ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 82/ मन्त्र 3
अन्व॒पां खान्य॑तृन्त॒मोज॒सा सूर्य॑मैरयतं दि॒वि प्र॒भुम् । इन्द्रा॑वरुणा॒ मदे॑ अस्य मा॒यिनोऽपि॑न्वतम॒पित॒: पिन्व॑तं॒ धिय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ । अ॒पाम् । खानि॑ । अ॒तृ॒न्त॒म् । ओ॒ज॒सा । सूर्य॑म् । ऐ॒र॒य॒त॒म् । दि॒वि । प्र॒ऽभुम् । इन्द्रा॑वरुणा । मदे॑ । अ॒स्य॒ । मा॒यिनः॑ । अपि॑न्वतम् । अ॒पितः॑ । पिन्व॑तम् । धियः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्वपां खान्यतृन्तमोजसा सूर्यमैरयतं दिवि प्रभुम् । इन्द्रावरुणा मदे अस्य मायिनोऽपिन्वतमपित: पिन्वतं धिय: ॥
स्वर रहित पद पाठअनु । अपाम् । खानि । अतृन्तम् । ओजसा । सूर्यम् । ऐरयतम् । दिवि । प्रऽभुम् । इन्द्रावरुणा । मदे । अस्य । मायिनः । अपिन्वतम् । अपितः । पिन्वतम् । धियः ॥ ७.८२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 82; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्रावरुणा) भो राजपुरुषाः ! यूयम् (अस्य, मदे) अस्मिन् राज्यप्रभुत्वे (धियः, पिन्वतम्) स्वमात्मानं कर्मयोगेण पोषयत (अनु) तत्पश्चात् (ओजसा) स्वतेजसा (अपाम्, खानि) शत्रूणां जलदुर्गाणि (आ, अतृन्तम्) सम्यक् विमर्द्य (दिवि, प्रभुम्) दिनाधिपं (सूर्यम्) सूर्यं (ऐरयतम्) स्वधूम्रशरैराच्छाद्य (मायिनः) मायाविनः (अपितः) सर्वतः (अपिन्वतम्) पराजयत ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रावरुणा) हे राजपुरुषो ! तुम (अस्य, मदे) इस राज्यप्रभुत्व में (धियः, पिन्वतं) अपने आपको कर्मयोग से पुष्ट करो, (अनु) तदनन्तर (ओजसा) अपने तेज से (अपां, खानि) शत्रु के जलदुर्गों को (आ, अतृन्तं) भले प्रकार नष्ट-भ्रष्ट करके (दिवि, प्रभुं) दिन के प्रभु (सूर्य्य) सूर्य को (ऐरयतं) अपने धूम्र-बाणों से आच्छादन कर (मायिनः) मायावी शत्रुओं को (अपितः) सब ओर से (अपिन्वतं) परास्त करो ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजपुरुषो ! तुम अपने उग्र कर्मों द्वारा शक्तिसम्पन्न होकर मायावी शत्रुओं का मर्दन करो अर्थात् प्रथम अपनी जलयन्त्रविद्या द्वारा उनके जलदुर्गों को विजय करो, तदनन्तर अपनी पदार्थविद्या से सूर्य्य के तेज को आच्छादन करके अर्थात् यन्त्रों द्वारा दिन को रात्रि बनाकर शत्रुओं पर विजय करो। जो संसार में न्याय का भङ्ग करते हुए अपनी माया से प्रजाओं में नाना प्रकार की पीड़ा उत्पन्न करते हैं, उनका सर्वनाश तथा श्रेष्ठों का रक्षण करना तुम्हारा परम कर्त्तव्य है ॥३॥
विषय
उन के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
आप दोनों ( अपां ) प्रात अधीनस्थ प्रजाओं के यातायात के लिये ( खानि ) जलों के मार्गों के समान ही नाना मार्ग ( अनु अतृन्तम् ) उनके अनुकूल रूप से बनाते हो, और ( दिवि ) शासन और व्यवहार क्षेत्र में ( प्रभुम् ) अधिक सामर्थ्यवान् ( सूर्यम् ) सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष को ( ऐरयतम् ) प्रेरित करते हो। ( अस्य ) इस ( मायिनः ) प्रज्ञावान् और शिल्पशक्ति के स्वामी के ( मदे ) प्रसन्न, तृप्त वा सन्तुष्ट रहने पर ही ( इन्द्रा वरुणा ) पूर्व कथित इन्द्र और वरुण, अर्थ और बल अध्यक्ष जन ( अपितः ) अरक्षित प्रजाओं को भी ( अपिन्वतम् ) सींचते बढ़ाते और ( धियः पिन्वतम् ) नाना कर्मों और शिल्पों को भी सींचते, पुष्ट करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्रावरुणौ देवते॥ छन्दः—१, २, ६, ७, ९ निचृज्जगती। ३ आर्ची भुरिग् जगती। ४,५,१० आर्षी विराड् जगती। ८ विराड् जगती॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
इन्द्र-वरुण के कार्य
पदार्थ
पदार्थ- आप दोनों (अपां) = प्रजाओं के यातायात के लिये (खानि) = जल मार्गों के समान नाना मार्ग (अनु अतृन्तम्) = उनके अनुकूल बनाते हो और (दिवि) = शासन और व्यवहार में (प्रभुम्) = सामर्थ्यवान् - (सूर्यम्) = सूर्य-समान तेजस्वी पुरुष को (ऐरयतम्) = प्रेरित करते हो । (अस्य) = इस (मायिनः) = प्रजावान् और शिल्पशक्ति के स्वामी के (मदे) = सन्तुष्ट रहने पर ही (इन्द्रा वरुणा) = इन्द्र और वरुण, अर्थ और बल के अध्यक्ष जन (अपितः) = अरक्षित प्रजाओं को भी (अपिन्वतम्) = बढ़ाते और (धियः पिन्वतम्) = नाना कर्मों, शिल्पों को पुष्ट करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - राजा और सेनापति दोनों प्रजाओं के लिए यातायात के विभिन्न मार्गों (जल मार्ग, आकाश मार्ग तथा सड़क मार्ग) को निष्कंटक करें। पिछड़े वर्ग तथा जंगली जातियों को भी नाना प्रकार के शिल्प आदि कार्यों का प्रशिक्षण देकर राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने की योजना बनावें।
इंग्लिश (1)
Meaning
With your light and lustre, O Indra and Varuna, sovereign ruler and lord of independent judgement, state and the individual, general will and collective power and individual will and autonomous judgement, together you break open the flood gates of waters and national energy in social dynamics. You raise the social brilliance in the regions of culture and enlightenment to the highest degrees of freedom and sovereignty.$O lords of power and judgement, together in the joy of this wonderful ruling order, you replenish the dry streams of life to flow with fresh energy and energise our bored will and intellect with new vision, ambition and resolution all round.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे राजपुरुषांनो! तुम्ही आपल्या उग्र कर्माद्वारे शक्तिसंपन्न बनून मायावी (ढोंगी) शत्रूंचे मर्दन करा. अर्थात, प्रथम आपल्या जलयंत्राद्वारे त्यांच्या जलदुर्गांवर विजय मिळवा. त्यानंतर आपल्या पदार्थ विद्येने सूर्याच्या तेजाला आच्छादित करून, यंत्राद्वारे दिवसाला रात्र बनवून शत्रूवर विजय प्राप्त करा. जे जगात न्यायभंग करून आपल्या ढोंगाने प्रजेला विविध प्रकारचा उपद्रव देतात त्यांचा सर्वनाश करून श्रेष्ठांचे रक्षण करणे तुमचे परम कर्तव्य आहे.॥३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal