ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 77/ मन्त्र 5
अ॒स्मे श्रेष्ठे॑भिर्भा॒नुभि॒र्वि भा॒ह्युषो॑ देवि प्रति॒रन्ती॑ न॒ आयु॑: । इषं॑ च नो॒ दध॑ती विश्ववारे॒ गोम॒दश्वा॑व॒द्रथ॑वच्च॒ राध॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मे इति॑ । श्रेष्ठे॑भिः । भा॒नुऽभिः । वि । भा॒हि॒ । उषः॑ । दे॒वि॒ । प्र॒ऽति॒रन्ती॑ । नः॒ । आयुः॑ । इष॑म् । च॒ । नः॒ । दध॑ती । वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒ । गोऽम॑त् । अश्व॑ऽवत् । रथ॑ऽवत् । च॒ । राधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मे श्रेष्ठेभिर्भानुभिर्वि भाह्युषो देवि प्रतिरन्ती न आयु: । इषं च नो दधती विश्ववारे गोमदश्वावद्रथवच्च राध: ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मे इति । श्रेष्ठेभिः । भानुऽभिः । वि । भाहि । उषः । देवि । प्रऽतिरन्ती । नः । आयुः । इषम् । च । नः । दधती । विश्वऽवारे । गोऽमत् । अश्वऽवत् । रथऽवत् । च । राधः ॥ ७.७७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 77; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उषः देवि) भो ज्योतिःस्वरूप दिव्यगुणविशिष्ट भगवन् ! (अस्मे) अस्मान् (श्रेष्ठेभिः भानुभिः) शोभनैः प्रकाशैः (वि भाहि) सम्यक् प्रकाशय (नः) अस्माकम् (आयुः प्रतिरन्ती) आयुर्वर्द्धयतु (विश्ववारे) भो जगदुपासनीय ! (नः) अस्माकम् (इषम्) ऐश्वर्यं (दधती) दधातु (च) पुनः (गोमत्) गोभिरुपेतम् (अश्ववत्) अश्वैरुपेतम् (रथवत्) अनेकधा यानैरुपेतं (च) तथा (राधः) इत्थं सर्वविधधनं सम्पादयतु ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(उषः देवि) हे ज्योतिस्वरूप तथा दिव्यगुणसम्पन्न परमेश्वर ! (अस्मे) हमें (श्रेष्ठेभिः भानुभिः) सुन्दर प्रकाशों से (विभाहि) भले प्रकार प्रकाशयुक्त करें, (नः) हमारी (आयुः प्रतिरन्ती) आयु को बढ़ावें, (विश्ववारे) हे विश्व के उपास्यदेव ! (नः) हमें (इषं) ऐश्वर्य्य (दधती) धारण करावें (च) और (गोमत्) गौओं से युक्त (अश्ववत्) अश्वोंवाला (रथवत्) यानोंवाला (च) और (राधः) सम्पूर्ण धनोंवाला करें ॥५॥
भावार्थ
मन्त्र का भाव स्पष्ट है। इसमें यह वर्णन किया है कि हे परमात्मन् ! आप हमें दीर्घ आयु दें और सब प्रकार के ऐश्वर्य्य से सम्पन्न करें ॥ इस मन्त्र में आयु की प्रार्थना करना इस बात को सिद्ध करता है कि सब प्रकार के ऐश्वर्य्यों में आयु मुख्य है, क्योंकि आयु के बिना मनुष्य ऐश्वर्य्य का भोग नहीं कर सकता, इसी अभिप्राय से “जीवेम शरदः शतं” इस मन्त्र में सौ वर्ष तक जीवन धारण करने की प्रार्थना की गई है अर्थात् साधारण आयु सौ वर्ष पर्य्यन्त है। इसी मन्त्र में आगे “शरदः शतात्” सौ वर्ष से अधिक जीवन की प्रार्थना भी है, जिसका तात्पर्य्य यह है कि पुरुष योगसम्पन्न तथा सदाचारयुक्त हुआ सौ वर्ष से अधिक भी जीवन धारण कर सकता है, परन्तु यह अवस्था असाधारण है, प्रत्येक को प्राप्त नहीं हो सकती, इसी अभिप्राय से वेद में परमात्मा ने सौ वर्ष का नियम रखा है। सारांश यह है कि जितना पुरुष ब्रह्मचारी तथा सदाचारी रहेगा, उतनी ही उसकी आयु विशेष होगी और जितना अधिक दुराचार में प्रवृत्त रहेगा, उतनी ही आयु कम होगी, जैसा कि वर्त्तमानावस्था में प्रत्यक्ष देखा जाता है, अत एव सिद्ध है कि ऐश्वर्य्य भोगने के लिए आयु का होना आवश्वक है और आयु बढ़ाने के लिए एकमात्र सदाचार का अवलम्बन करना मनुष्यमात्र का कर्त्तव्य है, यह वेदभगवान् का उपदेश है ॥५॥
विषय
