ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 24
इन्द्र॑ ज॒हि पुमां॑सं यातु॒धान॑मु॒त स्त्रियं॑ मा॒यया॒ शाश॑दानाम् । विग्री॑वासो॒ मूर॑देवा ऋदन्तु॒ मा ते दृ॑श॒न्त्सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । ज॒हि । पुमां॑सम् । या॒तु॒ऽधान॑म् । उ॒त । स्त्रिय॑म् । मा॒यया॑ । शाश॑दानाम् । विऽग्री॑वासः । मूर॑ऽदेवाः । ऋ॒द॒न्तु॒ । मा । ते । दृ॒श॒न् । सूर्य॑म् । उ॒त्ऽचर॑न्तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र जहि पुमांसं यातुधानमुत स्त्रियं मायया शाशदानाम् । विग्रीवासो मूरदेवा ऋदन्तु मा ते दृशन्त्सूर्यमुच्चरन्तम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । जहि । पुमांसम् । यातुऽधानम् । उत । स्त्रियम् । मायया । शाशदानाम् । विऽग्रीवासः । मूरऽदेवाः । ऋदन्तु । मा । ते । दृशन् । सूर्यम् । उत्ऽचरन्तम् ॥ ७.१०४.२४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 24
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) हे परमैश्वर्यशालिन् ! (पुमांसम्, यातुधानम्, जहि) न्यायमनाचरन्तं राक्षसं नाशय (उत) तथा (मायया) वञ्चनया (शाशदानाम्, स्त्रियम्) या वैदिकधर्मं विकरोति तां (जहि) दण्डय (मूरदेवाः) ये हिंसनक्रियया क्रीडन्तः (विग्रीवासः, ऋदन्तु) ग्रीवारहिता निबुद्धयः सन्तो गच्छन्तु तथा ते ते सर्वे (उच्चरन्तम्, सूर्यम्, मा, दृशन्) ज्ञानमयसूर्यस्य प्रकाशं मा द्राक्षुः ॥२४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! (पुमांसं, यातुधानं, जहि) अन्यायकारी दण्डनीय राक्षस को आप नष्ट करें (उत) और (मायया) जो वञ्चना करके (शाशदानाम्, स्त्रियम्) वैदिक धर्म को हानि पहुँचाती है, ऐसी स्त्री को (जहि) नष्ट करो, (मूरदेवाः) हिंसारूपी क्रिया से क्रीड़ा करनेवाले (विग्रीवासः, ऋदन्तु) ज्ञानेन्द्रियरहित हो जायँ, ताकि (ते) वे सब (उच्चरन्तम्, सूर्यम्, मा, दृशन्) ज्ञानरूप सूर्य के प्रकाश को न देख सकें ॥२४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह कथन किया है कि जो लोग मायावी और हिंसक होते हैं, वे शनैः-शनैः ज्ञानरहित होकर ऐसी मुग्धावस्था को प्राप्त हो जाते हैं कि फिर उनको सत्य और झूठ का विवेक नहीं रहता। परमात्मन् ! ऐसे दुराचारियों को आप ऐसी मोहमयी निशा में सुलायें कि वह संसार में जागृति को प्राप्त न्यायकारी सदाचारियों को दुःख न दें ॥२४॥
विषय
कुटिलाचारी जनों पर दण्डपात ।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! तू ( यातुधानं पुमांस) पीड़ा देने वाले पुरुष को और ( मायया शाशदानाम् ) माया में प्रजा का नाश करने वाली ( स्त्रियं उत ) स्त्री को भी ( जहि ) दण्डित कर । ( मूर-देवाः) मूढ़ होकर विषयों में क्रीड़ा करने वाले, या मारने वाली मौत की पीड़ा देने वाले दुष्ट लोग ( वि-ग्रीवासः ) विना गर्दन के होकर ( ऋदन्तु ) नष्ट हों । ( ते ) चे ( उत्-चरन्तं ) उगते हुए ( सूर्यं मादृशन् ) सूर्य को भी न देख पावें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
व्यभिचारियों को मृत्युदण्ड
पदार्थ
पदार्थ- हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन्! तू (यातुधानं पुमांस) = पीड़क पुरुष को और (मायया शाशदानाम्) = माया से प्रजा की नाशक (स्त्रियं उत) = स्त्री को भी (जहि) = दण्डित कर। (मूर- देवा:) = मूढ़ होकर विषयों में क्रीड़ा करनेवाले दुष्ट लोग (वि-ग्रीवासः) = बिना गर्दन के होकर (ऋदन्तु) = नष्ट हों। (ते) = वे (उत्चरन्तं) = उगते हुए (सूर्यं मा दृशन्) = सूर्य को भी न देख पावें ।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र में व्यभिचार फैलानेवाले व्यभिचारी स्त्री पुरुषों को राजा मृत्युदण्ड देवे तथा प्रजा को पीड़ित करनेवाले व ठगनेवाले स्त्री पुरुषों को भी कठोर दण्ड दे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, punish and eliminate the man demon. Punish and eliminate the woman demon who destroys by deception and crafty design. Let the stranglers of life who play with life and death lose their own throat and let them never see the rising sun.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात हे कथन केलेले आहे, की जे लोक मायावी व हिंसक असतात ते हळूहळू ज्ञानरहित बनून भ्रमित अवस्थेला प्राप्त करतात. नंतर त्यांना सत्य-असत्याचा विवेक राहत नाही. हे परमात्मा अशा दुराचारी लोकांना तू अशा मोहमयी निशेत झोपव, की त्यांनी जागृत होऊन न्यायकारी सदाचारी लोकांना दु:ख देता कामा नये. ॥२४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal