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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 75 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 9
    ऋषिः - पायुर्भारद्वाजः देवता - रथगोपाः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स्वा॒दु॒षं॒सदः॑ पि॒तरो॑ वयो॒धाः कृ॑च्छ्रे॒श्रितः॒ शक्ती॑वन्तो गभी॒राः। चि॒त्रसे॑ना॒ इषु॑बला॒ अमृ॑ध्राः स॒तोवी॑रा उ॒रवो॑ व्रातसा॒हाः ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वा॒दु॒ऽसं॒सदः॑ । पि॒तरः॑ । व॒यः॒ऽधाः । कृ॒च्छ्र॒ऽश्रितः॑ । शक्ति॑ऽवन्तः । ग॒भी॒राः । चि॒त्रऽसे॑नाः । इषु॑ऽबलाः । अमृ॑ध्राः । स॒तःऽवी॑राः । उ॒रवः॑ । व्रा॒त॒ऽस॒हाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वादुषंसदः पितरो वयोधाः कृच्छ्रेश्रितः शक्तीवन्तो गभीराः। चित्रसेना इषुबला अमृध्राः सतोवीरा उरवो व्रातसाहाः ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वादुऽसंसदः। पितरः। वयःऽधाः। कृच्छ्रेऽश्रितः। शक्तिऽवन्तः। गभीराः। चित्रऽसेनाः। इषुऽबलाः। अमृध्राः। सतःऽवीराः। उरवः। व्रातऽसहाः ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजपुरुषाः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् ! ये स्वादुषंसदो वयोधा कृच्छ्रेश्रितः शक्तीवन्तो गभीराश्चित्रसेना इषुबला अमृध्राः सतोवीरा व्रातसाहा उरवः पुत्रान् पितर इव प्रजाः पालयन्तो धर्मिष्ठा मनुष्याः स्युस्तैस्त्वं प्रजाः सततं पालय ॥९॥

    पदार्थः

    (स्वादुषंसदः) ये स्वादून्यन्नानि भोक्तुं संसीदन्ति न्यायं कर्तुं सभायां वा (पितरः) विज्ञानवयोवृद्धाः (वयोधाः) ये वयांसि दधति ते (कृच्छ्रेश्रितः) ये कृच्छ्रे दुःखेऽपि धर्मं श्रियन्ति सेवन्ते (शक्तीवन्तः) प्रशस्ता बह्वी शक्तिः सामर्थ्यं विद्यते येषान्ते (गभीराः) गम्भीराशयाः (चित्रसेनाः) चित्राऽद्भुता सेना येषान्ते (इषुबलाः) इषुभिः शस्त्रास्त्रैर्बलं सैन्यं वा येषान्ते (अमृध्राः) अहिंसकाः (सतोवीराः) सत्त्वबलोपेताः (उरवः) बहवः (व्रातसाहाः) ये व्राताञ्छत्रुसमूहान् सहन्ते ते ॥९॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! मनुष्या यूयं सभ्यं पितृवत्प्रजापालकं दीर्घवयसं दुःखं प्राप्याकम्पितारं शक्तिमन्तं गम्भीराशयमद्भुतसेनं शस्त्रास्त्रविद्याकुशलं सत्त्वोपेतं शत्रुसमूहसहं बहुशुभगुणकर्मयुक्तमेव राजानमभिषिञ्चत ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजपुरुष कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! जो (स्वादुषंसदः) स्वादिष्ठ अन्नों के भोगने को स्थिर होते वा न्याय करने को सभा में स्थिर होते हैं वा (वयोधाः) जो अवस्थाओं को धारण करते हैं वा (कृच्छ्रेश्रितः) जो अति दुःख में भी धर्म का आश्रय करते हैं वा (शक्तीवन्तः) प्रशंसित बहुत शक्ति विद्यमान जिनके वा (गभीराः) जो गम्भीर आशयवाले हैं वा (चित्रसेनाः) जिनकी चित्रविचित्र सेना है तथा (इषुबलाः) शस्त्र और अस्त्रों से युक्त जिनकी सेना और (अमृध्राः) जो अहिंसन करनेवाले (सतोवीराः) सत्त्व बल से युक्त (व्रातसाहाः) जो शत्रूसमूहों को सहते हैं, वे (उरवः) बहुत पुत्रों की (पितरः) पिता जैसे धर्मिष्ठ, वैसे विज्ञान और अवस्था से बढ़े हुए पालनेवाले जन प्रजा की पालना करते हुए धर्मिष्ठ मनुष्य हों, उनसे तुम प्रजाओं की पालना निरन्तर करो ॥९॥

    भावार्थ

    हे विद्वान् मनुष्यो ! तुम सभ्य, पिता के समान प्रजाजनों की पालना करनेवाले, बहुत अवस्था से युक्त और दुःख को पाकर न कंपनेवाले, सामर्थ्यवान्, गम्भीर आशय, अद्भुत सेना तथा शस्त्र और अस्त्रों की विद्या में कुशल, बल से युक्त, शत्रुसमूह के सहनेवाले और बहुत गुण कर्मों से युक्त राजा को ही राज्याभिषिञ्चन काम में अभिषिक्त करो ॥९॥

