वृजनेषु) मार्गेषु बलेषु वा । = On the paths or Strength of all kinds. (शूषैः) वलैः। शुषममिति बलानाम (NG 2, 9)। = with strength of all kinds. (सिषक्ति) सिञ्चति । सिषक्ति इति उत्तराणिपदानि (NG 3,29) पद-गतौ गतेस्त्रिग्वर्थेषुश्व प्राप्त्पर्थमादाय नवशक्ति प्रापयति । = Sprinkles.
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