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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 41/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - भगः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    उ॒तेदानीं॒ भग॑वन्तः स्यामो॒त प्र॑पि॒त्व उ॒त मध्ये॒ अह्ना॑म्। उ॒तोदि॑ता मघव॒न्त्सूर्य॑स्य व॒यं दे॒वानां॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत॑ । इ॒दानी॑म् । भग॑ऽवन्तः । स्या॒म॒ । उ॒त । प्र॒ऽपि॒त्वे । उ॒त । मध्ये॑ । अह्ना॑म् । उ॒त । उत्ऽइ॑ता । म॒घ॒ऽव॒न् । सूर्य॑स्य । व॒यम् । दे॒वाना॑म् । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्। उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। इदानीम्। भगऽवन्तः। स्याम। उत। प्रऽपित्वे। उत। मध्ये। अह्नाम्। उत। उत्ऽइता। मघऽवन्। सूर्यस्य। वयम्। देवानाम्। सुऽमतौ। स्याम ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 41; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः केन कीदृशैर्भवितव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मघवन् जगदीश्वरेदानीमुत प्रपित्व उताह्नां मध्य उत सूर्यस्योदितोतापि सायं भगवन्तो वयं स्याम देवानां सुमतौ स्याम ॥४॥

    पदार्थः

    (उत) (इदानीम्) वर्तमानसमये (भगवन्तः) बहूत्तमैश्वर्ययुक्ताः (स्याम) (उत) (प्रपित्वे) प्रकर्षेणैश्वर्यस्य प्राप्तौ (उत) (मध्ये) (अह्नाम्) दिनानाम् (उत) (उदिता) उदये (मघवन्) परमपूजितैश्वर्येश्वर (सूर्यस्य) सवितृलोकस्य (वयम्) (देवानाम्) आप्तानां विदुषाम् (सुमतौ) (स्याम) भवेम ॥४॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या जगदीश्वराश्रयाज्ञापालनेन विद्वत्सङ्गादतिपुरुषार्थिनो भूत्वा धर्मार्थकाममोक्षसिद्धये प्रयतन्ते ते सकलैश्वर्ययुक्ताः सन्तस्रिषु कालेषु सुखिनो भवन्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को किससे कैसा होना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मघवन्) परमपूजित ऐश्वर्य्य युक्त जगदीश्वर ! (इदानीम्) इस समय (उत) और (प्रपित्वे) उत्तमता से ऐश्वर्य्य की प्राप्ति समय में (उत) और (अह्नाम्) दिनों में (मध्ये) बीच (उत) और (सूर्यस्य) सूर्य लोक के (उदिता) उदय में (उत) और सायंकाल में (भगवन्तः) बहुत उत्तम ऐश्वर्ययुक्त (वयम्) हम लोग (स्याम) हों (देवानाम्) तथा आप्तविद्वानों की (सुमतौ) श्रेष्ठ मति में स्थिर हों ॥४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य जगदीश्वर का आश्रय और आज्ञा पालन से विद्वानों के सङ्ग से अति पुरुषार्थी होकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के लिये प्रयत्न करते हैं, वे सकलैश्वर्य युक्त होते हुए भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान इन तीनों कालों में सुखी होते हैं ॥४॥

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    विषय

    भगवान् से नाना प्रार्थनाएं।

    भावार्थ

    ( उत इदानीं ) और इस समय, (उत प्र-पित्वे) और ऐश्वर्य प्राप्त होने पर, सूर्य के आगमन काल में और (अह्नाम् मध्ये ) दिनों के बीच में ( उत) और ( सूर्यस्य उदिता ) सूर्य के उदय-काल में या (उत्इता ) अस्तकाल में भी हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् हम ( भगवन्तः ) ऐश्वर्यों के स्वामी ( स्याम ) होकर रहें । और सदा हम ( देवानां) विद्वान् व्यवहारज्ञ पुरुषों की ( सु-मतो ) शुभ मति के अधीन ( स्याम ) रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १ लिङ्गोक्ताः । २—६ भगः । ७ उषा देवता ॥ छन्दः—१ निचृज्जगती। २, ३, ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । ४ पंक्तिः॥ सप्तर्चं सूकम्॥

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    विषय

    परमात्मचिन्तन

    पदार्थ

    पदार्थ - (उत इदानीं) = और इस समय, (उत प्र-पित्वे) = और ऐश्वर्य प्राप्त होने पर और (अह्नाम् मध्ये) = दिनों के मध्य (उत) और (सूर्यस्य उदिता) = सूर्योदय-काल में या (उद्-इता) = अस्तकाल में भी, हे (मघवन्) = ऐश्वर्यवन् ! हम (भगवन्तः) = ऐश्वर्यों के स्वामी स्याम हों और (देवानां) = विज्ञ पुरुषों की (सुमतौ) = शुभ मति के अधीन (स्याम) रहें।

    भावार्थ

    भावार्थ-व्यवहार कुशल विद्वानों के संग से शुभ मति प्राप्त करते हुए सूर्योदय काल, मध्याह्न काल तथा सूर्यास्त काल में भी समस्त ऐश्वर्यों के स्वामी परमात्मा का चिन्तन किया करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे जगदीश्वराचा आश्रय घेऊन आज्ञा पालन करून विद्वानांच्या संगतीने पुरुषार्थी बनतात व धर्म, अर्थ, काम मोक्षाच्या सिद्धीसाठी प्रयत्न करतात ती संपूर्ण ऐश्वर्ययुक्त होतात व भूत, भविष्य, वर्तमान या तिन्ही काळी सुखी होतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And let us be happy and prosperous now at this very time and at the end of the day, and also at the middle of the day through the seasons. And also, O lord of power and glory, let us enjoy the good will and kindness of the divinities at the rise of the sun.

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