Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 82 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 82/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रावरुणौ छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    म॒हे शु॒ल्काय॒ वरु॑णस्य॒ नु त्वि॒ष ओजो॑ मिमाते ध्रु॒वम॑स्य॒ यत्स्वम् । अजा॑मिम॒न्यः श्न॒थय॑न्त॒माति॑रद्द॒भ्रेभि॑र॒न्यः प्र वृ॑णोति॒ भूय॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हे । शु॒ल्काय॑ । वरु॑णस्य । नु । त्वि॒षे॑ । ओजः॑ । मि॒मा॒ते॒ इति॑ । ध्रु॒वम् । अ॒स्य॒ । यत् । स्वम् । अजा॑मिम् । अ॒न्यः । श्न॒थय॑न्तम् । आ । अति॑रत् । द॒भ्रेभिः॑ । अ॒न्यः । प्र । वृ॒णो॒ति॒ । भूय॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महे शुल्काय वरुणस्य नु त्विष ओजो मिमाते ध्रुवमस्य यत्स्वम् । अजामिमन्यः श्नथयन्तमातिरद्दभ्रेभिरन्यः प्र वृणोति भूयसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महे । शुल्काय । वरुणस्य । नु । त्विषे । ओजः । मिमाते इति । ध्रुवम् । अस्य । यत् । स्वम् । अजामिम् । अन्यः । श्नथयन्तम् । आ । अतिरत् । दभ्रेभिः । अन्यः । प्र । वृणोति । भूयसः ॥ ७.८२.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 82; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वरुणस्य) वारुणास्त्रस्य प्रयोक्ता (नु) निश्चयं (महे, शुल्काय) महत ऐश्वर्याय (त्विषे, ओजः) स्वेन तेजसा बलेन च (मिमाते) शत्रूञ्जयति (अतिरत्) अभिहन्ति (अस्य) अस्य शत्रोः (यत्) यत् किञ्चित् (ध्रुवम्) स्थिरं (स्वम्) धनमस्ति तत् (अजामिम्) अबन्धुं=स्वीयं करोति (श्नथयन्तम्) स्वप्रतिपक्षिणं च जय (अन्यः) अन्यद्बलं च हन्ति (अन्यः) अन्यैः (दभ्रेभिः) अल्पैरेव साधनैः (भूयसः) बहून् शत्रून् (प्र, वृणोति) स्ववशमानयति ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वरुणस्य) वारुणास्त्र का प्रयोग करनेवाला पुरुष (नु) निश्चय करके (महे, शुल्काय) बड़े ऐश्वर्य्य के लिए (त्विषे, ओजः) अपने तेज तथा बल द्वारा (मिमाते) शीघ्र ही शत्रु का (अतिरत्) हनन करता, (अस्य) उनका (यत्) जो (ध्रुवं) निश्चल (स्वं) धन है, वह (अजामिम्) शत्रु को (श्नथयन्त) नाश कर देता और (अन्यः) अन्य जो बल है, वह (अतिरत्) हनन करता है, वह (अन्यः) अन्य (दभ्रेभिः) अल्प साधनों से ही (भूयसः) बहुत से शत्रुओं को (प्र, वृणोति) भले प्रकार अपने वश में कर लेता है ॥६॥

    भावार्थ

    वारुणास्त्र का प्रयोग करनेवाला विद्वान् अल्प साधनों से ही शत्रुसेना का विजय करके उसकी सामग्री पर अपना अधिकार जमा लेता है। उसका शस्त्र-अस्त्ररूप धन शत्रुओं के नाश का कारण होता है अर्थात् उसके इस अपूर्व धन के सम्मुख कोई शत्रु नहीं ठहर सकता, वह अनेक शत्रुओं को विजय करके बड़ा ऐश्वर्य्यसम्पन्न होता है ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    इन्द्र, वरुण, दण्डकर्त्ता और दण्डपति ।

    भावार्थ

    ( अस्य वरुणस्य ) इस 'वरुण' का ( यत् ) जो ( ध्रुवम् स्वम् ) स्थिर धन सम्पदा है उस ( महे शुल्काय ) बड़े भारी ऐश्वर्य की वृद्धि करने और ( त्विषे ) तेज की वृद्धि करने के लिये ( नु ) भी 'इन्द्र और वरुण' दोनों ही ( ओजः ) बल और पराक्रम करते हैं । कैसा पराक्रम करते हैं कि—( अन्यः ) एक तो ( श्रथयन्तम् अजामिम् ) हिंसा करने वाले शत्रु को ( आ अतिरत् ) सब ओर से नाश करता है और ( अन्यः ) दूसरा ( दभ्रेभिः ) हिंसाकारी साधनों शस्त्रास्त्रों से ( भूयसः प्र वृणोति ) बहुत से शत्रुओं को आच्छादित करता, घेरता और उनको दूर से ही वारण करता है । अर्थात् एक का कर्म है आक्रमणकारी को दण्ड देना, दूसरे का कार्य है दूर से ही उसको वारण करना ।

    टिप्पणी

    'आ अतिरत् इति इन्द्रः प्रवृणोति इति वरुणः । इति वेदोक्तनिर्वचनम् ।'

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्रावरुणौ देवते॥ छन्दः—१, २, ६, ७, ९ निचृज्जगती। ३ आर्ची भुरिग् जगती। ४,५,१० आर्षी विराड् जगती। ८ विराड् जगती॥ दशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    इन्द्र-वरुण का पराक्रम

    पदार्थ

    पदार्थ - (अस्य वरुणस्य) = इस 'वरुण' की (यत्) = जो (ध्रुवम् स्वम्) = स्थिर सम्पदा है उस (महे शुल्काय) = बड़े ऐश्वर्य और (त्विषे) = तेजोवृद्धि के लिये (नु) = 'इन्द्र और वरुण' दोनों ही (ओजः) = पराक्रम करते हैं। कैसे करते हैं कि- (अन्तः) = एक तो (श्नथयन्तम् अजामिम्) = हिंसा करनेवाले शत्रु को (आ अतिरत्) = सब ओर से नष्ट करता है और (अन्य:) = दूसरा (दभ्रेभिः) = हिंसाकारी शस्त्रास्त्रों से (भूयसः प्र वृणोति) = बहुत शत्रुओं को आच्छादित करता और उनको दूर से ही वारण करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र के स्थिर ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए राजा और सेनापति दोनों मिलकर पराक्रम करें। राजा शासन व्यवस्था के द्वारा राष्ट्र के आन्तरिक शत्रुओं को नष्ट करे और सेनापति शस्त्रास्त्रों के द्वारा बाहरी शत्रुओं से राष्ट्र की रक्षा करे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the greatness and rising prosperity of the social order of peace and progress, Indra and Varuna augment its power and lustre and preserve and increase what its basic and consolidated national asset is. One of them, Indra, overthrows its unfriendly and hostile opponents who try to sabotage and arrest its progress, and the other, Varuna, even with minimum but convincing power, subdues many devastating critics.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    वारुणास्त्राचा प्रयोग करणारा विद्वान अल्प साधनांनीच शत्रूसेनेवर विजय प्राप्त करून त्यांच्या वस्तूंवर आपला अधिकार करून घेतो. त्याचे शस्त्र अस्त्ररूपी धन शत्रूंच्या नाशाचे कारण असते. त्यांच्या या अपूर्व धनासमोर शत्रू थांबू शकत नाही. तो अनेक शत्रूंवर विजय प्राप्त करून अत्यंत ऐश्वर्यसंपन्न बनतो. ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top