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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    बोधा॒ सु मे॑ मघव॒न्वाच॒मेमां यां ते॒ वसि॑ष्ठो॒ अर्च॑ति॒ प्रश॑स्तिम्। इ॒मा ब्रह्म॑ सध॒मादे॑ जुषस्व ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बोध॑ । सु । मे॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । वाच॑म् । आ । इ॒माम् । याम् । ते॒ । वसि॑ष्ठः । अर्च॑ति । प्रऽश॑स्तिम् । इ॒मा । ब्रह्म॑ । स॒ध॒ऽमादे॑ । जु॒ष॒स्व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बोधा सु मे मघवन्वाचमेमां यां ते वसिष्ठो अर्चति प्रशस्तिम्। इमा ब्रह्म सधमादे जुषस्व ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बोध। सु। मे। मघऽवन्। वाचम्। आ। इमाम्। याम्। ते। वसिष्ठः। अर्चति। प्रऽशस्तिम्। इमा। ब्रह्म। सधऽमादे। जुषस्व ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्येषु कथं वर्तेतेत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मघवन्विद्वँस्त्वं यान्ते प्रशस्तिं वसिष्ठ आर्चति तामिमां मे वाचं त्वं सु बोध सधमाद इमा ब्रह्म जुषस्व ॥३॥

    पदार्थः

    (बोध) जानीहि (सु) (मे) मम (मघवन्) प्रशंसितधनयुक्त (वाचम्) (आ) (इमाम्) (याम्) (ते) तव (वसिष्ठः) (अर्चति) (प्रशस्तिम्) प्रशंसितारम् (इमा) इमानि (ब्रह्म) धनान्यन्नानि वा (सधमादे) समानस्थाने (जुषस्व) ॥३॥

    भावार्थः

    स एव विद्वानुत्तमोऽस्ति यो यादृशीं प्रज्ञां शास्त्रविषयेषु प्रवीणां स्वार्थमिच्छेत्तामेवाऽन्यार्थामिच्छेत् यद्यदुत्तमं वस्तु स्वार्थं तत्परार्थे च जानीयात् ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों में कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मघवन्) प्रशंसित धनवाले विद्वान् ! आप (याम्) जिस (ते) आपके विषय की (प्रशस्तिम्) प्रशंसित वाणी को (वसिष्ठः) अतीव वसनेवाला (आ, अर्चति) अच्छे प्रकार सत्कृत करता है (इमाम्) इस (मे) मेरी (वाचम्) वाणी को आप (सु, बोध) अच्छे प्रकार जानो उससे (सधमादे) एक से स्थान में (इमा) इन (ब्रह्म) धन वा अन्नों का (जुषस्व) सेवन करो ॥३॥

    भावार्थ

    वही विद्वान् उत्तम है, जो जिस प्रकार की उत्तम शास्त्र विषय में बुद्धि अपने लिये चाहे, उसी को औरों के लिये चाहे और जो-जो उत्तम अपने लिये पदार्थ हो, उसे पराये के लिये भी जाने ॥३॥

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    विषय

    अन्नोत्पत्ति, ब्रह्मज्ञान, धन प्राप्ति ।

    भावार्थ

    हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ! ( याम् ) जिस ( प्रशस्तिम् ) उत्तम प्रशंसा योग्य ( ते ) तेरी ( वाचम् ) वाणी का ( वसिष्ठः ) उत्तम वसु, विद्वान् (सु अर्चति) आदर कर रहा है तू ( इमाम् ) उसको (सु बोध) अच्छी प्रकार जान । ( इमा ब्रह्म ) तू इन ज्ञानों, अन्नों और धनों को ( सध-मादे ) एक साथ मिलकर हर्ष मनाने के अवसर में ( जुषस्व ) सेवन कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: । इन्द्रो देवता ।। छन्दः – भुरिगुष्णिक् । २, ७ निचृद्नुष्टुप् । ६ भुरिगनुष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । ६, ८ विराडनुष्टुप् । ४ आर्ची पंक्तिः । ९ विराट् त्रिष्टुप् ।। नवर्चं सूक्तम्

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    विषय

    अन्न उत्पत्ति, ब्रह्मज्ञान और धन प्राप्ति

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (मघवन्) = ऐश्वर्यवन्! (याम्) = जिस (प्रशस्तिम्) = प्रशंसित (ते) = तेरी (वाचम्) = वाणी का (वसिष्ठः) = उत्तम विद्वान् (सु अर्चति) = आदर कर रहा है तू (इमाम्) = उसको (सु बोध) = अच्छी प्रकार जान । (इमा ब्रह्म) = तू इन ज्ञानों को (सध मादे) = हर्ष के साथ मिलकर (जुषस्व) = सेवन कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करके अन्न की उत्पत्ति करके राष्ट्र को समृद्ध करना चाहिये ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो उत्तम शास्त्र जाणण्यासाठी उत्तम बुद्धीची इच्छा करतो तशीच इतरांसाठीही केल्यास खरा विद्वान ठरतो. जे जे पदार्थ आपल्यासाठी उत्तम असतात ते इतरांसाठीही असतात हे जाणावे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of honour, power and magnificence, pray know well this voice of mine which the sage well settled at peace offers you in adoration of your glory. And accept, honour and apply these holy words of vision and wisdom in practice in the assembly house of the wise for governance and administration.

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