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    विषय

    सेनाध्यक्ष पितरों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( स्वादु संसदः ) उत्तम सुखजनक अन्न ऐश्वर्यादि भोग करने के लिये न्यायासन आदि उत्तम पदों पर विराजने वाले, (वयः-धाः) दीर्घायु, ज्ञान व बल को धारण करने वाले ( कृच्छ्रे-श्रितः ) संकटों में प्रजाओं द्वारा आश्रय लेने योग्य, ( शक्तिवन्तः ) शक्तिमान्, ( गभीराः ) गंभीर स्वभाव के, ( चित्र-सेनः) अद्भुत सेनाओं के स्वामी ( इषु-बलाः ) धनुषवाण के बल, सैन्य से युक्त, ( अमृध्राः ) शत्रुओं से न मारे जाने योग्य, प्रजा की हिंसा न करने वाले, (सतः-वीराः ) सत्व, बल से सम्पन्न, ( व्रात सहाः ) शत्रु सैन्यदलों को पराजित करने वाले, (उरवः) बहुत, संख्या में अधिक ( पितरः ) हमारे पालक, पिता के तुल्य आरदणीय हों। वा जो हमारे पालक हों वे उक्त २ विशेषणो वाले हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    रथगोपाः

    पदार्थ

    [१] (पितरः) = राष्ट्र-रक्षक लोग, राष्ट्ररूप रथ के गोपा, (स्वादुषंसदः) = स्वादु, सुख प्रीति विवर्धन, अन्नों में (आसीन) = होते हैं। सदा सात्त्विक अन्नों का सेवन करते हैं। (वयोधाः) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करते हैं, (कृच्छ्रेश्रितः) = आपत्ति में प्रजाओं से आश्रयणीय होते हैं। (शक्तीवन्तः) = शक्तिशाली व (गभीराः) = गम्भीर स्वभाववाले होते हैं । [२] ये राष्ट्र रक्षा के लिये (चित्रसेना:) = अद्भुत सेनावाले, (इषुबला:) = बाणों [शस्त्रों] के बलवाले होते हैं। पर्याप्त सेना को रखते हैं और उस सेना को अस्त्रों से सन्नद्ध रखते हैं। इसीलिए (अमृध्रा:) = शत्रुओं से हिंसित होने योग्य नहीं होते। (सतः वीराः) = प्राप्त वीर्य, अर्थात् वीरता सम्पन्न होते हैं। (उरवः) = विशाल हृदयवाले होते हैं । (व्रातसाहा:) = शत्रुसमूहों को पराभूत करनेवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र रक्षक लोग सात्त्विक अन्न का सेवन करनेवाले, कष्टों में प्रजा से आश्रयणीय, शक्तिशाली व गम्भीर होते हैं । अस्त्र- सन्नद्ध सैन्यों द्वारा शत्रुसमूह को अभिभूत करके राष्ट्र-रथ के गोपा [रक्षक] होते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो! सभ्य, पित्याप्रमाणे प्रजेचे पालन करणारा, दीर्घायुषी, दुःखाला न घाबरणारा, सामर्थ्यवान, गंभीर आशय जाणणारा अद्भुत सेना बाळगणारा, तसेच शस्त्रास्त्र विद्येत कुशल, बलवान, शत्रूसमूहाला सहन करणारा व अत्यंत शुभगुण कर्मांनी युक्त राजाचा तुम्ही राज्याभिषेक करा. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those who abide in the home or sit in the assembly with peace and joy at heart, who are senior parental people, advanced and experienced in age, observing Dharma without fluctuating from peace and rectitude even in crises, commanding strength and depth of wisdom, leading wonderful armies, having full forces of arms and armaments but never violent and destructive, brave heroes of truth and honesty, many, mighty and magnanimous, observers of self-chosen discipline and law of conduct, let such be our friends, ideals and leader guardians for a life of peace and happiness.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should the officers of the State be-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king! nourish your subjects, as fathers serve their children, with the help of those righteous men, who are partakers of good food, long-lived, patient in adversity and resorting to Dharma (righteousness) mighty, deep (cool) minded, armed with wondrous army, strong in arrows and other good weapons and having strong armies, not killing any one unjustly, endowed with much energy, waney, invincible and conqueror of numerous hosts.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! you should enthrone that man, as king who is cultured and civilized, who is nourisher of his subjects like a father, long-lived, not shaken by calamities, mighty, deep minded, possessor of wonderful army, well-versed in the military science and in the use of arms and missile, powerful, subduer of the adversaries and endowed with many qualities, good actions and temperament.

    Foot Notes

    (कृच्छ्रेश्रितः) ये कुच्छे दुःखेऽपि धर्मं श्रयन्ति सेवन्ते । श्रिञ-सेवयाम् (भ्वा०) = Those who resort to Dharma (righteousness or duty) even when calamities fall. (व्रातसाहा:) ये बाताञ्छंत्रु समूहान्सहन्ते ते । षह-शक्तौ (काशवृत्स्नधातुपाठे 3, 17 ) = Who subdue the host of hostiles by their strength.

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