ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 100/ मन्त्र 2
त्वं वि॑ष्णो सुम॒तिं वि॒श्वज॑न्या॒मप्र॑युतामेवयावो म॒तिं दा॑: । पर्चो॒ यथा॑ नः सुवि॒तस्य॒ भूरे॒रश्वा॑वतः पुरुश्च॒न्द्रस्य॑ रा॒यः ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । वि॒ष्णो॒ इति॑ । सु॒ऽम॒तिम् । वि॒श्वऽज॑न्याम् । अप्र॑ऽयुताम् । ए॒व॒ऽया॒वः॒ । म॒तिम् । दाः॒ । पर्चः॑ । यथा॑ । नः॒ । सु॒वि॒तस्य॑ । भूरेः॑ । अश्व॑ऽवतः । पु॒रु॒ऽच॒न्द्रस्य॑ । रा॒यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं विष्णो सुमतिं विश्वजन्यामप्रयुतामेवयावो मतिं दा: । पर्चो यथा नः सुवितस्य भूरेरश्वावतः पुरुश्चन्द्रस्य रायः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । विष्णो इति । सुऽमतिम् । विश्वऽजन्याम् । अप्रऽयुताम् । एवऽयावः । मतिम् । दाः । पर्चः । यथा । नः । सुवितस्य । भूरेः । अश्वऽवतः । पुरुऽचन्द्रस्य । रायः ॥ ७.१००.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 100; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एवयावः) हे सर्वप्रद ! (विष्णो) व्यापक ! (त्वम्) भवान् मह्यं (विश्वजन्याम्) विश्वजनहितां (अप्रयुताम्) दोषरहितां (सुमतिम्) नीतिं (दाः) दद्याः तथा (पुरुश्चन्द्रस्य) सर्वविधैश्वर्यस्य (रायः) साधनीभूतं धनम् (भूरेः, अश्वावतः) अनन्तशक्तिमत् (सुवितस्य) सुविद्यया लभ्यं (यथा) येन विधिना (पर्चः) प्राप्यते, तथैव बुद्धिम् (नः) अस्मभ्यं देहि ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एवयावः) हे सर्वकामनाप्रद (विष्णो) व्यापक परमेश्वर ! (त्वं) आप हमें (विश्वजन्यां) सब संसार का हित करनेवाली (अप्रयुताम्) दोषरहित (सुमतिं) नीति (दाः) दें और (पुरुश्चन्द्रस्य) सब प्रकार के ऐश्वर्यों का (रायः) साधन जो धन है और (भूरेः, अश्वावतः) जिसमें अनेक प्रकार की शक्तियें हैं और जो (सुवितस्य) सुविधा से प्राप्त हो सकता है, (यथा) जिस प्रकार (पर्चः) उसकी प्राप्ति हो, वैसी (नः) हमको आप बुद्धि दें ॥२॥
भावार्थ
शुभ नीति और सुनीति उसका नाम है, जिससे संसार भर का कल्याण हो। इस मन्त्र में परमात्मा ने इस नीति के उत्पन्न करने के लिये जिज्ञासु द्वारा प्रार्थना कथन करके उपदेश किया है। वास्तव में शुभ नीति ही धर्म्म, देश और जाति की उन्नति का सर्वोपरि साधन है ॥२॥
विषय
विष्णु, व्यापक प्रभु की स्तुति-उपासना।
भावार्थ
( विष्णो ) सर्वव्यापक प्रभो ! ( त्वे ) तू (विश्वजन्या) सब जनों की हितकारिणी, ( अप्रयुताम् ) सब के साथ मिली हुई, ( सुमतिं मतिम् ) उत्तम ज्ञानयुक्त बुद्धि या उत्तम बुद्धिसहित ज्ञान का ( दा: ) प्रदान कर । ( यथा ) जिससे, ( नः ) हमारे पास ( सुवितस्य ) उत्तम रीति से प्राप्त ( भूरेः अश्वावतः ) बहुत से अश्वों से युक्त, ( पुरु-चन्द्रस्य ) बहुतों के आह्लादकारक ( रायः ) ऐश्वर्य का ( पर्चः ) हम से सम्पर्क हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ विष्णुर्देवता॥ छन्दः—१, २, ५, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्। ४ आर्षी त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
ज्ञानयुक्त बुद्धि की याचना
पदार्थ
पदार्थ- हे (विष्णो) = व्यापक प्रभो ! (त्वे) = तू (विश्वजन्या) = सब जनों की हितकारिणी, (अप्रयुताम्) = सबके साथ मिली हुई, (सुमतिं मतिम्) = उत्तम ज्ञानयुक्त बुद्धि को (दाः) = दे। (यथा) = जिससे, (नः) = हमारे (सुवितस्य) = उत्तम रीति से प्राप्त (भूरेः अश्वावत:) = बहुत से अश्वों से युक्त, पुरुचन्द्रस्य बहुतों के आह्लादकारी (रायः) = ऐश्वर्य का (पर्चः) = सम्पर्क हो ।
भावार्थ
भावार्थ- मनुष्य परमात्मा से ज्ञानयुक्त बुद्धि की याचना किया करे। उत्तम बुद्धि के द्वारा श्रेष्ठ साधनों से उत्तम धन को प्राप्त करे। दान आदि से अन्य पात्रजनों को तृप्त व प्रसन्न करे। इससे स्वयं की अत्यन्त सन्तुष्टि मिलेगी।
इंग्लिश (1)
Meaning
Vishnu, lord omnipresent and omnificent, who fulfil the aspirations of all humanity, bless us with such intelligence, understanding and faith in values of pure and universal character by which we may achieve our target of untarnished happiness and plenty of universal wealth of honour, beauty and complete fulfilment of earthly ambition.
मराठी (1)
भावार्थ
शुभनीती व सुनीतीमुळे जगाचे कल्याण होते. या मंत्रात परमात्म्याने ही नीती उत्पन्न करण्यासाठी जिज्ञासूद्वारे प्रार्थना म्हणण्याचा उपदेश केलेला आहे. वास्तविक शुभ नीतीच धर्म, देश व जातीच्या उन्नतीचे संपूर्ण साधन आहे. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal