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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 90/ मन्त्र 7
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अर्व॑न्तो॒ न श्रव॑सो॒ भिक्ष॑माणा इन्द्रवा॒यू सु॑ष्टु॒तिभि॒र्वसि॑ष्ठाः । वा॒ज॒यन्त॒: स्वव॑से हुवेम यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्व॑न्तः । न । श्रव॑सः । भिक्ष॑माणाः । इ॒न्द्र॒वा॒यू इति॑ । सु॒स्तु॒तिऽभिः॑ । वसि॑ष्ठाः । वा॒ज॒ऽयन्तः॑ । सु । अव॑से । हु॒वे॒म॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्वन्तो न श्रवसो भिक्षमाणा इन्द्रवायू सुष्टुतिभिर्वसिष्ठाः । वाजयन्त: स्ववसे हुवेम यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्वन्तः । न । श्रवसः । भिक्षमाणाः । इन्द्रवायू इति । सुस्तुतिऽभिः । वसिष्ठाः । वाजऽयन्तः । सु । अवसे । हुवेम । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.९०.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 90; मन्त्र » 7
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    सम्प्रति परमात्मा सूक्ष्मताविज्ञैः जनरक्षां कल्याणं चोपदिशति।

    पदार्थः

    भो नरः ! (वाजयन्तः) बलमिच्छन्तो यूयं (स्ववसे) स्वरक्षणाय प्रार्थयध्वं यत् (वयम्) वयं सर्वे (हुवेम) विदुष आहूय स्वयज्ञे वक्ष्यमाणं प्रार्थयामहै, किं च (यूयम्) भो विद्वांसः ! यूयं (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाग्भिः (नः) अस्मान् (सदा) निरन्तरं (पात) रक्षतेति, परन्तु (अर्वन्तः, न) कर्मयोगिन इव (श्रवसः) अन्नादीन् (भिक्षमाणाः, इच्छतः, न) तथा (इन्द्रवायू) कर्मयोगि-ज्ञानयोगिनोरुभयोरपि (सुष्टुतिभिः) शोभनस्तवनैः (वसिष्ठाः) वसिष्ठाः भवन्तो यूयं कल्याणं प्रार्थयध्वम् ॥७॥ इति नवतितमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः।

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    हिन्दी (1)

    विषय

    अब परमात्मा सूक्ष्मविद्यावेत्ता विद्वानों द्वारा प्रजा की रक्षा तथा कल्याण का उपदेश करते हैं।

    पदार्थ

    हे लोगो ! (वाजयन्तः) बल की इच्छा करते हुए तुम (स्ववसे) अपनी रक्षा के लिये यह प्रार्थना करो कि (वयं) हम लोग (हुवेम) विद्वानों को अपने यज्ञों में बुलायें और यह कहें कि (यूयं) आप लोग (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनों से (नः) हमारी (सदा) सदा के लिये (पात) रक्षा करें परन्तु (अर्वन्तः) कर्मयोगियों के (न) समान (श्रवसः) अन्नादि पदार्थों को (भिक्षमाणाः) चाहते हुए और (इन्द्रवायू) कर्मयोगी और ज्ञानयोगी दोनों प्रकार के विद्वानों की (सुष्टुतिभिः) सुन्दर स्तुतियों द्वारा (वसिष्ठाः) वसिष्ठ हुए आप लोग विद्वानों से कल्याण की प्रार्थना करें ॥७॥

    भावार्थ

    जो लोग वेदवेत्ता विद्वानों से उपदेश लाभ करते हैं, वे ही बल तथा ऐश्वर्यसम्पन्न होकर अपना और अपने देश का कल्याण कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥७॥ यह ९०वाँ सूक्त और १२वाँ वर्ग समाप्त हुआ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Noble and brilliant scholars, fast and dynamic in their search for honour, fame and prosperity, warriors fighting for victory and success in the battles of life, and citizens for the sake of peace, protection and progress in life, all of us with songs of praise and appreciation call upon scientists and engineers of energy and power of wind and electricity with the exhortation: you all protect and promote us with all means and modes of happiness and well being all ways all time.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक वेदवेत्त्या विद्वानांकडून उपदेशाचा लाभ घेतात तेच बलवान व ऐश्वर्यसंपन्न बनून आपले व आपल्या देशाचे कल्याण करू शकतात, इतर नव्हे. ॥७॥

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