ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 9
ये पा॑कशं॒सं वि॒हर॑न्त॒ एवै॒र्ये वा॑ भ॒द्रं दू॒षय॑न्ति स्व॒धाभि॑: । अह॑ये वा॒ तान्प्र॒ददा॑तु॒ सोम॒ आ वा॑ दधातु॒ निॠ॑तेरु॒पस्थे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठये । पा॒क॒ऽशं॒सम् । वि॒ऽहर॑न्ते । एवैः॑ । ये । वा॒ । भ॒द्रम् । दू॒षय॑न्ति । स्व॒धाऽभिः॑ । अह॑ये । वा॒ । तान् । प्र॒ऽददा॑तु । सोमः॑ । आ । वा॒ । द॒धा॒तु॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्थे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये पाकशंसं विहरन्त एवैर्ये वा भद्रं दूषयन्ति स्वधाभि: । अहये वा तान्प्रददातु सोम आ वा दधातु निॠतेरुपस्थे ॥
स्वर रहित पद पाठये । पाकऽशंसम् । विऽहरन्ते । एवैः । ये । वा । भद्रम् । दूषयन्ति । स्वधाऽभिः । अहये । वा । तान् । प्रऽददातु । सोमः । आ । वा । दधातु । निःऽऋतेः । उपऽस्थे ॥ ७.१०४.९
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ये, पाकशंसम्, विहरन्ते) ये दुष्टाः सद्धर्मप्रशंसकं दूषयन्ति (एवैः, ये, वा) यद्वा ये चेत्थं भूतैरेवासत्याचरणैः (स्वधाभिः) स्वसाहसैः (भद्रम्) सुकर्माणं (दूषयन्ति) दुष्टं कारयन्ति (तान्) तान्दुष्टान् (सोमः) परमात्मा (अहये) हिंसकाय (प्रददातु) समर्पयतु वा यद्वा (निर्ऋतेः, उपस्थे) असत्यवादिसमक्षे (आदधातु) स्थापयतु ॥९॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ये, पाकशंसं, विहरन्ते) जो राक्षस अर्थात् अन्यायकारी लोग सच्चे धर्म की प्रशंसा करनेवाले पुरुष को आक्षिप्त-दूषित करते हैं, (एवैः) ऐसे ही कामों से (ये, वा) जो पुरुष (स्वधाभिः) अपने साहसरूप बल से (भद्रम्) भद्र पुरुष को (दूषयन्ति) दूषित करते हैं, (तान्) उनको (सोमः) परमात्मा (अहये) हिंसकों को (प्रददातु) दे (वा) यद्वा (निर्ऋतेः, उपस्थे) असत्यवादियों की सङ्गति में (आदधातु) रक्खे ॥९॥
भावार्थ
जो लोग अपने साहस से सद्धर्मपरायण पुरुषों को दूषित करते हैं, उनको परमात्मा हिंसकों के वशीभूत करता है अथवा पापात्मा पुरुषों के मध्य में फेंक देता है, जिससे वे स्वयं पापी बन कर अपने कर्मों से आप ही नष्ट-भ्रष्ट हो जायें। तात्पर्य इस मन्त्र का यह है कि परमात्मा उसे दण्ड देने के अभिप्राय से पापात्मा पुरुषों के वशीभूत करता है, ताकि वे दण्ड भोग कर स्वयं शुद्ध हो जायें। परमात्मा को सबका सुधार करना अपेक्षित है। नाश करना इस अभिप्राय से कहा गया कि परमात्मा उसके कुकर्म और कुवृत्तियों का नाश करता है, आत्मनाश नहीं ॥९॥
विषय
सत्यासत्य का विवेक करने का उपदेश ।
भावार्थ
( ये ) जो लोग ( एवैः ) अपने पुरे अभिप्रायों या कुटिल चालों से ( पाक-शंसं ) परिपक्व, दृढ़ सत्य वचन कहने वाले को ( विहरन्ते) विरुद्ध मार्ग में ले जाते हैं ( वा ) अथवा, जो ( स्वधाभिः ) अपने बल, अन्न, गृह वेतनादि के बल से वा वेतनभोगी पुरुषों द्वारा (भद्रं दूषयन्ति ) भले आदमी को दूषित करते हैं उस पर दोषारोप करते हैं ( सोमः ) शासक राजा और विद्वान् न्यायाधीश ( तान् ) उनको ( वा ) भी (अहये प्र ददातु ) हिंसक, सर्पादि जन्तु के काटने वा सर्पवत् कुटिलाचार करने के लिये ही दण्ड दे। (वा) अथवा, ( तान् ) ऐसे पुरुषों का ( निः-ऋतेः ) अति दुःखदायी जन्तु सिंह, रीछ आदि वा पीड़क के ( उपस्थे ) समीप ( आ दधातु ) रक्खें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
असत्य के प्रति प्रेरणा करनेवाले को दण्ड
पदार्थ
पदार्थ - (ये) = जो लोग (एवैः) = बुरे अभिप्रायों से (पाक-शंसं) = परिपक्व, सत्य वचन कहनेवाले को (विहरन्ते) = विरुद्ध मार्ग में ले जाते हैं वा अथवा जो (स्वधाभिः) = अपने बल, अन्न, गृह के बल से वा वेतन भोगी पुरुषों द्वारा (भद्रं दूषयन्ति) = भले आदमी को दूषित करते हैं, (सोमः) = शासक राजा, न्यायाधीश (तान्) = उनको (वा) = भी (अहये प्र ददातु) = सर्पादि जन्तु के काटने, (वा) = सर्पवत् कुटिलाचार करने के लिये दण्ड दे। (वा) = अथवा (तान्) = ऐसे पुरुषों को (निः ऋतेः) = दुःखदायी जन्तु, सिंह, रीछ आदि वा पीड़क के (उपस्थे) = समीप (आ दधातु) = रक्खें।
भावार्थ
भावार्थ- यदि कोई व्यक्ति सदाचारी विद्वान् को या अपने अधीन वेतनभोगी पुरुषों को किसी निर्दोष के ऊपर झूठे आरोप या उसके विरुद्ध झूठी गवाही देने के लिए दबाव डाले या प्रेरित करे तो ऐसे असत्य के प्रति प्रेरक को भी राजा कठोरतम दण्ड देवे।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of peace and justice, if there are those who with their smartness and fast actions malign, lacerate and deprive the man of purity, truth and immaculate honour and spotless reputation, or with their powers and prestige denigrate the man of goodness and charitable action and bring disgrace upon him, deliver such men to the sufferance of darkness and the pain of remorse or let them suffer the fangs of deprivation themselves.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक उद्धटपणाचे सद्धर्मपरायण पुरुषांची निंदा करतात, त्यांना परमात्मा हिंसकाच्या स्वाधीन करतो किंवा पापी लोकांमध्ये फेकून देतो. ज्यामुळे ते स्वत: पापी बनून आपल्या कर्माने स्वत:च नष्ट भ्रष्ट होतात. तात्पर्य हे, की परमात्मा त्याला दंड देण्यासाठी पापी लोकांच्या वशीभूत करतो. कारण ते दंड भोगून स्वत: शुद्ध व्हावेत. परमेश्वराला सर्वांची सुधारणा अपेक्षित आहे. नाश करणे यासाठी म्हटले आहे, की परमात्मा त्यांचे कुकर्म व कुप्रवृत्तींचा नाश करतो, आत्मनाश नाही. ॥९॥
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