ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
प्रा॒तर॒ग्निं प्रा॒तरिन्द्रं॑ हवामहे प्रा॒तर्मि॒त्रावरु॑णा प्रा॒तर॒श्विना॑। प्रा॒तर्भगं॑ पू॒षणं॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॑ प्रा॒तः सोम॑मु॒त रु॒द्रं हु॑वेम ॥१॥
स्वर सहित पद पाठप्रा॒तः । अ॒ग्निम् । प्रा॒तः । इन्द्र॑म् । ह॒वा॒म॒हे॒ । प्रा॒तः। मि॒त्रावरु॑णा । प्रा॒तः । अ॒श्विना॑ । प्रा॒तः। भग॑म् । पू॒षण॑म् । ब्रह्म॑णः । पति॑म् । प्रा॒तः । सोम॑म् । उ॒त । रु॒द्रम् । हु॒वे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना। प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम ॥१॥
स्वर रहित पद पाठप्रातः। अग्निम्। प्रातः। इन्द्रम्। हवामहे। प्रातः। मित्रावरुणा। प्रातः। अश्विना। प्रातः। भगम्। पूषणम्। ब्रह्मणः। पतिम्। प्रातः। सोमम्। उत। रुद्रम्। हुवेम ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 41; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रातरुत्थाय यावच्छयनं तावन्मनुष्यैः किं किं कर्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या! यथा वयं प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना हवामहे प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं सोममुत प्राता रुद्रं हुवेम तथा यूयमप्याह्वयत ॥१॥
पदार्थः
(प्रातः) प्रभाते (अग्निम्) पावकम् (प्रातः) (इन्द्रम्) विद्युतं सूर्यं वा (हवामहे) होमेन विचारेण प्रशंसेम (प्रातः) (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव सखिराजानौ (प्रातः) (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ वैद्यावध्यापकौ वा (प्रातः) (भगम्) ऐश्वर्यम् (पूषणम्) पुष्टिकरं वायुम् (ब्रह्मणस्पतिम्) ब्रह्मणो वेदस्य ब्रह्माण्डस्य सकलैश्वर्यस्य वा स्वामिनं जगदीश्वरम् (प्रातः) (सोमम्) सर्वौषधिगणम् (उत) (रुद्रम्) पापफलदानेन पापिनां रोदयितारं पापफलभोगेन रोदकं जीवं वा (हुवेम) प्रशंसेम ॥१॥
भावार्थः
मनुष्यैः रात्रेः पश्चिमे याम उत्थायावश्यकं कृत्वा ध्यानेन शरीरस्थं ब्रह्माण्डस्य वाऽग्निं विद्युतं प्राणोदानौ मित्राणि सूर्याचन्द्रमसावैश्वर्यं पुष्टिः परमेश्वर ओषधिगणः जीवश्च विचारेण वेदितव्यः पुनरग्निहोत्रादिभिः कर्मभिः सर्वं जगदुपकृत्य कृतकृत्यैर्भवितव्यम् ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सात ऋचावाले इक्तालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रातःकाल उठ के जब तक सोवें तब तक मनुष्यों को क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (प्रातः) प्रभात काल में (अग्निम्) अग्नि को (प्रातः) प्रभात समय में (इन्द्रम्) बिजुली वा सूर्य को (प्रातः) प्रातः समय (मित्रावरुणाः) प्राण और उदान के समान मित्र और राजा को तथा (प्रातः) प्रभात काल (अश्विना) सूर्य चन्द्रमा वैश्व वा पढ़ानेवालों की (हवामहे) विचार से प्रशंसा करें (प्रातः) प्रभात समय (भगम्) ऐश्वर्य्य को (पूषणम्) पुष्टि करनेवाले वायु को (ब्रह्मणस्पतिम्) वेद ब्रह्माण्ड वा सकलैश्वर्य के स्वामी जगदीश्वर को (सोमम्) समस्त ओषधियों को (उत) और (प्रातः) प्रभात समय (रुद्रम्) फल देने से पापियों को रुलानेवाले ईश्वर वा पाप फल भोगने से रोनेवाले जीव की (हुवेम) प्रशंसा करें, वैसे तुम भी प्रशंसा करो ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को रात्रि के पिछले पहर में उठ कर आवश्यक कार्य्य कर ध्यान से शरीरस्थ वा ब्रह्माण्डस्थ वा बिजुली, प्राण, उदान, मित्र, सूर्य, चन्द्रमा, ऐश्वर्य, पुष्टि, परमेश्वर, ओषधिगण और जीव विचार से जानने योग्य हैं, फिर अग्निहोत्रादि कामों से सब जगत् का उपकार कर कृतकृत्य होना चाहिये ॥१॥