उनके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( उषः देवि ) प्रभात वेला के समान शुभगुणों से युक्त विदुषि ! तू ( श्रेष्ठेभिः ) अति उत्तम किरणों के समान श्रेष्ठ गुणों से ( वि भाहि ) विशेष रूप से चमक । तू ( नः ) हमें ( आयुः प्रतिरन्ती ) दीर्घ जीवन प्रदान करती हुई, और हे ( विश्ववारे ) विश्व अर्थात् हृदय में प्रविष्ट पतिद्वारा एकमात्र वरण करने योग्य ! ( नः ) हमारी ( इषं ) अन्न और ( गोमत् अश्वावत् रथवत् च ) गौओं, अश्वों और रथों से समृद्ध ( राधः ) धन समृद्धि को ( दधती ) धारण करती हुई, स्वामिनी होकर ( वि भाहि ) विशेष रूप से चमक ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवताः॥ छन्दः—१ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ निचृत्: त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
विदुषी स्त्री
पदार्थ
पदार्थ- हे (उषः देवि) = शुभ गुणों से युक्त विदुषि! तू (श्रेष्टेभिः) = श्रेष्ठ गुणों से (वि भाहि) = विशेष चमक। तू (नः) = हमें (आयुः प्रतिरन्ती) = दीर्घ जीवन देती हुई और हे (विश्ववारे) = विश्व अर्थात् हृदय में प्रविष्ट पति द्वारा एकमात्र वरणीय! (नः) = हमारी (इषं) = अन्न और (गोमत् अश्वावत् रथवत् च) = गौओं, अश्वों और रथों से युक्त (राधः) = समृद्धि को (दधती) = धारण करती हुई, (वि भाहि) = विशेष चमक।
भावार्थ
भावार्थ- विदुषी स्त्री अपने श्रेष्ठ गुणों व व्यवहार से दूसरों के हृदय को प्रभावित करके अपने ज्ञानोपदेश से लोगों को पुरुषार्थी बनाकर समस्त भौतिक ऐश्वर्य से समृद्ध बनावे।
इंग्लिश (1)
Meaning
O brilliant dawn, blissful light of Divinity, shine for us with the best and highest values of existence by the lights of the sun, giving us good health and longevity. O cherished benefactor of the world, bear and bring for us food and energy, intelligence and all wealth of life abundant with lands, cows and brilliant thought and speech, horses and advancement, and an efficient progressive social order for our success and fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
मंत्राचा भाव स्पष्ट केलेला आहे. हे परमात्मा! तू आम्हाला दीर्घ आयुष्य दे व सर्व प्रकारच्या ऐश्वर्याने संपन्न कर.
टिप्पणी
या मंत्रात आयुची प्रार्थना करण्यामुळे हे सिद्ध होते, की सर्व प्रकारच्या ऐश्वर्यात आयू मुख्य आहे. कारण आयूशिवाय ऐश्वर्याचा भोग घेता येत नाही. याच अभिप्रायाने ‘जीवेम शरद: शतं’ या मंत्रात शंभर वर्षे जीवन धारण करण्याची प्रार्थना केलेली आहे. अर्थात्, साधारण आयू शंभर वर्षांपर्यंत आहे. याच मंत्रात पुढे ‘शरद: शतात्’ शंभर वर्षांहूनही अधिक जीवनाची प्रार्थनाही आहे. याचे तात्पर्य असे, की मनुष्य योगसंपन्न व सदाचारयुक्त बनून शंभर वर्षांपेक्षाही अधिक जीवन धारण करू शकतो; परंतु ही अवस्था असाधारण आहे. प्रत्येकाला प्राप्त होऊ शकत नाही. याच अभिप्रायाने वेदात परमेश्वराने शंभर वर्षांचा नियम ठेवलेला आहे. सारांश हा, की जितका माणूस ब्रह्मचारी व सदाचारी असेल तितकी आयू अधिक असेल. दुराचारी असेल तर आयू कमी होईल. जसे वर्तमानावस्थेमध्ये प्रत्यक्ष दिसते. यावरून हे सिद्ध होते, की ऐश्वर्य भोगण्यासाठी आयू असणे आवश्यक आहे व आयूची वृद्धी करण्यासाठी एकमेव सदाचाराचे अवलंबन करणे माणसाचे कर्तव्य आहे. हा वेद भगवानाचा उपदेश आहे ॥५॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal