ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 75/ मन्त्र 2
म॒हे नो॑ अ॒द्य सु॑वि॒ताय॑ बो॒ध्युषो॑ म॒हे सौभ॑गाय॒ प्र य॑न्धि । चि॒त्रं र॒यिं य॒शसं॑ धेह्य॒स्मे देवि॒ मर्ते॑षु मानुषि श्रव॒स्युम् ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हे । नः॒ । अ॒द्य । सु॒वि॒ताय॑ । बो॒धि॒ । उषः॑ । म॒हे । सौभ॑गाय । प्र । य॒न्धि॒ । चि॒त्रम् । र॒यिम् । य॒शस॑म् । धे॒हि॒ । अ॒स्मे इति॑ । देवि॑ । मर्ते॑षु । मा॒नु॒षि॒ । श्र॒व॒स्युम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
महे नो अद्य सुविताय बोध्युषो महे सौभगाय प्र यन्धि । चित्रं रयिं यशसं धेह्यस्मे देवि मर्तेषु मानुषि श्रवस्युम् ॥
स्वर रहित पद पाठमहे । नः । अद्य । सुविताय । बोधि । उषः । महे । सौभगाय । प्र । यन्धि । चित्रम् । रयिम् । यशसम् । धेहि । अस्मे इति । देवि । मर्तेषु । मानुषि । श्रवस्युम् ॥ ७.७५.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 75; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उषः) ब्राह्मे मुहुर्ते (बोधि) उत्थाय (सुविताय) अस्मै सुखाय प्रार्थय, हे परमात्मन् ! (महे) भवान् स्वमहत्तया (अद्य) अस्मिन् वर्तमाने दिने (नः) अस्मभ्यं (महे सौभगाय) महते सौभाग्याय (प्रयन्धि) प्राप्य (चित्रं रयिं यशसं धेहि) नानाविधानि धनानि यशश्च प्रयच्छतु (देवि) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (मर्त्तेषु) अस्मिन् मनुष्यलोके (अस्मे) अस्मान् (मानुषि) मनुष्याणां कर्मसु प्रवर्तयतु तथा चाहं (श्रवस्युम्) पुत्रपौत्रादिपरिजनेन युक्तो भवेयम् ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा उषःकाल में सौभाग्यप्राप्ति तथा धनप्राप्ति के लिए प्रार्थना करने का उपदेश करते हैं।
पदार्थ
(उषः) ब्रह्ममुहूर्त्त में (बोधि) उठकर (सुविताय) अपने सुख के लिए प्रार्थना करो कि हे परमात्मन् ! (महे) आप अपनी महत्ता से (अद्य) आज=सम्प्रति (नः) हमको (महे सौभगाय) बड़े सौभाग्य के लिए (प्रयन्धि) प्राप्त होकर (चित्रं रयिं यशसं धेहि) नाना प्रकार का धन और यश दें, (देवि) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (मर्तेषु) इस मनुष्यलोक में (अस्मे) हमें (मानुषि) मनुष्यों के कर्मों में प्रवृत्त करें और हम (श्रवस्युं) पुत्र-पौत्रादि परिवार से युक्त हों ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम प्रातःकाल में उठकर अपने सौभाग्य के लिए प्रार्थना करो कि हे परमात्मन् ! इस मनुष्यलोक में आप हमें नाना प्रकार का धन, यश, बल, तेज प्रदान करें, हमें पुत्र-पौत्रादि परिवार दें और हमको अपनी महत्ता से उच्च कर्मोंवाला बनायें ॥ तात्पर्य्य यह कि जो पुरुष प्रातःकाल में शुद्ध हृदय द्वारा परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं, वे अवश्य ऐश्वर्य्यसम्पन्न होकर सांसारिक सुख भोगते और अन्ततः मुक्ति को प्राप्त होते हैं ॥२॥
विषय
उषा के नाना दृष्टान्तों से उत्तम स्त्री वा वधू के कर्त्तव्यों का उपदेश ।
भावार्थ
हे ( मानुषि देवि ) मननशील, मनुष्य जाति के शुभ गुणों से युक्त स्त्रि ! तू ( नः ) हमें (अद्य) आज, ( महे सुविताय ) बड़े भारी सुख प्राप्त कराने के लिये ( बोधि ) हो । हे ( उषः ) प्रभात वेलावत् कान्तियुक्त एवं पति को प्रेम से चाहने वाली स्त्रि! तू भी (महे सौभगाय) बड़े भारी सोभाग्य प्राप्त करने के लिये ( प्र यन्धि ) उत्तम रीति से विवाह के बंधन में बंध । ( अस्मे ) हमारे (चित्रं रयिं ) आश्चर्यकर नाना एवं संग्रह योग्य ऐश्वर्य और ( मर्तेषु ) मनुष्यों के बीच ( यशसं ) यशस्वी ( श्रवस्युम् ) ज्ञानी पुत्र ( धेहि ) धारण कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५ विराट् त्रिष्टुप् । ३ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप् । ६, ७ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
स्त्री के कर्त्तव्य २
पदार्थ
पदार्थ- हे (मानुषि देवि) = मानवोचित शुभ गुणों से युक्त स्त्रि! तू (न:) = हमें (अद्य) = आज, (महे सुविताय) = बड़े सुख की प्राप्ति के लिये (बोधि) = हो । हे (उषः) = प्रभात - वेलावत् कान्तियुक्त, स्त्रि! तू भी (महे सौभगाय) = बड़े सौभाग्य प्राप्त करने के लिये (प्र यन्धि) = उत्तम रीति से विवाह के बन्धन में बँध। (अस्मे) = हमारे लिये (चित्रं रयिं) = आश्चर्यकर ऐश्वर्य और (मर्तेषु) = मनुष्यों के बीच (यशसं यशस्वी श्रवस्युम्) = ज्ञानी पुत्र धेहि धारण कर
भावार्थ
भावार्थ- विदुषी स्त्री उत्तम रीति से विवाह करके बलवान्, पराक्रमी, दीर्घायु तथा मधुरभाषी सन्तान को उत्पन्न करके राष्ट्र को प्रकाशित करे अर्थात् गौरवान्वित करे ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O dawn, light of divinity, at the rise of this new day inspire us to rise to higher faith and greater good fortune and lead us forward to achieve greater happiness and well being. O divine harbinger of new life and vision, bless us with wondrous wealth, honour and excellence and awaken mortal humanity to self recognition and the human condition with gratitude to Divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! तुम्ही प्रात:काळी उठून आपल्या सौभाग्याची प्रार्थना करा. हे परमात्मा! या मर्त्यलोकी तू आम्हाला नाना प्रकारचे धन, यश, बल व तेज प्रदान कर. आम्हाला पुत्र, पौत्र इत्यादी परिवार दे, तसेच आम्हाला महान उच्च कर्म करणारे बनव.
टिप्पणी
तात्पर्य हे, की जे पुरुष प्रात:काळी शुद्ध हृदयाद्वारे परमपिता परमात्म्याची प्रार्थना करतात ते अवश्य ऐश्वर्यसंपन्न बनून सांसरिक सुख भोगतात व शेवटी मुक्ती प्राप्त करतात. ॥२॥
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