ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 8
सु॒नोता॑ सोम॒पाव्ने॒ सोम॒मिन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑। पच॑ता प॒क्तीरव॑से कृणु॒ध्वमित्पृ॒णन्नित्पृ॑ण॒ते मयः॑ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठसु॒नोत॑ । सो॒म॒ऽपाव्ने॑ । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । पच॑त्स् । प॒क्तीः । अव॑से । कृ॒णु॒ध्वम् । इत् । पृ॒णन् । इत् । पृ॒ण॒ते । मयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुनोता सोमपाव्ने सोममिन्द्राय वज्रिणे। पचता पक्तीरवसे कृणुध्वमित्पृणन्नित्पृणते मयः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठसुनोत। सोमऽपाव्ने। सोमम्। इन्द्राय। वज्रिणे। पचत। पक्तीः। अवसे। कृणुध्वम्। इत्। पृणन्। इत्। पृणते। मयः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 8
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राज्ञा वैद्यैः किं कारयितव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे वैद्यशास्त्रविदो विद्वांसो ! यूयं सोमपाव्ने सोमं सुनोता वज्रिण इन्द्राय सोमं सुनोत सर्वेषामवसे पक्तीः पचत कृणुध्वमिद् यथा पृणन् विद्वान् मयः पृणते तथेत्प्रजाभ्यो मयः पृणत ॥८॥
पदार्थः
(सुनोत) निष्पादयत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सोमपाव्ने) महौषधिरसम् पात्रे (सोमम्) ऐश्वर्यम् (इन्द्राय) दुष्टशत्रुविदारकाय (वज्रिणे) (पचत) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (पक्तीः) पाकान् (अवसे) रक्षणाद्याय (कृणुध्वम्) (इत्) एव (पृणन्) पालयन् (इत्) एव (पृणते) पालयति (मयः) सुखम् ॥८॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये वैद्याः स्युस्त उत्तमान्यौषधानि प्रशस्तान् रोगनाशकान् रसानुत्तमानन्नपाकाँश्च सर्वान् मनुष्यान् प्रतिशिक्षेरन् येन पूर्णं सुखं स्यात् ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा को वैद्यों से क्या कराना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे वैद्यशास्त्रवेत्ता विद्वानो ! तुम (सोमपाव्ने) बड़ी-बड़ी ओषधियों के रस को पीनेवाले के लिये (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (सुनोता) उत्पन्न करो (वज्रिणे) शस्त्र और अस्त्रों को धारण करने और (इन्द्राय) दुष्ट शत्रुओं को विदीर्ण करनेवाले के लिये ऐश्वर्य्य को उत्पन्न करो सब की (अवसे) रक्षा के लिये (पक्तीः) पाकों को (पचत) पकाओ (कृणुध्वम्, इत्) करो ही जैसे (पृणन्) पालना करता हुआ विद्वान् (मयः) सुख को (पृणते) पालता है, वैसे (इत्) ही प्रजाजनों के लिये सुख पालो ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो वैद्य हों वे उत्तम ओषधि, प्रशंसायुक्त रोगनाशक रस और उत्तम अन्न पाकों की सब मनुष्यों के प्रति शिक्षा दें, जिससे पूर्ण सुख हो ॥८॥
विषय
इन्द्रार्थ सोमसवन अर्थात् राष्ट्रपति पद पर वीर्यवान् पुरुष का अभिषेक । उसका समारम्भ ।
भावार्थ
हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( सोमपाव्ने ) 'सोम' ओषघिरस का पान करने वाले के लिये ( सोमम् सुनोत ) उत्तम ओषधिरस उत्पन्न करो । इसी प्रकार ( सोमपाव्ने ) ऐश्वर्य को पालन करने में समर्थ ( इन्द्राय ) ऐश्वर्यवान् ( वज्रिणे ) बलवान् पुरुष के लिये ( सोमं ) ऐश्वर्य ( सुनोत ) उत्पन्न करो और उक्त वीर्यवान् 'इन्द्र' पद के लिये वीर्यवान् पुरुष का अभिषेक करो । (अवसे) तृप्ति के लिये (पक्ती: ) नाना पकने योग्य अन्नों को (पचत इत् ) पकाओ । ( पृषन् इत् ) सबको पालन और पूर्ण करने वाला ही ( मयः पृणते ) सबको सुख प्रदान करता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
राष्ट्रपति पराक्रमी हो
पदार्थ
पदार्थ- हे विद्वान् पुरुषो! आप लोग (सोमपाव्ने) = 'सोम' ओषधिरस को पीनेवाले के लिये (सोमम् सुनोत) = उत्तम ओषधिरस उत्पन्न करो। ऐसे ही (सोमपाव्ने) = ऐश्वर्य-पालन में समर्थ (इन्द्राय) = ऐश्वर्यवान् (वज्रिणे) = बलवान् पुरुष के लिये (सोमं) = ऐश्वर्य (सुनोत) = उत्पन्न करो। (अवसे) = तृप्ति के लिये (पक्ती:) = नाना पकने योग्य अन्नों को (पचत इत्) = पकाओ। (पृणन् इत्) = सबको पालन करनेवाला ही (मयः पृणते) = सबको सुख देता है।
भावार्थ
भावार्थ-जैसे सोमरस की आहुति के लिए प्रचण्ड यज्ञाग्नि ही समर्थ होती है। उसी प्रकार राष्ट्र का अध्यक्ष भी प्रचण्ड पराक्रमवाला होना चाहिए। पराक्रमी राष्ट्राध्यक्ष ही राष्ट्र की रक्षा में समर्थ होता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. वैद्यांनी उत्तम औषधी, प्रशंसायुक्त रोगनाशक रस व उत्तम अन्न याबाबत सर्वांना शिक्षण द्यावे. ज्यामुळे पूर्ण सुख प्राप्त व्हावे. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Extract, mature and prepare the nectar of life for the lord, Indra, wielder of the thunderbolt of justice and punishment and destroyer of evil, who loves the soma spirit of life’s beauty and joy. Ripen and perfect the drinks and drugs for health care and protection of life, and create the state of comfort and well being, giving success and fulfilment for those who work for the joy and fulfilment of all in general.
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