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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 90/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते स॒त्येन॒ मन॑सा॒ दीध्या॑ना॒: स्वेन॑ यु॒क्तास॒: क्रतु॑ना वहन्ति । इन्द्र॑वायू वीर॒वाहं॒ रथं॑ वामीशा॒नयो॑र॒भि पृक्ष॑: सचन्ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । स॒त्येन । मन॑सा । दीध्या॑नाः । स्वेन॑ । यु॒क्तासः॑ । क्रतु॑ना । व॒ह॒न्ति॒ । इन्द्र॑वायू॒ इति॑ । वी॒र॒ऽवाह॑म् । रथ॑म् । वा॒म् । ई॒शा॒नयोः॑ । अ॒भि । पृक्षः॑ । स॒च॒न्ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते सत्येन मनसा दीध्याना: स्वेन युक्तास: क्रतुना वहन्ति । इन्द्रवायू वीरवाहं रथं वामीशानयोरभि पृक्ष: सचन्ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । सत्येन । मनसा । दीध्यानाः । स्वेन । युक्तासः । क्रतुना । वहन्ति । इन्द्रवायू इति । वीरऽवाहम् । रथम् । वाम् । ईशानयोः । अभि । पृक्षः । सचन्ते ॥ ७.९०.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 90; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्युद्वाय्वोरुभयोर्विद्वांसो वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (इन्द्रवायू) हे विद्युद्विद्यावेत्तः ! वायुविद्यावेत्तश्च (वाम्) युवयोः (अभि) सर्वतः (पृक्षः) ऐश्वर्याणि (सचन्ते) सङ्गच्छन्ते तथा च भवन्निर्मितानि (रथम्) यानानि (वीरवाहम्) वीर्यवन्ति भवन्ति तथा (ते) तानि यानानि (सत्येन) यथार्थेन (मनसा) चेतना (दीध्यानाः) दीप्यमानानि (स्वेन, युक्तासः) ऐश्वर्ययुक्तानि तानि (क्रतुना) यज्ञेन (वहन्ति) दिव्यैश्वर्यं प्रापयन्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्युद्विद्यावेत्ता और वायुविद्यावेत्ता दोनों प्रकार को विद्यावेत्ता विद्वानों के गुण वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्द्रवायू) हे विद्युत् और वायुविद्या को जाननेवाले विद्वानों ! (वाम्) आप लोगों को (ईशानाय) जो ईश्वर की विद्या जाननेवाले हैं, आपको अभी चारों ओर से (पृक्षः) ऐश्वर्य्य (सचन्ते) संगत होते हैं और आपके बनाये हुए (रथं) यान (वीरवाहम्) वीरता को प्राप्त करनेवाले होते हैं और (ते) वे (सत्येन) सत्य (मनसा) मन से (दीध्यानाः) दीप्त हुए (स्वेन युक्तासः) ऐश्वर्य्य के साथ जुड़े हुए (क्रतुना) यज्ञों द्वारा (वहन्ति) उत्तम ऐश्वर्य्य को प्राप्त कराते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! विद्युत् विद्या के जाननेवाले तथा वायु आदि सूक्ष्म तत्त्वों के जाननेवाले विद्वान् जिन यानों को बनाते हैं, वे यान उत्तम से उत्तम ऐश्वर्यों को प्राप्त कराते हैं और वीर लोगों को नभोमण्डल में ले जानेवाले एकमात्र वही यान कहला सकते हैं, अन्य नहीं ॥५॥

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    विषय

    स्वामियों, शासकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( ते ) वे पूर्वोक्त ज्ञानवान्, विद्वान् लोग (सत्येन मनसा ) सत्य चित्त और सत्य यथार्थ ज्ञान से ( दीध्यानाः ) चमकते हुए वा सत्य चित्त से ध्यान करते हुए ( स्वेन युक्तासः ) अपने आत्मसामर्थ्य और ऐश्वर्य से युक्त होकर ( दीध्यानाः ) चमकते हुए वा अपने आत्मयोग का अभ्यास करते, ( दीध्यानाः ) प्रभु का ध्यान करते हुए ( युक्तासः ) नियुक्त, योगी होकर (स्वेन क्रतुना) अपने ज्ञान और बल से ही ( वहन्ति ) रथ को अश्वों के समान देह को धारण करते हैं । हे (इन्द्र-वायू) ऐश्वर्यवन् ! सत्यदर्शिन् ! बलवन् ! ज्ञानवन् ! ( ईशानयोः वाम् ) स्वामी, शासक रूप आप दोनों (वीरवाहं रथं) वीरों को धारण करने वाले रथवत् रमणीय उपदेश वा स्थिर पद वा राष्ट्र को ( वहन्ति ) धारण करते और सञ्चालित करते हैं और वे ( पृक्षः ) परस्पर प्रीतियुक्त होकर ( अभि सचन्ते ) परस्पर समवाय बनाकर रहते हैं । वा ( पृक्ष: अभि सचन्ते ) अन्न, वृत्ति को प्राप्त करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—४ वायुः। ५—७ इन्द्रवायू देवते । छन्दः—१, २, ७ विराट् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् । ४, ५, ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    आत्म योगी राष्ट्र को धारें

    पदार्थ

    पदार्थ- (ते) = वे ज्ञानवान्, विद्वान् लोग (सत्येन मनसा) = सत्य (चित्त) = और सत्य ज्ञान से (दीध्याना:) = चमकते हुए (स्वेन युक्तासः) = अपने आत्मसामर्थ्य से युक्त होकर (दीध्यानाः) = चमकते हुए वा आत्मयोग का अभ्यास करते हुए (युक्तासः) = योगी होकर (स्वेन क्रतुना) = अपने ज्ञान और बल से (वहन्ति) = रथ को अश्वों के तुल्य देह को धारण करते हैं। हे (इन्द्र-वायू) = ऐश्वर्यवन् ! ज्ञानवन् ! (ईशानयोः वाम्) = शासक रूप आप दोनों के (वीरवाहं रथं) = वीरों के धारक, रथवत् रमणीय उपदेश वा स्थिर पद वा राष्ट्र को (वहन्ति) = धारण करते और सञ्चालित करते हैं और वे (पृक्षः) = प्रीतियुक्त होकर (अभि सचन्ते) = परस्पर समवाय बनाकर रहते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- ज्ञानी लोग सत्य ज्ञान से युक्त चित्तवाले होकर आत्म साधना करके योगी बनें। ऐसे योगीजन राजा व सेनापति आदि पदों को प्राप्त करके राष्ट्र को धारण करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    They, Indra and Vayu, electric and wind energies, kindled, energised and developed by sincere application of the scholar’s mind and, together augmented with homogeneous means and materials, give power, by yajnic combustion, to the chariot for transport of the brave. O scientists of wind and electricity, ruling the field of energy, all friends, associates and colleagues in the field join you in kindred programmes.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! विद्युत विद्या जाणणारे व वायू इत्यादी सूक्ष्म तत्त्वांना जाणणारे विद्वान जी याने बनवितात, ती याने उत्तमात उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करवितात व वीर लोकांना नभोमंडलात नेणारी हीच याने असतात, इतर नव्हे! ॥५॥

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