ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 42/ मन्त्र 2
सु॒गस्ते॑ अग्ने॒ सन॑वित्तो॒ अध्वा॑ यु॒ङ्क्ष्व सु॒ते ह॒रितो॑ रो॒हित॑श्च। ये वा॒ सद्म॑न्नरु॒षा वी॑र॒वाहो॑ हु॒वे दे॒वानां॒ जनि॑मानि स॒त्तः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽगः । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । सन॑ऽवित्तः । अध्वा॑ । यु॒क्ष्व । सु॒ते । ह॒रितः॑ । रो॒हितः॑ । च॒ । ये । वा॒ । सद्म॑न् । अ॒रु॒षाः । वी॒र॒ऽवाहः॑ । हु॒वे । दे॒वाना॑म् । जनि॑मानि । स॒त्तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुगस्ते अग्ने सनवित्तो अध्वा युङ्क्ष्व सुते हरितो रोहितश्च। ये वा सद्मन्नरुषा वीरवाहो हुवे देवानां जनिमानि सत्तः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठसुऽगः। ते। अग्ने। सनऽवित्तः। अध्वा। युङ्क्ष्व। सुते। हरितः। रोहितः। च। ये। वा। सद्मन्। अरुषाः। वीरऽवाहः। हुवे। देवानाम्। जनिमानि। सत्तः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 42; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
के विद्वांसः श्रेष्ठास्सन्तीत्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! सुतेऽस्मिन् जगति ये हरितो रोहितश्चेव सद्मन्नरुषा वीरवाहो वा सन्ति तेषां देवानां जनिमानि सत्तोऽहं हुवे तथा यस्ते सुगः सनवित्तोऽध्वास्ति यमहं हुवे तं त्वं युङ्क्ष्व ॥२॥
पदार्थः
(सुगः) सुष्ठु गच्छन्ति यस्मिन्सः (ते) तव (अग्ने) पावक इव विद्याप्रकाशित (सनवित्तः) यः सनातनेन वेगेन वित्तः लब्धः (अध्वा) मार्गः (युङ्क्ष्व) युक्तो भव (सुते) उत्पन्नेऽस्मिन् जगति (हरितः) दिश इव। हरित इति दिङ्नाम। (निघं०१.६)। (रोहितः) नद्य इव। रोहित इति नदीनाम। (निघं०१.१३)। (च) (ये) (वा) (सद्मन्) सद्मनि स्थाने (अरुषाः) रक्तादिगुणविशिष्टाः (वीरवाहः) ये वीरान् वहन्ति प्रापयन्ति ते (हुवे) प्रशंसेयम् (देवानाम्) विदुषाम् (जनिमानि) जन्मानि (सत्तः) निषण्णः ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव विद्वांसः श्रेष्ठास्सन्ति ये सनातनं वेदप्रतिपाद्यं धर्ममनुष्ठायानुष्ठापयन्ति तेषामेव विदुषां जन्म सफलं भवति ये पूर्णा विद्याः प्राप्य धर्मात्मानो भूत्वा प्रीत्या सर्वान् सुशिक्षयन्ति ॥२॥
हिन्दी (2)
विषय
कौन विद्वान् जन श्रेष्ठ होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्याप्रकाशित ! (सुते) उत्पन्न हुए इस जगत् में (ये) जो (हरितः) दिशाओं के समान (च) और (रोहितः) नदियों के समान (सद्मन्) स्थान में (अरुषाः) लालगुणयुक्त (वीरवाहः) वीरों को पहुँचानेवाले हैं उन (देवानाम्) विद्वानों के (जनिमानि) जन्मों को (सत्तः) आसत्त हुआ मैं (हुवे) प्रशंसा करता हूँ, वैसे जो आप का (सुगः) अच्छे जाते हैं जिस में वह (सनवित्तः) सनातन वेग से प्राप्त (अध्वा) मार्ग है जिसकी कि मैं प्रशंसा करूँ उसको आप (युङ्क्ष्व) युक्त करो ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । वे ही विद्वान् जन श्रेष्ठ हैं जो सनातन वेदप्रतिपादित धर्म का अनुष्ठान करके कराते हैं, उन्हीं विद्वानों का जन्म सफल होता है, जो पूर्ण विद्या को पाकर धर्मात्मा होकर प्रीति के साथ सब को अच्छी शिक्षा दिलाते हैं ॥२॥
विषय
प्रशंसनीय वीर
पदार्थ
पदार्थ - हे (अग्ने) = तेजस्विन् ! विद्वन् ! (ते) = तेरा (सनवित्तः) = सनातन से वेद द्वारा ज्ञात (अध्वा) = मार्ग (सुगः) = सुख से गमन - योग्य है। तू भी (सुते) = ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये रथ में (हरितः रोहितः च) = लाल अश्वों को (युक्ष्व) = युक्त कर । (ये वा अरुषाः वीरवाहः) = जो क्रोध-रहित वीरों को ले चलनेवाले हों (देवानां जनिमानि) = उन विद्वानों और वीरों के जन्मों की मैं (सत्तः) = स्थिर होकर प्रशंसा करूँ।
भावार्थ
भावार्थ- अग्नि के समान तेजस्वी विद्वान् सत्य सनातन वेदमार्ग को समस्त प्रजा के लिए प्रशस्त करें। इस वेद मार्ग पर चलकर गृहस्थीजन प्रशंसनीय वीर सन्तानों को जन्म देकर राष्ट्र के गौरव को बढ़ावें ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सनातन वेदप्रतिपादित धर्माचे अनुष्ठान करतात, करवितात तेच श्रेष्ठ विद्वान असतात. जे पूर्ण विद्या प्राप्त करून धर्मात्मा बनतात व प्रेमाने सर्वांना चांगले शिक्षण देतात तेच श्रेष्ठ विद्वान असतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, lord of light and fire, master of divine knowledge, simple and straight is your path of motion and radiation, ancient, known, pursued and followed in this world of the lord’s creation. Join the forces of nature and divinity wide as quarters of space, fluent as streams of water and passionate as flames of fire, which lead the brave to the house of yajna wherein, sitting and meditating, I sing and celebrate the origins of the divinities of nature and humanity.
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