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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 16/ मन्त्र 7
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    त्वे अ॑ग्ने स्वाहुत प्रि॒यासः॑ सन्तु सू॒रयः॑। य॒न्तारो॒ ये म॒घवा॑नो॒ जना॑नामू॒र्वान्दय॑न्त॒ गोना॑म् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वे इति॑ । अ॒ग्ने॒ । सु॒ऽआ॒हु॒त॒ । प्रि॒यासः॑ । स॒न्तु॒ । सू॒रयः॑ । य॒न्तारः॑ । ये । म॒घऽवा॑नः । जना॑नाम् । ऊ॒र्वान् । दय॑न्त । गोना॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वे अग्ने स्वाहुत प्रियासः सन्तु सूरयः। यन्तारो ये मघवानो जनानामूर्वान्दयन्त गोनाम् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वे इति। अग्ने। सुऽआहुत। प्रियासः। सन्तु। सूरयः। यन्तारः। ये। मघऽवानः। जनानाम्। ऊर्वान्। दयन्त। गोनाम् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 16; मन्त्र » 7
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कान् सत्कुर्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे स्वाहुताग्ने अग्निवद्वर्त्तमान राजन् ! ये जनानां मध्ये गोनामूर्वान् दयन्त यन्तारो मघवानः सूरयस्त्वे प्रियासः सन्तु ताँस्त्वं नित्यं सत्कुर्याः ॥७॥

    पदार्थः

    (त्वे) त्वयि (अग्ने) विद्याविनयप्रकाशक (स्वाहुत) सुष्ठु सत्कृत (प्रियासः) प्रीतिमन्तः (सन्तु) (सूरयः) धार्मिका विद्वांसः (यन्तारः) ये यान्ति प्राप्नुवन्ति ते (ये) (मघवानः) बहुधनयुक्ताः (जनानाम्) मनुष्याणां मध्ये (ऊर्वान्) आच्छादकान् पावकान् (दयन्त) दयन्ते (गोनाम्) गवादिपशूनाम् ॥७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा राजा सर्वेषु दयां विधाय विदुषः सत्कृत्य धनाढ्यान् स्वराज्ये वासयेत्तथा प्रजाजना राजहितैषिणः स्युः ॥७॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह राजा किन का सत्कार करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (स्वाहुत) सुन्दर प्रकार सत्कार को प्राप्त (अग्ने) विद्या विनय के प्रकाशक अग्नि के तुल्य तेजस्वि राजन् ! (ये) जो (जनानाम्) मनुष्यों के बीच (गोनाम्) गौ आदि पशुओं के (ऊर्वान्) रक्षकों को (दयन्त) दया करते वा सुरक्षित रखते और (यन्तारः) शुभ कर्मों को प्राप्त होनेवाले (मघवानः) बहुत प्रकार के धनों से युक्त (सूरयः) धर्मात्मा विद्वान् (त्वे) आप में (प्रियासः) प्रीति करनेवाले (सन्तु) हों, उनका आप नित्य सत्कार कीजिये ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे राजा सब में दया का विधान कर और विद्वानों का सत्कार करके अपने राज्य में धनाढ्यों को बसावे, वैसे प्रजाजन भी राजा के हितैषी होवें ॥७॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा राजा सर्वांवर दया करून विद्वानांचा सत्कार करून आपल्या राज्यात धनवानाचा निवास करवितो तसे प्रजेनेही राजाचे हितेच्छू बनावे. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, ruling light of the world, invoked with reverence and adored, let those brave leaders and eminent scholars commanding wealth and power be dear and closer to you who move forward, and lead, control and protect the defenders and promoters of the people, lands and cows.

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