ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 84/ मन्त्र 5
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - इन्द्रावरुणौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒यमिन्द्रं॒ वरु॑णमष्ट मे॒ गीः प्राव॑त्तो॒के तन॑ये॒ तूतु॑जाना । सु॒रत्ना॑सो दे॒ववी॑तिं गमेम यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम् । इन्द्र॑म् । वरु॑णम् । अ॒ष्ट॒ । मे॒ । गीः । प्र । आ॒व॒त् । तो॒के । तन॑ये । तूतु॑जाना । सु॒ऽरत्ना॑सः । दे॒वऽवी॑तिम् । ग॒मे॒म॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इयमिन्द्रं वरुणमष्ट मे गीः प्रावत्तोके तनये तूतुजाना । सुरत्नासो देववीतिं गमेम यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठइयम् । इन्द्रम् । वरुणम् । अष्ट । मे । गीः । प्र । आवत् । तोके । तनये । तूतुजाना । सुऽरत्नासः । देवऽवीतिम् । गमेम । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.८४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 84; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मे) मम (इयम्) इयमुच्चार्यमाणा (गीः) वेदवाग् (इन्द्रं वरुणम्) सर्वैश्वर्यशालिनं सर्वैः सम्भजनीयं च परमात्मानम् (अष्ट) अश्नुतां व्याप्नोतु (तूतुजाना) मया प्रेर्यमाणेयं वाणी (तोके) पुत्रे (तनये) पौत्रे च विषये (प्र, आवत्) प्ररक्षतु, वयं च (सुरत्नासः) शोभनधनसम्पन्नाः सन्तः (देववीतिम्) विदुषां यज्ञशालां (गमेम) प्राप्नुयाम, हे भगवन् ! (यूयम्) भवन्तः (नः) अस्मान् (स्वस्तिभिः) आशीर्वाग्भिः (सदा) निरन्तरं (पात) रक्षन्तु ॥५॥ इति चतुरशीतितमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मे) मेरी (इयं) यह (गीः) वेदरूप वाणी (इन्द्रं, वरुणं) सर्वैश्वर्य्ययुक्त तथा सर्वोपरि परमात्मा को (अष्ट) प्राप्त हो, (तूतुजाना) यह ईश्वरीय वाणी (तोके) पुत्र (तनये) पौत्र के लिए (प्र, आवत्) भले प्रकार रक्षा करे और हम लोग (सुरत्नासः) धनादि ऐश्वर्य्यसम्पन्न होकर (देववीतिम्) विद्वानों की यज्ञशालाओं को (गमेम) प्राप्त हों और हे परमात्मन् ! (यूयं) आप (नः) हमको (स्वस्तिभिः) आशीर्वादरूप वाणियों से (सदा) सदा (पात) पवित्र करें ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यजमान की ओर से प्रार्थना कथन की गई है कि हे भगवन् ! हमारा किया हुआ स्वाध्याय तथा वैदिककर्मों का अनुष्ठान, यह सब आप ही का यश है, क्योंकि इन्हीं कर्मों के अनुष्ठान से हमारे पुत्र-पौत्रादि सन्तानों की वृद्धि होती और हम ऐश्वर्य्यसम्पन्न होकर आपके भक्तिभाजन बनते हैं अर्थात् वैदिककर्मों के अनुष्ठान द्वारा ही मनुष्य को पुत्र-पौत्रादि सन्तति प्राप्त होती और इसी से धनादि ऐश्वर्य्य की वृद्धि होती है, इसलिए जिज्ञासुओं को उचित है कि वह धनप्राप्ति तथा ऐश्वर्य्यवृद्धि के लिए वैदिक कर्मों का निरन्तर अनुष्ठान करें और सन्तति-अभिलाषियों के लिए भी यही कर्म उपादेय है ॥ यह ८४वाँ सूक्त और छठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
उत्तम शासकों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( मे ) मेरी ( इयं गी: ) यह वाणी ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुनाशक और ( वरुणं ) श्रेष्ठ पुरुष को ( अष्ट ) लक्ष्य करके हो । वह ( तूतुजाना ) ज्ञान का बराबर प्रदान करती हुई ( तनये तोके ) पुत्र पौत्रादि तक को ( प्र अवत् ) प्राप्त हो । ( वयम् ) हम ( सु-रत्नासः ) शुभ रत्नों और रम्य गुणों को धारण करते हुए ( देववीतिं गमेम ) विद्वानों के ज्ञान प्रकाश, रक्षा और उनकी सत्कामना को ( गमेम ) प्राप्त करें। हे विद्वान् लोगो ! ( यूयं नः सदा स्वस्तिभिः पात ) आप लोग हमें सदा उत्तम आशीर्वादों और सुखजनक उपायों से रक्षा करें । इति षष्ठो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि: ॥ इन्द्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ४, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
श्रेष्ठ की प्रशंसा
पदार्थ
पदार्थ- (मे) = मेरी (इयं गी:) = यह वाणी इन्द्रंशत्रुनाशक और (वरुणं) = श्रेष्ठ पुरुष को अष्टलक्ष्य करके हो। वह (तूतुजाना) = ज्ञान को देती हुई (तनये तोके) = पुत्र-पौत्रादि तक को (प्र अवत्) = प्राप्त हो । (वयम्) = हम (सु-रत्नासः) = शुभ रत्नों और रम्य गुणों को धारण करते हुए (देववीतिं गमेम) = विद्वानों के ज्ञान - प्रकाश और सत्कामना को (गमेम) = प्राप्त करें। हे विद्वान् लोगो! (यूयं नः सदा स्वस्तिभिः पात) = हमारी सदा उत्तम साधनों से पालना करो।
भावार्थ
भावार्थ- मनुष्य जनों को योग्य है कि विद्वानों की संगति में रहकर ज्ञान का प्रकाश एवं सप्रेरणाएँ प्राप्त करें। अपनी वाणी से सत्य का मण्डन और असत्य का खण्डन करें। पूर्ण पुरुषार्थ से धन प्राप्त करके अपने पुत्र व पौत्रों को भी सत्यपथ पर चलने की प्रेरणा प्रदान करें। अगले सूक्त के ऋषि, देवता यही हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Let my voice of adoration reach Indra and Varuna at the earliest and bring protection and progress for our children and grand children at the fastest. Let us all blest with the jewels of life reach the house of yajna and attain the blessings of Indra and Varuna. O divinities of nature and humanity, saints and sages, protect and promote us with all modes and means of safety, security and all round well being of life for all time.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात यजमानाकडून प्रार्थना केली गेलेली आहे. हे भगवान! आम्ही केलेला स्वाध्याय व वैदिक कर्मांचे अनुष्ठान हे सर्व तुझे यश आहे. कारण याच कर्माच्या अनुष्ठानाने आमचे पुत्र-पौत्र इत्यादी संतानांची वृद्धी होते व आम्ही ऐश्वर्यसंपन्न होऊन तुझे भक्तिभाजन बनतो. अर्थात्, वैदिक कर्माच्या अनुष्ठानाद्वारेच माणसाला पुत्र-पौत्र इत्यादी संतती प्राप्त होते. त्यामुळेच धन इत्यादी ऐश्वर्य वाढते. त्यासाठी जिज्ञासूंनी धनप्राप्ती व ऐश्वर्यप्राप्तीसाठी वैदिक कर्माचे निरंतर अनुष्ठान करावे. संततीची इच्छा असणाऱ्यासाठीही हेच उपादेय आहे. ॥५॥
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