ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 43/ मन्त्र 3
आ पु॒त्रासो॒ न मा॒तरं॒ विभृ॑त्राः॒ सानौ॑ दे॒वासो॑ ब॒र्हिषः॑ सदन्तु। आ वि॒श्वाची॑ विद॒थ्या॑मन॒क्त्वग्ने॒ मा नो॑ दे॒वता॑ता॒ मृध॑स्कः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआ । पु॒त्रासः॑ । न । मा॒तर॑म् । विऽभृ॑त्राः । सानौ॑ । दे॒वासः॑ । ब॒र्हिषः॑ । स॒द॒न्तु॒ । आ । वि॒श्वाची॑ । वि॒द॒थ्या॑म् । अ॒न॒क्तु॒ । अग्ने॑ । मा । नः॒ । दे॒वऽता॑ता । मृधः॑ । क॒रिति॑ कः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पुत्रासो न मातरं विभृत्राः सानौ देवासो बर्हिषः सदन्तु। आ विश्वाची विदथ्यामनक्त्वग्ने मा नो देवताता मृधस्कः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआ। पुत्रासः। न। मातरम्। विऽभृत्राः। सानौ। देवासः। बर्हिषः। सदन्तु। आ। विश्वाची। विदथ्याम्। अनक्तु। अग्ने। मा। नः। देवऽताता। मृधः। करिति कः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 43; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! यथा विश्वाची विदथ्यामानक्तु तदुपदेशेन त्वं नो देवताता मृधो मा कः ये देवासो सानौ विभृत्राः पुत्रासो मातरन्न बर्हिषः आ सदन्तु ताँस्त्वं कामयस्व ॥३॥
पदार्थः
(आ) (पुत्रासः) पुत्राः (न) इव (मातरम्) (विभृत्राः) विशेषेण पोषकाः (सानौ) ऊर्ध्वे देशे (देवासः) विद्वांसः (बर्हिषः) प्रवृद्धाः (सदन्तु) आसीदन्तु (आ) (विश्वाची) या विश्वमञ्चति (विदथ्याम्) विदथेषु गृहेषु साध्वीं नीतिम् (अनक्तु) कामयताम् (अग्ने) विद्वन् (मा) (नः) अस्माकम् (देवताता) दिव्यगुणप्रापके यज्ञे (मृध्रः) हिंस्रान् (कः) कुर्याः ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । सैव मातोत्तमा या ब्रह्मचर्येण विदुषी भूत्वा सन्तानान् सुशिक्ष्य विद्ययैषामुन्नतिं कुर्यात् स एव पिता श्रेष्ठोऽस्ति यो हिंसादिदोषरहितान् सन्तानान् कुर्यात् त एव विद्वांसः प्रशस्ताः सन्ति येऽन्यान् मनुष्यान् मातृवत् पालयन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वान् ! जैसे (विश्वाची) विश्व को प्राप्त होनेवाली (विदथ्याम्) घरों में नीति को (आ, अनक्तु) सब ओर से चाहे उसके उपदेश से आप (नः) हमारे (देवताता) दिव्य गुणों की प्राप्ति करानेवाले यज्ञ में (मृधः) हिंसकों को (मा) मत (कः) करें जो (देवासः) विद्वान् जन (सानौ) ऊपर ले देश स्थान में (विभृत्राः) विशेष कर पुष्टि करनेवाले (पुत्रासः) पुत्र जैसे (मातरम्) माता को (न) वैसे (बर्हिषः) उत्तम वृद्ध जन (आ, सदन्तु) स्थिर हों, उनकी आप कामना करें ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वही माता उत्तम है जो ब्रह्मचर्य से विदुषी होकर सन्तानों को अच्छी शिक्षा देकर विद्या से इनकी उन्नति करे, वही पिता श्रेष्ठ है जो हिंसादि दोषरहित सन्तान करे, वे ही विद्वान् प्रशंसा पाये हैं जो और मनुष्यों को माँ के समान पालते हैं ॥३॥
विषय
माता को प्राप्त पुत्रोंवत् शासकों की उन्नत पद प्राप्ति ।
भावार्थ
( विभृत्राः पुत्रासः मातरं न ) भरण-पोषणयोग्य पुत्र जिस प्रकार माता को प्राप्त होते हैं उसी प्रकार ( विभृत्राः ) विशेष रूप से भृति द्वारा रक्षित राजपुरुष ( पुत्रासः न ) राजा के पुत्रों के समान प्रिय होकर ( मातरं ) उत्पादक मातृभूमि को प्राप्त होकर ( देवासः ) विजयेच्छु जन ( बर्हिषः ) वृद्धिशील राष्ट्र तथा प्रजाजन के ( सानौ ) समुन्नत पदों पर ( सदन्तु ) विराजें। ( विश्वाची) समस्त जनों की बनी सभा ( विदथ्याम् ) संग्राम सम्बन्धिनी नीति को ( आ अनक्तु ) सर्वत्र प्रकट करे । हे ( अग्ने ) तेजस्विन् ! नायक ! ( देवताता ) यज्ञ और युद्ध में ( नः मृधः ) हमारे हिंसकों को ( मा कः ) मत उत्पन्न कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्दः – १ निचृत्त्रिष्टुप् । ४ त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्। २, ५ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
शासक माता के गुणों से युक्त हो
पदार्थ
पदार्थ - (विभृत्राः पुत्रासः मातरं न) = भरण योग्य पुत्र जैसे माता को प्राप्त होते हैं वैसे ही (विभृत्रा:) = विशेष भृति द्वारा रक्षित राज-पुरुष (पुत्रासः न) = राज-पुत्रों के समान प्रिय होकर, (मातरं) = मातृभूमि को प्राप्त होकर (देवासः) = विजयेच्छु जन (बर्हिषः) = राष्ट्र तथा प्रजाजन के (सानौ) = समुन्नत पदों पर (सदन्तु) = विराजें। (विश्वाची) = समस्त जनों की बनी सभा (विदथ्याम्) = संग्राम-सम्बन्धिनी नीति को (आ अनक्तु) = प्रकट करे। हे (अग्रे) = तेजस्विन्! (देवताता) = यज्ञ और युद्ध में (नः मृधः) = हमारे हिंसकों को (मा कः) = मत उत्पन्न कर
भावार्थ
भावार्थ- राजा पंचायत सभा की सम्मति से राष्ट्रोन्नति की नीति तैयार करे तथा मातृभूमि को समर्पित राजपुरुषों- सरकारी सेवा में नियुक्त पुरुषों को योग्यता के अनुसार समुन्नत पदों पर नियुक्त करे। कुशल नायक हिंसक राष्ट्रद्रोहियों को उत्पन्न न होने दे। -
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी विदुषी ब्रह्मचर्यपूर्वक संतानांना चांगले शिक्षण देऊन विद्येने उन्नत करते तीच माता उत्तम असते. जो संतानांचे हिंसक दोष दूर करतो, तोच पिता श्रेष्ठ असतो. जे मातेप्रमाणे माणसांचे पालन करतात तेच विद्वान प्रशंसनीय असतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Just as children in the mother’s lap rest blissfully, so let the conductors and organisers of yajna, all noble and brilliant souls, rise and reach the heights of skies. And then let universality of values adorn and sanctify our yajnic policy of governance and administration so that, O lord of light, fire and power, Agni, no one may violate us in our divine programme of development and progress.
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