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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    तं त्वा॑ दू॒तं कृ॑ण्महे य॒शस्त॑मं दे॒वाँ आ वी॒तये॑ वह। विश्वा॑ सूनो सहसो मर्त॒भोज॑ना॒ रास्व॒ तद्यत्त्वेम॑हे ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । त्वा॒ । दु॒तम् । कृ॒ण्म॒हे॒ । य॒शःऽत॑मम् । दे॒वान् । आ । वी॒तये॑ । व॒ह॒ । विश्वा॑ । सू॒नो॒ इति॑ । स॒ह॒सः॒ । म॒र्त॒ऽभोज॑ना । रास्व॑ । तत् । यत् । त्वा॒ । ईम॑हे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं त्वा दूतं कृण्महे यशस्तमं देवाँ आ वीतये वह। विश्वा सूनो सहसो मर्तभोजना रास्व तद्यत्त्वेमहे ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। त्वा। दुतम्। कृण्महे। यशःऽतमम्। देवान्। आ। वीतये। वह। विश्वा। सूनो इति। सहसः। मर्तऽभोजना। रास्व। तत्। यत्। त्वा। ईमहे ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 16; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजादयो मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे सहसस्सूनो विद्वन् ! यथा वयं यशस्तमं तमग्निं दूतं कृण्महे तथा त्वा मुख्यं कृण्महे त्वं वीतये देवाना वह विश्वा मर्त्तभोजना रास्व यथा यद्यमग्निं कार्यसिद्धये प्रयुञ्जमहे तथा तत्तं त्वेमहे ॥४॥

    पदार्थः

    (तम्) (त्वा) त्वाम् (दूतम्) (कृण्महे) (यशस्तमम्) अतिशयेन कीर्तिकारकम् (देवान्) दिव्यगुणान् पदार्थान् वा (आ) (वीतये) विज्ञानादिप्राप्तये (वह) प्राप्नुहि प्रापय वा (विश्वा) सर्वाणि (सूनो) अपत्य (सहसः) बलवतः (मर्त्तभोजना) मर्त्तानां मनुष्याणां भोजनानि पालनानि (रास्व) देहि (तत्) तम् (यत्) यम् (त्वा) त्वाम् (ईमहे) याचामहे ॥४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सर्वकार्य्यसाधकं विद्युदग्निं दूतं राजकार्य्यसाधकं विद्याविनयान्वितं पुरुषं राजानं च कुर्वन्ति ते समग्रमैश्वर्यं पालनं च लभन्ते ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजादि मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सहसः) बलवान् के (सूनो) पुत्र विद्वन् ! जैसे हम लोग (यशस्तमम्) अतिशय कीर्ति करनेवाले (तम्) उस अग्नि को (दूतम्) दूत (कृण्महे) करते, वैसे (त्वा) आपको मुख्य करते हैं आप (वीतये) विज्ञानादि को प्राप्त करने के लिये (देवान्) दिव्य गुणों वा पदार्थों को (आ, वह) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये वा कीजिये (विश्वा) सब (मर्त्तभोजना) मनुष्यों के भोजनों वा पालनों को (रास्व) दीजिये जैसे (यत्) जिस अग्नि को कार्यसिद्धि के लिये प्रयुक्त करते, वैसे (तत्) उसको और (त्वा) आपको (ईमहे) याचना करते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सब कार्यों के साधक विद्युत् अग्नि के दूत और राजकार्यों के साधक विद्या वा विनय से युक्त पुरुष को राजा करते हैं, वे सब ऐश्वर्य और पालन को प्राप्त होते हैं ॥४॥

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    विषय

    उसका तेजस्वी सूर्य और अग्निवत् स्वरूप ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार अग्नि या विद्युत्, सर्व व्यापक होने से 'शयस्तम' वा 'यशस्तम' है अति संताप जनक होने से 'दूत' है, बल-उत्पादक होने से और बलपूर्वक रगड़ से उत्पन्न होने से 'सहसः-सूनु' है वह मनुष्यों का ( मर्त्त-भोजना ) भोजन पकाता नाना भोग्य पदार्थ प्रस्तुत करता है वह ( वीतये ) प्रकाश के लिये ( देवान् आ वहति ) किरणों को धारण करता है। उसी प्रकार हे राजन् ! (तं ) उस (त्वा ) तुझ ( यशस्तमं) वीर्यवान् और कीर्तिमान् को ही हम ( दूतं ) समस्त दुष्टों को दण्ड द्वारा पीड़ित करने और सबको शुभ सन्देश, आदेशादि देने वाला प्रमुख रूप से ( कृण्महे ) बनाते हैं तू ( वीतये ) राष्ट्र की रक्षा के लिये ( देवान् ) उत्तम व्यवहारज्ञ, विजयेच्छुक, तेजस्वी, दानशील पुरुषों को (आवह) धारण कर । हे (सहसः सूनो) बल, बिजली, सैन्य के संचालक तू ही ( विश्वा ) समस्त ( मर्त्तभोजना ) मनुष्यों के नाना भोग योग्य वृत्ति ऐश्वर्यादि पदार्थ ( रास्व ) प्रदान कर ( यत् ) जो २ हम ( त्वा ईमहे ) तुझ से मांगे । अर्थात् राजा प्रजा की सभी उपयुक्त मांगों को स्वीकार कर देवे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। अग्निर्देवता॥ छन्द्रः - १ स्वराडनुष्टुप्। ५ निचृदनुष्टुप्। ७ अनुष्टुप्।। ११ भुरिगनुष्टुप्। २ भुरिग्बृहती। ३ निचृद् बृहती। ४, ९, १० बृहती। ६, ८, १२ निचृत्पंक्तिः।।

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    विषय

    ज्ञान+धन

    पदार्थ

    [१] हे (सहसः सूनो) = बल के पुत्र बल के पुञ्ज प्रभो ! (यशस्तमम्) = अत्यन्त यशस्वी (तं त्वा) = उन आपको (दूतम्) = ज्ञान सन्देश को प्राप्त करानेवाला (कृण्महे) = करते हैं, आपके द्वारा ज्ञान को प्राप्त करते हैं। आप (वीतये) = अज्ञानान्धकार के ध्वंस के लिये (देवान्) = देवों को आवह हमें प्राप्त कराइये। ज्ञानी देववृत्ति के पुरुषों के साथ हमारा सम्पर्क हो जिससे हमारे लिये वे उत्कृष्ट ज्ञान के देनेवाले हों। [२] हे प्रभो ! आप (विश्वा) = सब (मर्तभोजना) = मानव के लिये उपभोग्य वस्तुओं को (रास्व) = दीजिए | (तद्) = उस-उस धन को [रास्व] दीजिए (यत्) = जिसे (त्वा ईमहे) = हम आप से माँगते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमें ज्ञान प्राप्त कराएँ। अज्ञानान्धकार के ध्वंस के लिए देवों का संग प्राप्त करायें।मनुष्य के लिए आवश्यक धनों को प्राप्त करायें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सर्व कार्य करणाऱ्या विद्युत अग्नीला दूत व राज्य कार्य करणाऱ्या व विद्यायुक्त पुरुषाला राजा करतात त्यांना सर्व ऐश्वर्य प्राप्त होऊन त्यांचे पालन होते. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We light, raise and develop the holy fire as messenger and harbinger of excellent gifts of life’s light and fragrance. So do we elect, adore and anoint you on the highest and most glorious office of the nation. Bring us the divine nobilities and brilliancies of the world of nature and humanity together and give us all the cherished blessings of life for which purpose we love and adore the fire and you, O lord of power and honour manifest and embodiment of excellence.

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