ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 14
कस्तमि॑न्द्र॒ त्वाव॑सु॒मा मर्त्यो॑ दधर्षति। श्र॒द्धा इत्ते॑ मघव॒न्पार्ये॑ दि॒वि वा॒जी वाजं॑ सिषासति ॥१४॥
स्वर सहित पद पाठकः । तम् । इ॒न्द्र॒ । त्वाऽव॑सुम् । आ । मर्त्यः॑ । द॒ध॒र्ष॒ति॒ । श्र॒द्धा । इत् । ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । पार्ये॑ । दि॒वि । वा॒जी । वाज॑म् । सि॒सा॒स॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कस्तमिन्द्र त्वावसुमा मर्त्यो दधर्षति। श्रद्धा इत्ते मघवन्पार्ये दिवि वाजी वाजं सिषासति ॥१४॥
स्वर रहित पद पाठकः। तम्। इन्द्र। त्वाऽवसुम्। आ। मर्त्यः। दधर्षति। श्रद्धा। इत्। ते। मघऽवन्। पार्ये। दिवि। वाजी। वाजम्। सिसासति ॥१४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 14
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यः केन रक्षितः कीदृशो भवतीत्याह ॥
अन्वयः
हे मघवन्निन्द्र को मर्त्यो तं त्वावसुं दधर्षति ते पार्ये दिवि को वाजी वाजं श्रद्धा श्रद्धामिदासिषासति ॥१४॥
पदार्थः
(कः) (तम्) (इन्द्र) धार्मिक राजन् (त्वावसुम्) त्वया प्राप्तधनम् (आ) (मर्त्यः) (दधर्षति) तिरस्करोति (श्रद्धा) सत्ये प्रीतिः (इत्) एव (ते) तव (मघवन्) बह्वैश्वर्य (पार्ये) पालनीये पूर्णे वा (दिवि) प्रकाशे (वाजी) विज्ञानवान् (वाजम्) विज्ञानम् (सिषासति) विभक्तुमिच्छति ॥१४॥
भावार्थः
यस्य रक्षां धार्मिको राजा करोति तं तिरस्कर्तुं कः शक्नोति ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किससे रक्षा पाया हुआ कैसा होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मघवन्) बहुत ऐश्वर्यवाले (इन्द्र) धार्मिक राजा ! (कः) कौन (मर्त्यः) मनुष्य (तम्) उस (त्वावसुम्) तुम से पाये हुए धनवाले का (दधर्षति) तिरस्कार करता है (ते) आपके (पार्ये) पालना करने योग्य वा पूर्ण (दिवि) प्रकाश में कौन (वाजी) विज्ञानवान् (वाजम्) विज्ञान को तथा (श्रद्धा) सत्य में प्रीति श्रद्धा (इत्) ही को (आ, सिषासति) अलग करना चाहता है ॥१४॥
भावार्थ
जिसकी रक्षा धार्मिक राजा करता है, उसका तिरस्कार कौन कर सकता है ॥१४॥
विषय
प्रभुभक्त का अपार बल ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! राजन् ! प्रभो ! ( त्वा वसुम् ) तुझ से ऐश्वर्य पाने वाले और ( त्वा वसुम् ) तुझ में ही बसने वा रमने और तेरे अधीन रहने वाले ( तं ) उस पुरुष को ( कः ) कौन ( मर्त्यः ) मनुष्य (आ दधर्षति) तिरस्कार कर सकता है । हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ( ते ) तेरे ( पार्ये दिवि ) पालन योग्य व्यवहार और संसार से पार उतारने और संकटों से बचाने वाले ज्ञान-प्रकाश में (श्रद्धा इत् ) सत्य धारण ही है जिससे प्रेरित होकर ( वाजी ) ज्ञानवान् और बलवान् पुरुष ( वाजं-सिषासति ) अन्न, ज्ञान व ऐश्वर्य का भोग करता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
ज्ञानवान् और बलवान् ऐश्वर्यवान् होते हैं
पदार्थ
पदार्थ - हे (इन्द्र) = प्रभो ! (त्वा वसुम्) = तुझमें ही बसनेवाले (तं) = उस पुरुष को (कः) = कौन (मर्त्यः) = मनुष्य (आ दधर्षति) = तिरस्कार कर सकता है? हे (मघवन्) = ऐश्वर्यवन् (ते) = तेरे (पार्ये दिवि) = पालन योग्य व्यवहारवाले ज्ञान में (श्रद्धा इत्) = सत्य धारण ही है, जिससे प्रेरित (वाजी) = ज्ञानवान् पुरुष (वाजं सिषासति) = ऐश्वर्य - भोग करता है।
भावार्थ
भावार्थ- ऐश्वर्यवान् परमेश्वर के अधीन रहकर जो शासक वा राजा वेदाज्ञा का पालन करता हुआ अपने ज्ञान व बल की वृद्धि करता है तथा राष्ट्र में विद्वानों-वैज्ञानिकों व बलवानों-सैनिकों को पुष्ट एवं प्रोत्साहित करता है निश्चय से वह राष्ट्र को ऐश्वर्यवान् बनाता है।
मराठी (1)
भावार्थ
ज्याचे रक्षण धार्मिक राजा करतो त्याचा तिरस्कार कोणी करू शकत नाही. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord ruler of the world, who can assail that mortal who wholly lives under the shade and shelter of your protection? O lord of the wealth and power of existence, whoever reposes his faith and dynamism in you as the sole saviour and pilot while he is in action receives his share of victory in the light of divinity.
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