विषय
प्रातः प्रभु की प्रार्थना, स्तुति।
भावार्थ
हम लोग ( प्रातः ) प्रभात समय में ही ( अग्निम् ) अग्नि के समान तेज:स्वरूप प्रभु की ( हवामहे ) स्तुति करें । हम ( प्रातः इन्द्रम् हवामहे ) प्रातःकाल ही विद्युत् वा सूर्य के समान सर्व प्रकाशक परमेश्वर वा आत्मा की उपासना किया करें । (मित्रा वरुणा) प्राण और उदान दोनों को ( प्रातः ) प्रातःकाल में ही हम प्राणायाम द्वारा अपने वश करें । ( अश्विना प्रातः ) वैद्य, अध्यापक और देह में सूर्य और चन्द्र स्वरों को प्रातः ही सेवन करें । ( भगं ) ऐश्वर्यमय, भजने योग्य ( पूषणं ) सर्वपोषक वायु का ( प्रातः ) प्रभात में सेवन करें। ( ब्रह्मणः पतिम् ) वेद, ब्रह्माण्ड और समस्त ऐश्वर्य के स्वामी जगदीश्वर और वेदोपदेष्टा विद्वान् को शिष्य और ( सोमम् ) ओषधि की रोगी और आचार्य की शिष्य और (रुद्रं) पापियों को रुलाने वाले प्रभु की भक्तजन, उपासक (प्रातः हुवेम) प्रातःकाल ही सेवा और शुश्रूषा करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ लिङ्गोक्ताः । २—६ भगः । ७ उषा देवता ॥ छन्दः—१ निचृज्जगती। २, ३, ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । ४ पंक्तिः॥ सप्तर्चं सूकम्॥
विषय
प्रभु का ध्यान
पदार्थ
पदार्थ- हम लोग (प्रातः) = प्रभात में (अग्निम्) = अग्नि तुल्य प्रभु की (हवामहे) = स्तुति करें। हम (प्रातः इन्द्रम् हवामहे) = प्रातः काल विद्युत् वा सूर्य-तुल्य प्रकाशक परमेश्वर की उपासना करें। (मित्रा वरुणा) = प्राण और उदान दोनों को (प्रातः) = प्रातः काल प्राणायाम द्वारा वश करें। (अश्विना प्रातः) = देह में सूर्य और चन्द्र स्वरों को प्रातः सेवन करें। (भगं) = ऐश्वर्यमय, (पूषणं) = पोषक वायु का (प्रातः) = सेवन करें। (ब्रह्मणः पतिम्) = ब्रह्माण्ड, ऐश्वर्य के स्वामी जगदीश्वर और वेदोपदिष्टा विद्वान् की शिष्य, (सोमम्) = ओषधि की रोगी और (रुद्रं) = पापियों को रुलानेवाले प्रभु की भक्तजन (प्रातः हुवेम) = प्रातः ही सेवा करें।
भावार्थ
भावार्थ- प्रातः काल ब्रह्ममुहुर्त्त में जगकर मनुष्य प्राणायाम पूर्वक परमेश्वर की उपासना करे तथा उसके तेजः स्वरूप का ध्यान करे। उसके बाद वायुसेवन अर्थात् भ्रमण के लिए जावे। परमेश्वर का स्मरण करते हुए रोगी औषध का सेवन करे तथा शिष्य आचार्य के सान्निध्य में जावे।
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात माणसांच्या दिनचर्येचे वर्णन केलेले असून या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
माणसांनी रात्रीच्या प्रहरी उठून आवश्यक कार्य करून ध्यानपूर्वक शरीरातील किंवा ब्रह्मांडातील विद्युत, प्राण, उदान, मित्र, सूर्य, चंद्र, ऐश्वर्याची पुष्टी, परमेश्वर, औषधी व जीव हे विचारपूर्वक जाणावेत. नंतर अग्निहोत्र इत्यादी कार्य करून सर्व जगावर उपकार करून कृतकृत्य व्हावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
We invoke Agni, the holy fire, early morning. We invoke Indra, cosmic energy, early morning. We invoke Mitra and Varuna, sun and ocean, early morning. We invoke the Ashvins, twin divines of nature’s energies of prana and udana, early morning. We invoke Bhaga, spirit of grandeur and glory, Pusha, spirit of nourishment and vitality, and Brahmanaspati, lord supreme of the universe and the Divine Word early morning, and we invoke Soma, herbal energy, and Rudra, lord of justice and freedom from evil and ailment in the early morning as we begin the day.
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